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    अशोक चल्ल

    अशोक चत्ल (राज्यावधि: 1191-1209): उत्तराखण्ड के महानतम शासकों में से एक। मूल भूमिः नेपाल के पश्चिमी पठार पर रिथत 'बैतडी' नामक स्थान। 1160 के लगभग बैतड़ी-डोटी के नवोदित राजवंश के राजा अशोकचलल ने कत्यूरी राजा से काली नदी से लगा क्षेत्र काली-कुमाऊँ को छीन लिया था। 31 वर्ष पश्चात उसने सारे उत्तराखण्ड क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। नेपाल की वशावलिया के अनुसार अशोक मल्ल (चल्ल) नेपाल नरेश जयभद्रमल्ल का पांचवां वंशधर था। पश्चिम की ओर अशोकचल्ल का राज्य डोटी, बैतडी, दुलू और लगभग सारी मानस भूमि और केदार भूमि पर फैला था। दक्षिण और उत्तर की ओर उसके राज्य की सीमा सम्भवतः वही रही होगी, जो उसके द्वारा पराजित कत्यूरी राजा के राज्य की सीमाएं थीं।


    अशोकचल्ल के गोपेश्वर अभिलेख में उसे परम भट्टार्क महाराजाधिराज लिखा गया है। यह महायानी बौद्ध था। अभिलेख में उसे अभिनव बोधिसत्वावतार कहा गया है। गोपेश्वर में अशोक चल्ल ने अपने लिए 'पदपाद' नामक राज प्रासाद बनाया था। इस अवसर पर उसने भूमिदान किए और भोज दिए। उसने अपने द्वारा विजित मांडलिक राजाओं को बुलाकर गोपेश्वर के त्रिशूल स्तम्भ के निकट सम्मेलन किया। विजित मांडलिकों के शासित प्रदेश पुनः उन्हीं को सौप दिए थे। वह पराजित योग्य। शत्रु को ऊपर उठाना पुण्यकर्म समझता था। वह बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) तक पहुंचा और वहां उसने। विश्वनाथ मंदिर के आगे अपना लेख अंकित किया।


    अशोकचल्ल एक वीर, साहसी, कुशल सेनापति और योग्य, धर्मपरायण शासक ही नहीं, उच्चकोटि का कवि और नृत्यवेता भी था। युद्धों में उलझे रहने के बावजूद भी उसने नाट्यशास्त्र पर नृत्याध्याय नामक ग्रन्थ की रचना की थी। नृत्याध्याय ग्रन्थ को प्रकाश में लाने का सर्वप्रथम श्रेय महाराज सयाजीराव वि.वि. बड़ोदरा को है। श्री बी.जे. सन्देसर के प्रधान सम्पादकत्व में यह ग्रन्थ गायकवाड़ ओरियन्टल सीरीज संख्या 141 में 1963 में प्रकाशित हुआ था। नृत्याध्याय के हिन्दी अनुवादक श्री वाचस्पति गैरोला (पौड़ी) के अनुसार वह नाट्यशास्त्र विषयक किसी विशाल ग्रन्थ का एक अंश है। इस ग्रंथ में नाट्यशास्त्रीय परम्परा के आचार्य भरत मुनि, तण्डू, वायुसून, कोहल, कीर्तिधर, अभिनव गुप्त आदि के मत दिए हुए हैं। इस ग्रन्थ में उसने स्वयं के लिए अशोकेन पृथ्वीन्द्रेण, अशोक मल्लेन भूभुजा अशोकमल्ल नृपाग्रणी नृपाशोककमलेन आदि का चौदह से भी अधिक स्थानों पर उल्लेख किया है। अशोकचल्ल आक्रान्ता होने के बावजूद उत्तराखण्ड के महानतम सम्राटों में से एक था।


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