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    अजयपाल - पँवार वंश

    ‌अजयपाल राजा (राज्यावधिः 1500 से 1548): गढ़वाल के 60 पंवार वंशीय राजाओं की सूची में 37वीं पीढ़ी के राजा । इस क्षेत्र के 48 गढ़पतियों को विजित कर गढ़वाल राज्य की नींव डाली। तभी से यह गढ़वाल राज्य कहलाया। इससे पूर्व यहां सभी गढ़पति हुआ करते थे। स्वतंत्र गढ़वाल राज्य के अजयपाल पहले राजा थे। अजयपाल चान्दपुर गढ़ी के गढ़पति आनन्दपाल के पुत्र थे। अपने समय के ये सर्वाधिक पराक्रमी तथा बुद्धिचातुर्य राजा थे। 48 वर्षों के राज्यकाल में अजयपाल के 18 वर्ष केवल युद्ध करते बीते। सिंहासन पर बैठते ही राजा को चम्पावत के राजा किरतीचन्द से दोनों राज्यों की सीमा देघाट (बधाण गढ़ी) में युद्ध करना पड़ा। इस युद्ध में गढ़वाल नरेश को पराजय का मुंह देखना पड़ा। पूर्व इतिहासकारों ने लिखा है कि सत्यनाथ भैरव के रूप में भगवान भूतनाथ (शिव) के आशीर्वाद से अजयपाल ने दुबारा युद्ध जीता और चान्दपुर गढ़ के अतिरिक्त शत्रु–राज्य का कुछ भाग भी अपने अधिकार में कर लिया। बाद के वर्षों में इन्होंने प्रतिवर्ष चार-पांच गढ़पतियों पर विजय प्राप्त की। इनका राज्य विस्तार तो होता चला गया, किन्तु निरन्तर युद्धों से इनकी स्थिति जर्जर हो गयी थी।


    ‌लगभग 10 वर्षों में राजा अजयपाल ने उत्तर और मध्य गढ़वाल के सब गढ़पतियों का अपन अधीन कर लिया। इस विजय यात्रा में इन्हें भिलंग–बासर तक जाना पड़ा। बशरंबू पट्टी में स्थित कोलीगढ़ के अन्तिम शासक झगड़ सिंह को विजित कर उसका गढ़ अपने राज्य में मिलाया। शिमला के पर्वतों में स्थित राईगढ़ को भी जीता और वार्षिक कर का इकरार कर उसे नाम मात्र की स्वाधीनता दे दी। अपने इस अभियान में राजा अजयपाल ने पैनखंडागढ़, लोहबागढ़, इड़ियागढ़, साबलीगढ़, नागपुरगढ़, कोलीगढ़, राईगढ़, बनगढ़, लोनगढ़, अजमेरगढ़, बदलपुरगढ़, जून्यागढ़, चौंडगढ, तोपगढ़, रैकागढ़, रमोलीगढ़, उप्पूगढ़, भरपूरगढ़, नैलचामीगढ़, भिलंगढ़, चम्बागढ़, क्वीलीगढ़, देवलगढ़ आदि कई और छोटे-छोटे गढ़ों को जीता। इस प्रकार आज के जिला चमोली के सभी गढ़, टिहरी क्षेत्र के गढ़ और मध्य और उत्तर (जिला गढ़वाल) क्षेत्र के सभी गढ़ अपने राज्य में मिला लिए थे।


    ‌उत्तरी गढ़वाल के गढ़पतियों को विजित कर लेने के पश्चात राजा ने दक्षिणी गढ़वाल की ओर ध्यान दिया। दक्षिणी गढ़वाल में असवाल जाति के ठाकुरों का बोलबाला था। तब कहा जाता था कि- "आधौ असवाल, आधौ गढ़वाल," अजयपाल ने दक्षिणी गढ़वाल के कोटगढ़, चीलागढ़, गुजडूगढ़, लंगूरगढ़ तथा महाबगढ़ अपने राज्य में मिला लिए थे।


    ‌सन 1517 में राजा अजयपाल ने चान्दपुर गढ़ (कुछ इतिहासकार देवलगढ़ बताते हैं) से राज्य की राजधानी को हटाकर श्रीयंत्र (श्रीनगर) में राजधानी बनाई। वहां पर 61 ‘ज्यूला’ भूमि को समधरातल कराने के बाद एक सुन्दर विशाल महल और एक रमणीक नगर का निर्माण कराया। 1790 तक यही राजधानी रही। 1802 में विरही नदी की बाढ़ ने उस पुरातन महल और बाजार के अधिकांश भाग को बहा दिया था। राजा अजयपाल ने अब अपने गढ़वाल राज्य के संरक्षण और संवर्धन की ओर ध्यान दिया।सर्वप्रथम उसने राज्य की सीमा का निर्धारण किया। विजित गढ़पतियों को जागीरें, मुआफी और थोकदारियाँ देकर उनका विश्वास जीता। सेना और न्याय विभाग में उच्च पद देकर उन्हें अपनी और अनुरक्त किया। राजा अजयपाल नाथों का बहुत सम्मान करते थे। उन्हीं के कारण इनके पूर्वजों को राज्य और स्वयं इन्हें हर बार विजय प्राप्त हुई।


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