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    सोमचन्द | थोहरचन्द - चंद वंश के संस्थापक

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    सोमचन्द- राजा (जीवनावधि और राज्यावधि मतभेदपूर्ण): कुछ इतिहासकारों के अनुसार कुमाऊँ के चन्द राजवंश का संस्थापक। "कुमाऊँ का इतिहास" के लेखक श्री बद्रीदत्त पाण्डे ने सोमचन्द का शासन काल ई. सन 700-721 लिखा है। ब्रिटिश काल के गजेटियर लेखकों- एटकिन्सन, वाल्टन और नेविल ने ई.सन 935 माना है। चन्द राजवंश पर गहन और विस्तृत में लिखने वाले इतिहासकार डा. शिवप्रसाद डबराल ने अनुश्रुतियों के आधार पर सोमचन्द का राज्यारम्भ सन 665 और 700 लिखा है। उपरोक्त किसी भी लेखक ने और दूसरे छिटपुट शोधार्थियों ने सोमचन्द की जीवनावधि और राज्यावधि के सम्बन्ध में किसी प्रामाणिक आधार का उल्लेख नहीं किया है। एक नई अनुश्रुति के अनुसार चन्द राजवंश का संस्थापक सोमचन्द नहीं, अपितु थोरचंद (थोहरचन्द या छोरचन्द) था। कुमाऊँ के विश्रुत कूटनीतिज्ञ हर्षदेव (हरकदेव) जोशी से मिली एक सूचना के आधार पर 1815 में विलियम फ्रेजर ने कम्पनी सरकार को लिखा था कि कुमाऊँ का पहला राजा थोहरचन्द नामक एक राजपूत था, जिसे 16-17 वर्ष की आयु में झूँसी (इलाहाबाद) से लाया गया था। उसके पश्चात उसके पुत्र, पौत्र, प्रपौत्रों ने राज किया। उसका वंश जब समाप्त हो गया तो उसके सगे चाचा के वंशज ज्ञानचन्द को झूसी से लाकर कुमाऊँ के सिंहासन पर बिठाया गया। कुमाऊँ के चन्द राजवंश का मूलपुरुष कौन था- इस ऐतिहासिक सत्य को खोज निकालना अत्यावश्यक है।


    यह निर्विवाद सत्य है कि मैदानी क्षेत्र के लोगों का उत्तराखण्ड आगमन और बद्रीनारायण की यात्रा का आरम्भ आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं शताब्दी के मध्य में बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापना के बाद प्रारम्भ हुआ। सोमचन्द या थोहर चन्द की उत्तराखण्ड आगमन की सम्भावना इसके बाद बनती है। इस प्रकार उसका राज्यकाल ई. सन 900 या उसके बाद ही सही बैठता है। अतीत में लिखे इतिहास के सहारे यहां पर सोमचन्द का परिचय दिया जा रहा है।


    1979 में सम्पूर्णानन्द संस्कृत वि. वि., वाराणसी ने कुमाऊँ के राजा रुद्रचन्द द्वारा लिखी संस्कृत नाटिका 'उषारागोदय' प्रकाशित की। उसके अनुसार चम्पावत के चन्द राजवंश का मूलपुरुष सोमचन्द इलाहाबाद के समीप झूँसी के पास स्थित प्राचीन प्रतिष्ठान नामक स्थान का रहने वाला था। वह शालिवाहन के वंश में पैदा हुआ था। वह अपने साथ पुरोहित हरिहर पाण्डे तथा कुछ राजकर्मचारियों सहित बद्रीनाथ की तीर्थयात्रा पर आया। वापसी में यहां के सूर्यवंशी राजा अर्जुनदेव ने अपनी पुत्री का विवाह सोमचन्द से कर दिया। दहेज के रूप में उसे चम्पावत के निकट 300 नाली कृषि योग्य भूमि और 'मढौ की माल' (नैनीताल की तराई) का कुछ भाग दे दिया। इस प्रकार सोमचन्द घर जवांई बनकर एक छोटे जागीरदार के रूप में चम्पावत में रहने लगा। कालान्तर में इसके वंशजों ने राज्य का विस्तार किया। उत्तर में जोहार, मिलम, दारमा तथा दक्षिण में काशीपुर से पीलीभीत तक इनके राज्य की सीमा थी। सोमचन्द के वंश के 62 राजाओं ने बीच में 169 वर्षों को छोड़कर 1105 वर्षों तक कूर्मान्चल में एकछत्र राज्य किया। अनुश्रुति के अनुसार तड़ागी राजपूतों की सहायता से सोमचन्द ने रौत-राजा को पराजित किया और अपनी ठकुराई विस्तृत और सुदृढ़ की। कटोलगढ़ के मारा (महरा) और डुंगरी गाँव (सुई गढ़ के निकट) के फड़त्यालों को दीवान व बख्शी बनाया। बूढों और सयाणों को गुप्तचरी और राजस्व व्यवस्था का भार सौंपा। जोशी, बिष्ट तथा मैदान के कन्नौजिया ब्राह्मणों के वंशजों को प्रमुख सभासद बनाया। सामान्य और सैनिक प्रशासन की जिम्मेदारी जोशियों को दी। बिष्ट और उच्च जाति के ब्राह्मणों के जिम्मे गुरु-पुरोहिताई, वैद्यक और रसोयागिरी सौंपी। झिझाड़ के जोशी, सिमल्टिया पाण्डे, देवलिया पाण्डे तथा मंडलिया पाण्डे- ये चार ब्राह्मण परिवार चौथानी कहलाए। काशीपुर के पुस्तनामें में सोमचन्द और उसके वंशजों का क्रम निम्न प्रकार अंकित है:- सोमचन्द (685-721); आत्मचन्द (721-740); पूर्णचन्द (740-758), इन्द्रचन्द (758-778); संसार चन्द (778-813); सुधाचन्द (813-833); हमीरचन्द (833-856); वाणाचन्द (856-869)। सन 869 से 1065 तक चम्पावत में खषों का प्रभुत्व रहा।


    उपरोक्त वर्णित ऐतिहासिक घटनाओं के घालमेल और इतिहासवेत्ताओं के कथोपकथन से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि सोमचन्द और थोरचन्द दो व्यक्ति न होकर एक ही है जो प्रतिष्ठानपुर का राजकुमार था। चम्पावत में खषों के अवसान काल 869 के बाद सन 900 के आसपास वह बद्रीनारायण की यात्रा पर आया और घर जंवाई बनकर यहीं एक छोटा जागीरदार बन गया। ई. सन 869 से 1065 (खष प्रभुत्व काल) तक वर्णित चन्द नरेश कल्पित प्रतीत होते हैं। चन्द राजवंश वस्तुतः सन 900 के आसपास प्रारम्भ होता है। यही बात गजेटियर लेखकों ने भी लिखी है।


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