परिपूर्णानंद पैन्यूली (19 नवम्बर 1924): ग्राम छोल, टिहरी, जिला टिहरी गढ़वाल। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी, बागी नेता, स्वाधीनता संग्राम सेनानी, सिद्धहस्त लेखक, संपादक, पत्रकार सांसद और समाज सेवी।
काशी विद्यापीठ से शास्त्री और आगरा से एम.ए. (समाज शास्त्र) की उपाधि ग्रहण की। ऐतिहासिक भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। ब्रिटिश सरकार द्वारा राजद्रोह के आरोप में बन्दी बना लिये गये। मेरठ, लखनऊ और रियासत टिहरी के जलों में 6 वर्ष से अधिक बन्दी जीवन बिताया। ब्रिटिश सरकार की जेलों से मुक्त होने के बाद टिहरी राज्य प्रजामंडल में सम्मिलित हुए और सामंतशाही शासन को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से टिहरी जनक्रान्ति की अगुवाई की। इसी दौरान 27 नवम्बर 1946 को टिहरी के एक विशेष मजिस्ट्रेट ने राजद्रोह के आरोप में आपका डेढ़ वर्ष का कठोर कारावास और पाँच सौ रुपया अर्थदंड की सजा सुनाई। एक नाटकीय एतिहासिक घटनाक्रम में 10 दिसंबर 1946 के दिन टिहरी जेल से फरार हो गए। सर्दी की ठिठुरती रातों में मात्र लंगोटी पहनकर और कम्बल ओढ़कर भिलंगना नदी को पार किया। लुकते-छिपते दिल्ली पहुँचे और 'रामेश्वर शर्मा' छद्म नाम से फिर से क्रान्तिकारी कामों में जुट गये। देहरादून को रियासत टिहरी की क्रान्ति का केन्द्र बनाकर टिहरी प्रजामंडल के सहयोग से टिहरी की स्वतंत्रता के साथ देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्षरत रहे।
1949 में रियासत टिहरी के भारत संघ में विलीनीकरण के ऐतिहासिक दस्तावेजों (Papers relating to transfer of power) पर हस्ताक्षर करने वाले तीन प्रमुख प्रतिनिधियों में श्री पैन्यूली एक थे। इस बीच " हिमालयन हिल स्टेट्स रीजन काउंसिल" (अब हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी), जिसमें टिहरी स्टेट सहित तब 34 शिमला हिल स्टेट्स सम्मिलित थीं, के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1977 में टिहरी के पूर्व नरेश मानवेन्द्र शाह को टिहरी–उत्तरकाशी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से पराजित कर जनता पार्टी के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए। 1972-74 की अवधि में "यू.पी. पर्वतीय विकास निगम " के अध्यक्ष रहे। अपने संसदीय कार्यकाल में इन्होंने पर्वतीय क्षेत्र के पिछड़ेपन के कारणों पर, हरिजन और जनजातियों की समस्याओं पर लोक सभा में प्रभावपूर्ण ढंग से प्रकाश डाला। 3 वर्ष तक संसदीय दल की कार्यान्वयन समिति के सदस्य रहे। लोक लेखा समिति और आकलन समिति के सदस्य के रूप में आपका कार्य यादगारपूर्ण है। चकराता और उत्तरकाशी जनजातीय क्षेत्रों के उन्नयन के लिए 1973 में गठित “एकीकृत जनजाति विकास समिति” को अस्तित्व में लाने का श्रेय आपको ही जाता है।
कलम के महारथी हैं पैन्यूली जी। स्थापित लेखक और पत्रकार हैं। अब तक आप दो दर्जन से ऊपर पुस्तकों का प्रणयन कर चुके हैं। इनमें तीन पुरस्कृत हैं। आपकी पहली रचना "देशी राज्य और जन आन्दोलन” की प्रस्तावना सन 1948 में डा. बी. पट्टाभि सीतारामैय्या, तत्कालीन अध्यक्ष "आल इण्डिया स्टेट्स पीपुल्स कान्फ्रेंस” ने लिखी थी। दूसरी रचना “नेपाल का पुनर्जागरण” की प्रस्तावना महान शिक्षा शास्त्री और उ.प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. सम्पूर्णानन्द ने लिखी। संसदीय प्रक्रिया पर हिन्दी भाषा में पहली बार लिखी गई बेजोड़ पुस्तक “संसद और संसदीय प्रक्रिया" की प्रस्तावना महान समाजवादी चिन्तक और विचारक, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति आचार्य नरेन्द्र देव ने लिखी। विगत 50 वर्षों से आप अंग्रेजी दैनिक “हिन्दुस्तान टाइम्स” के अधिकृत संवाददाता है। उत्तराखण्ड की पत्रकारिता के इतिहास में यह एक रिकार्ड है।
समाज सेवा के क्षेत्र में आप पिछले 45 वर्षों से सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश हरिजन सेवक संघ के सचिव के तौर पर आपने 50 के दशक में हरिजनों को बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री तीर्थ धामों में सवर्णों के भारी विरोध के बावजूद प्रवेश कराया। सिरमौर (हि.प्र.) में हरिजनों से सवर्णों के पानी के स्रोतों से पानी भरवाने के आरोप में आपको जेल जाना पड़ा। 1962-63 के दौरान आपने यायावरी जीवन जीने वाले मुस्लिम गूजरों को पौंटा साहिब (हि.प्र.) और दून घाटी में पुनर्वासित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1955-65 की अवधि में कई जनजातीय हरिजन महिलाओं को अनैतिक कार्यों से विरत कर उनके पैतृक क्षेत्र चकराता में पुनर्वासित कराया। संप्रति, अशोक आश्रम, कालसी के व्यवस्थापन में कार्यरत। गढ़वाल की, विशेषकर दूनघाटी और हरिजनोत्थान से जुड़ी कई संस्थाओं से आपकी प्रत्यक्ष सहभागिता है। दलितों के लिए की गई आपकी सराहनीय सेवाओं के लिए 'भारतीय दलित साहित्य एकेडेमी' ने 1996 में आपको ‘डा. अम्बेडकर अवार्ड’ देकर सम्मानित किया।
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