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जीवन सिंह बिष्ट | |
जन्म: | मई 30, 1950 |
जन्म स्थान: | ल्वाली, अल्मोड़ा |
पिता: | स्व. श्री नैनसिंह |
माता: | श्रीमती बचुली देवी |
पत्नी: | श्रीमती निर्मला बिष्ट |
बच्चे: | शावलिनी, शाल्मली, आशीष, स्वाति |
व्यवसाय: | निर्देशक, निर्माता |
व्यवहार कुशल व मृदुभाषी जीवन सिंह बिष्ट ने आंचलिक फिल्म के निर्माण में ऐसे समय में कदम रखा, जब आज की तरह तकनीक इतनी समृ़द्ध नहीं थी और तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से आंचलिक फिल्मों के प्रोत्साहन के लिए कोई नीति भी निर्धारित नहीं की गयी थी। तब बैंक की आरामदायक नौकरी करने वाले जीवन बिष्ट के मन में अपनी मातृभाषा कुमाउँनी में एक फीचर फिल्म बनाने का ख्याल जागा।
प्रारंभिक जीवन
जीवन बिष्ट का जन्म अल्मोड़ा जनपद के सालम पट्टी के ल्वाली नामक गाँव में नैनसिंह व बचुली देवी के घर 30 मई 1950 को हुआ। नैनसिंह सेना में थे, इसी कारण वे अपने पुत्र को भी सेना में देखना चाहते थे। पर जीवन का जन्म तो किसी और कार्य के लिए ही हुआ था। वे स्कूल में पढ़ने के दौरान ही रंगमंच की ओर आकर्षित हो गये थे और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी करते थे। इसी कारण वे सेना में भती नहीं हुए और स्नातक करने के बाद भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी करने लगे। जीवन का मन वहाँ भी नहीं लगा और 1986 में उन्होंने त्यागपत्र देकर आंचलिक फिल्म निर्माण का रास्ता चुना। बाद में वे दूरदर्शन के लिए टेलीफिल्म व वृत्तचित्रों का निर्माण व निर्देशन किया।
फिल्मी करियर
मेघा आ से पहले गढ़वाली भाषा की पहली फिल्म “जग्वाल” 1983 में प्रदर्शित हो चुकी थी और उसने बॉक्स ऑफिस पर एक तरह से नया इतिहास लिखा। उसके बाद दूसरी गढ़वाली फिल्म “घरजवैं” व तीसरी फिल्म “कबि सुख, कबि दुख” बन चुकी थी। तब बैंक में नौकरी करने वाले जीवन सिंह बिष्ट के मन में भी कुमाउँनी फिल्म बनाने का ख्याल जागा। जिसे जिंदा करने के लिए उन्होंने अपने कुछ मित्रों से सलाह की। जिसमें प्रमुख थे हल्द्वानी निवासी रंगकर्मी राजश हर्बोला और बियर शिवा पब्लिक स्कूल के संस्थापक और रंगकर्मी एनएनडी भट्ट। इन लोगों ने फिल्म निर्माण में उन्हें पूर्ण सहयोग देने का वायदा किया। फिल्म में पैसा लगाने के लिए तब पहाड़ के कई धन्ना सेठों से सम्पर्क किया गया पर किसी ने भी अपने हाथ मदद के लिए नहीं बढ़ाये। हर कोई इस बात की गारंटी चाहता था कि फिल्म में लगाया गया उनका पैसा डूबेगा नहीं और फिलम् कमाई करके अवश्य देगी। कुमाउँनी में बनायी जाने वाली पहली फिल्म के बारे में कोई गारंटी कैसे दे सकता था ?
ऐसे में बिष्ट ने किसी के आगे हाथ न फैलाने का निर्णय किया, अपनी मातृभाषा में फिल्म बनाने का जुनून बिष्ट के ऊपर इस कदर हावी था कि उन्होंने उसके लिए बैंक से कर्ज लेने का निर्णय किया और बैंक के कर्ज से उन्होंने 1987 में अपने सपने को कुमाउँनी की पहली फीचर फिल्म “मेघा आ” के रूप में रूपहले पर्दे पर साकार किया। फिल्म में राजेश हर्बोला, एनएनडी भट्ट, राजेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी आदि ने प्रमुख भूमिकायें निभायी थीं, जबकि नायक मुकेश धस्माना और नयिका सपना अवस्थी थी और इस फिल्म के कहानीकार एवं गीमकार थे श्री राजेन्द्र बोरा। बिष्ट को फिल्म के निर्माण में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी और फिल्म बनाकर ही दम लिया। उनके जुनून को देखकर अधिकतर कलाकारों ने बिना कोई मेहनताना लिये ही फिल्म में अभिनय किया।
फिल्म के प्रदर्शन के बाद भी कोई सिनेमा हाल मालिक उत्तराखंड में फिल्म दिखाने को राजी नहीं था। हल्द्वानी जैसे कुमाऊँ के प्रमुख शहर में इसके लिए उनका साथ दिया पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच के संस्थापक अध्यक्ष बलवंत सिंह चुफाल ने। जिनके कहने पर हल्द्वानी में लक्ष्मी टॉकीज के मालिक ने फिल्म का प्रदर्शन किया था। उसके बाद तो कुमाऊँ के अनेक शहरों में “मेघा आ” का प्रदर्शन हुआ
सम्मान
अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले ही जीवन ने “जय श्री राजवंशी गोलूदेव” नाम की फिल्म का निर्माण कार्य पूरा किया था। कुमाउँनी फिल्म के क्षेत्र में इतिहास रचने वाले जीवन सिंह बिष्ट हमेशा फिल्म निर्माण व निर्देशन तथा रंगकर्म से जुड़े रहे। आंचलिक फिल्म निर्माण के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए दिल्ली में उन्हें “लाइफ टाइम एचीवमेंट एवार्ड” से सम्मानित किया था।
मृत्यु
जीवन सिंह बिष्ट जी का निधन 8 जनवरी 2016 को हुआ।
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