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    कुँवर सिंह नेगी

    जन्म - 20 नवम्बर 1927
    जन्मस्थान - अयाल गांव , पौड़ी गढ़वाल

    कुँवर सिंह नेगी का जन्म पौड़ी जिले के अयाल गांव में हुआ था। उन्होने अपनी शिक्षा देहरादून से पूर्ण की। पढ़ाई के साथ साथ वे स्वतंत्रता आंदोलनों में भी भागीदारी करने लगे थे। जिस कारण वे कई बार जेल भी जाते रहे। 1944 में वे गढ़वाल रायफल्स में भर्ती हुए । उन्होनें द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीय सेना की ओर से बर्मा में युद्ध भी लड़ा। बाद में उन्होनें सेना की नौकरी को छोड़कर पहले देहरादून फिर दिल्ली की एक प्रिटिंग पे्रस में उसके बाद सेना की प्रेस में नौकरी करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही उन्होने अपनी आगे की पढ़ाई भी जारी रखी।



    जब वे स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे तब उनका ध्यान ब्रेल लिपि की ओर गया। उन्होने जाना कि भारत में ब्रेल लिपि के विकास में कोई मजबूत काम नहीं हुआ जिससे दृष्टिहीनों को अकसर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। तब उन्होने ब्रेल लिपि और उसके साहित्य पर कार्य करने का मन बनाया। साथ ही उन्होनें देहरादून के ‘ नैशनल इंस्ट्यिूट आॅफ विजुअली हैंडीकैप्ट’ ( राष्ट्रीय दृष्टि विकलांग संस्थान, देहरादून ) अकादमी में ब्रेल ट्रांसलेटर के रूप में नौकरी की।



    कुँवर सिंह नेगी ने पंजाबी , बंगाली , उर्दू , गुजराती, उड़िया, मराठी और रूसी जैसी कई भाषाओं में उपलब्ध किताबों का ब्रेल में लिप्यंतरण किया। नेगी जी ने 300 पुस्तकों पर काम किया है जिसमें सिखों की धार्मिक पुस्तकें, बौद्ध धर्मो और इस्लाम के महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी शामिल है। इसके अतिरिक्त नेत्रहीनों के लिए ‘शिशु आलोक’ व ‘नयनरश्मि’ नामक मासिक पत्रिकाओं का भी ब्रेल लिपि में प्रकाशन किया। उन्होनें ‘महात्मा रणजीत सिंह ब्रेल प्रेस सोसाइटी’ की स्थापना भी की। वे पंजाब के ‘भारत नेत्रहीन समाज’ और दिल्ली के ‘नैशनल फेडरेशन आॅफ ब्लाइंड’ से भी जुड़कर नेत्रहीनों के हित में कार्य करते रहे। उन्होने सुरजीत सिंह बरनाला की पुस्तक माई अदर टू डाॅटर्स का भी लिप्यंतरण किया।



    कुँवर सिंह नेगी को उनके कार्यों के लिए भारत सरकार ने 1981 में पद्मश्री से सम्मानित किया। जो कि उन्हे किसी विभागीय सिफारिश के बगैर मिला था। इसके बाद 1990 में साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में पद्मविभूषण से भी नवाजा गया। उन्हें ‘शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमैटी’ द्वारा ‘सिख गौरव’ पुरूस्कार से भी सम्मानित किया गया।



    बिमार रहने के कारण 20 मार्च 2014 को देहरादून में उनका निधन हो गया।



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