1962 मे चीन का भारत पर आक्रमण सांस्कृतिक संस्था लोक कलाकार संघ पर भी घातक प्रहार सिद्ध हुई। अल्मोडा़ के साम्यवादी रुझान वाले रंगकर्मी मोहन उप्रेती को चीन का एजेन्ट बताकर गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। यद्यपि मोहन उप्रेती ने लोक कलाकार संघ को जीवित रखने का बहुत प्रयास किया किन्तु ये सभी प्रयास असफल सिद्ध हुए।
अगस्त सन 1968 मे मोहन उप्रेती के ही प्रयासो से दिल्ली मे पर्वतीय कला केन्द्र नामक एक नई संस्था की स्थापना हुई। पर्वतीय कला केन्द्र एक प्रकार से पचास के दशक के लोक कलाकार संघ अल्मोडा़ का ही एक व्यापक परिपक्व व परिमार्जित रुप था।
पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा अपनी स्थापना के दशक से ही कुमाऊॅनी तथा गढवाली लोकगीतो पर आधारित सराहनीय कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाने लगे पर्वतीय कला केन्द्र द्वारा मंचित गीत नाटिकाओं से केन्द्र को अत्यधिक सफलता तथा ख्याति प्राप्त हुई। केन्द्र द्वारा देश व विदेशों मे ख्याति प्राप्त कुमाऊनी व गढवाली की नृत्य नाटिकाओं का लेखन ब्रजेन्द्र लाल शाह द्वारा किया गया। ब्रजेन्द्र ने ये रचनाये कुमाऊनी संस्कृति के मर्मज्ञ मोहन उप्रेती के साथ मिलकर लिखी उत्तराखण्ड की प्रमुख गाथायें जैसे राजुला, मालुशही, अजुवा, बफौल, वन्या, रामी बौराणी, गोरीया आदि इन्ही के प्रयासो के फलस्वरुप मंच तक पहुॅच पायी पर्वतीय कला केंद्र द्वारा मंचित सभी गीत नाटिकाओ का संगीत निर्देशक मोहन उप्रेती द्वारा किया गया।
पर्वतीय कला केन्द्र ने इतनी अधिक लोकगाथाओं को मंचित कर सराहनीय कार्य किया। जिससे इन गीत नाटिकाओं को भी ख्याति प्राप्ति हुई। केन्द्र द्वारा प्रस्तुत लोक नाटिकाओं को दूरदर्शन पर भी प्रसारित किया जा चुका है। मोहन उप्रेती के नेतृत्व मे केन्द्र कलाकारो ने सन 1971 मे सिक्किम सन 1988 मे उत्तरी कोरिया चीन एवं थाईलैण्ड की विदेश यात्रा पर भेजा गया। उत्तराखण्डी लोकगीतो व नाटको की प्रस्तुति हेतु।
मोहन उप्रेती के कुशल और अनुभवी नेतृत्व मे केन्द्र द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमों से उत्तराखण्ड के गीत संगीत व लोक नृत्य को देश व विदेश मे गौरवशाली स्थान प्राप्त हुआ। उत्तराखण्ड की विलुप्त होती लोक संगीत को बचाने व उसे नयी पीढ़ी के सम्मुख लाने मे पर्वतीय कला केन्द्र का योगदान उल्लेखनीय है। किन्तु पर्वतीय कला केन्द्र को इस अग्रणी भूमिका में पहुचने का श्रेय ब्रजेन्द्र लाल शाह व मोहन उप्रेती को जाता है। जिन्होने उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति का संकलन करने अथक परिश्रम किया तथा उसे रचनात्मक रुप देकर देश मे ही नही विदेशों मे भी पहुचाया।
यह भी उल्लेखनीय है कि पर्वतीय कला केन्द्र एक या दो व्यक्तियो के नही अपितु अनेक संस्कृतिकर्मियो के सहयोग व परिश्रम का परिणाम था। इस केन्द्र की स्थापना व इसके विकास मे जिन लोगों का योगदान रहा उनमे मोहन उप्रेती बृजमोहन व ब्रजेन्द्र लाल शाह के अलावा हुकम सिंह राना, शिव दत्त, दयाकृष्ण पन्त, लीलाधर पाण्डे, बची सिह बिष्ट, बहादुर राम टम्टा, गुमान सिंह रावत, हीरा लाल शाह, लेनिन पंत, भैरव दत्त तिवारी, नईमा उप्रेती, का उल्लेखनीय योगदान रहा। वर्तमान में भी युगमंच, शैलनट आदि संस्थाओं ने अनेक संस्कृतिकर्मियों को मंच प्रदान किया है। नैनीताल में उमंग, अभिव्यक्ति, कुटुम्भ आदि नयी संस्थायें सक्रिय हुयी हैं। उत्तराखण्ड की संमृद्ध लोक संस्कृति एवं दर्जनों लोक नाट्यों के बावजूद यहाँ का लोक नाट्य राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान नहीं बना पा रहा है। 70 व 80 के दशक में मोहन उप्रेती एवं ब्रजेन्द्र लाल शाह ने यहाँ की लोक कथाओं और संगीत का उपयोग कर कुछ नाट्य प्रस्तुतियां अवश्य तैयार की जिन्हें सराहा भी गया। तत्पश्चात गिरीश तिवारी 'गिर्दा' ने भी कुछ अभिनव प्रयोग किये। युगमंच ने नगाडे़ खामोश हैं, अजुबा बफौंल आदि नाटकों में लोक तत्वों का सफल प्रयोग किया, जिससे निष्कर्ष निकलता है कि इन प्रयोगों से लोक नाट्यों को पहचान मिलेगी तथा यहा की नई पीढ़ी के समाज में नाट्यों के प्रति आकर्षण पैदा होगा। साथ ही इन सांस्कृतिक संस्थाओं को भी अपने सामाजिक व सांस्कृतिक कर्तव्यों का निर्वहन उत्तरदायी ढंग से करना होगा।
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