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    पोखु देवता मंदिर

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    उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले के नैटवाड़ गांव में टोंस नदी के समीप सुपिन और रूपिन नदी के संगम में न्याय करने वाले पोखु देवता का मंदिर का स्थित है। पोखु देवता को इस क्षेत्र का राजा माना जाता, वे स्वभाव से कठोर व अनुशासन प्रिय माने गये है। पोखु देवता को भगवान शिव का सेवक व महाभारत के कर्ण का प्रतिनिधि माना गया है। भक्त दूर दूर से यहां अपनी फरियाद लेकर आते हैं। नवम्बर के माह में यहां मेला भी लगता है। इसी क्षेत्र में कर्ण व दुर्योधन मंदिर भी स्थित है।


    यहां के क्षेत्र के प्रत्येक गांव में दरातियों और चाकुओं के रूप में इन देवता को पूजा जाता है। कहा जाता है कि ये देवता उल्टी स्थिति और नग्नावस्था में विराजमान हैं। इन देवता का मुंह पाताल में है और कमर के ऊपर का भाग धरती पर है। जिस कारण ऐसी स्थिति में इन्हें देखना अशिष्टता व गलत होगा इसलिए पुजारी व अन्य श्रद्धालु इनकी ओर को पीठ घुमाकर पूजा करते हैं।


    पोखु देवता से जुड़ी कथाएं -

    1.एक कथा के अनुसार किरमिर नामक दानव ने जब इस समूचे क्षेत्र में अपना अत्याचार मचाया हुआ था तब दुर्योधन ने उससे युद्ध कर उसका सर धड़ से अलग कर दिया और टोंस नदी में फेंक दिया । कुछ देर में राक्षस का सर उल्टी दिशा में बहने लगा और सुपिन व रूपिन नदियों के संगम में रूक गया। जब दुर्योधन ने रूका हुआ सर देखा तो उसी स्थान पर सर को स्थापित करके किरमिर का मंदिर बना दिया जो कि वर्तमान में पोखु मंदिर से जाना जाता है।


    2.एक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में भगवान कृष्ण ने जिस ब्रभुवाहन का वध किया था उसी ब्रभुवाहन को पोखु देवता माना गया है।





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