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    राजा भवानी शाह - पंवार वंश

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    राजा भवानीशाह- (1859 ई.-1871 ई.) भवानी शाह को राजा सुदर्शन शाह ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। परन्तु राजा सुदर्शन शाह की रानी 'शेरसिंह' के पक्ष में थी। अतः राजा की मृत्यु के पश्चात शेरसिंह ने रानी की सहायता से स्वयं को राजा घोषित कर दिया उधर रानी ने राजकीय कोष (खजाने) को अपने कब्ज़े में कर लिया। शेरसिंह ने अपने सौतेले भाइयों तथा राज्य के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी अपने पक्ष में कर लिया। और अपने आप को राजा घोषित करते हुए अपना नाम शेरशाह कर लिया और एक पत्र जिसमें थोकदारों, मालगुजारों व राज्य के लगभग 106 प्रतिष्ठित व्यक्तियों के हस्ताक्षर थे, को गवर्नमेण्ट (ब्रिटिश सरकार) को भेजा। इस प्रकार सिंहासन के उत्तराधिकार के लिए अनेक दावपेंच चले। परन्तु अन्त में ब्रिटिश सरकार ने भवानीशाह को सुदर्शनशाह का वैधानिक उत्तराधिकारी घोषित किया। तत्पश्चात 25 अक्टूबर सन् 1859 ई. को भवानीशाह को टिहरी गढ़वाल के राजा के रूप में राज्याभिषेक किया गया। भवानीशाह को सनद 6 सितम्बर सन् 1859 ई. को गवर्नमेन्ट से मिली थी। इसी कड़ी में एक अन्य सनद ब्रिटिश सरकार से 11 मार्च सन् 1862 को भी प्राप्त हुई। यह सनद सभी भारतीय राजाओं को लार्ड कैनिंग द्वारा उन्हें सन्तुष्ट करने के लिए प्रदान की गई, और उन्हें दत्तक पुत्र लेने का अधिकार पुनः दिया गया। भवानीशाह ने भी राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारने हेतु कई प्रयास किये। भवानीशाह ने सुदर्शनशाह के समय से चली आ रही वन दोहन की नीति को उसी प्रकार बरकरार रखा। राजा ने विलसन को सन् 1860 में देवप्रयाग से लेकर टकनोर तक (गंगा भागीरथी घाटी) तथा छाछड़ से लेकर सतरवाना बड़ागाँव (टोन्स घाटी के वन) तक के वनों का ठेका चार वर्ष के लिये चार हज़ार रूपये वार्षिक पर दिया था। पनु: इन वनों को सन् 1865 में ब्रिटिश सरकार के बीस वर्षों के लिए पट्टे पर लिया था। भवानीशाह के शासनकाल में भी प्रजा में दो बार विद्रोह फैला, जिसमें प्रथम शेरसिंह ने जौनपुर परगने की प्रजा को राजा के विरूद भड़का दिया था। देहरादून से फौज विद्रोह के दमन के लिए रवाना हुई पर यह विद्रोह बन्द हो गया। द्वितीय विद्रोह की शुरूआत रँवाई परगने में हुई। परन्तु भवानीशाह ने बड़ी ही कुशलतापूर्वक इस विद्रोह को दबा दिया। भवानीशाह ने 12 वर्ष राज्य किया और 45 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हो गया। भवानीशाह के स्वर्गवास के पश्चात प्रतापशाह गद्दी पर आसीन हुये।


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