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    जयानन्द विजयानन्द - गैरोला जाति के मूल पुरुष

    ‌जयानन्द-विजयानन्द (जीवनकालः दसवीं सदी): मूल निवासः धार, गुजरात। गढ़वाल की गैरोला जाति के मूल पुरुष। 'गढ़वाल का इतिहास' के लेखक पण्डित हरिकृष्ण रतूड़ी के अनुसार जयानन्द- विजयानन्द जी सम्वत् 972 विक्रमी अर्थात ई.सन् 915 में धार से (सम्भवतः) गढ़वाल के चान्दपुर ताल्लुक के गैरोली गांव आकर बसे। इस कारण वह और उनके वंशज ‘गैरोला' कहलाए। ये जाति के आदि गौड़ ब्राह्मण हैं। कुछ वर्षों के पश्चात भगीरथ जी गैरोली गांव से आकर 'डालढुंग' गांव में बस गए। इनके पुत्र शुद्ध जी के बड़े पुत्र बद्रीदत्त जी 'डालडंग' से आकर बड्यारगढ़ (नदी) के बहाव की ओर डेढ़ किमी. की दूरी पर 'धौड़ेगी' गांव में आकर बसे और छोटे पुत्र शिवदत्त जी 'डालडूंग' गांव में ही रहे। बद्रीदत्त जी के वंश के कुछ लोग पीछे 'सेरा', 'गुजेठा' आदि गांवों में बसने चले गए।


    ‌गैरोला जाति के लोगों ने गढ़वाल राजाओं के दरबार में प्रशासन तथा सेना में उच्च पदों पर रहकर सराहनीय सेवा की है। श्री किशन दत्त गैरोला जी के वंशज आज भी सोनांगणी (दीवान) के प्रपौत्र कहलाते हैं। सेरा गांव के श्री शीशराम गैरोला जी, फौजदार जी की सन्तति कहलाते हैं। उनके पास ताम्रपत्र हैं। श्री जयानन्द–विजयानन्द जी के दूसरे वंशजों ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे साहित्य, शिक्षा, समाजसेवा, स्वाधीनता संग्राम, प्रशासन, वैद्यक, ज्योतिष आदि में यथेष्ट कीर्ति अर्जित की है। इनमें सर्वश्री तारा दत्त गैरोला, डा. कुशलानन्द गैरोला, डा. शशि शेखरानन्द गैरोला, महावीर प्रसाद गैरोला आदि का नाम उल्लेखनीय है। (सन्दर्भः 'गैरोलाओं की डालढुंग शाखा की वंशावली', लेखक एवं प्रकाशक श्री शशि शेखरानन्द गैरोला)।


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