किलमोड़ा | |
संस्कृत नाम | दारुहरिद्रा |
हिन्दी नाम | दारुहल्दी |
अन्य नाम | किनगोड़, तोतर |
लैटिन नाम | Berberis aristata DC. Lindil |
पुष्पकाल | अप्रैल-मई |
फलकाल | जुलाई-अगस्त |
प्रयोज्य अंग | दमूल, काण्ड एव फल |
यह कांटेदार 6 से 10 फुट ऊँचा गुल्म है। पत्र कठोर तथा पत्र के किनारे कांटेदार होते हैं। दारुहरिद्रा के मूल के पास से ही प्रशाखा निकलती है। छाल घूसर वर्ण के तोड़ने पर पीले रंग की होती है। पुष्प गुच्छों के रूप में पीले वर्ण के होते हैं। फल पकने पर बैगनी रंग के होते हैं। इसकी एक और किस्में होती है जिसे तोतर कहते हैं। वनस्पति शास्त्र के अनुसार इसकी कई अन्य प्रजातियां होती है। मूल गुल्म के अनुसार 2 से 4" इंच तक मोटा और पीला होता है।
स्थानिक प्रयोग
⚬ आंखों की जलन लालिमा आदि नेत्र विकारों में इसके मूल से रसोंत बनाकर नेत्रबिन्दु के रूप में प्रयोग करते हैं।
⚬ रक्तप्रदर में इसके मूल क्वाथ को ल्यचकुरा के मूल के साथ मिलाकर देने से लाभ होता है।
⚬ इसके फलों के पकने पर ग्रामीण लोग नमक और सरसों का तेल मिलाकर बड़े चाव से खाते हैं।
⚬ विकृत घावों पर ग्रामीण वैद्य दारूहरिद्रा मूल क्वाथ के घन का लेप करते हैं।
⚬ यूनानी लोग इसके फलों को सुखाकर जिरिष्क के नाम से प्रयोग करते हैं।
⚬ इसके विकसित पुष्पों की चटनी बनती है।
⚬ मधुमेह में इसकी जड़ों को पानी में भिगोकर प्रातः 100 एम. एल. की मात्रा में पीने से लाभ होता है।
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