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    गुलेरिया - पँवार वंश

    गुलेरिया- महारानी (1855–1926): टिहरी रियासत के नरेश प्रतापशाह की रानी। धर्मपरायण, साध्वी, शासन कुशल नारी। मूल नाम कुन्दनदेई। रानी गुलेरिया का जन्म हिमाचल प्रदेश की रियासत मण्डी के गाँव कुनाल में एक राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पूर्वज कभी गुलेर राज्य से आकर यहां बसे थे। इसलिए इस वंश के पुरुष 'गुलेर' और महिलाएं 'गुलेरिया' कहलाती थीं। मात्र बत्तीस वर्ष की आयु में सन 1887 में विधवा हो गई थी। इनके पुत्र कुँवर कीर्तिशाह जो रियासत के उत्तराधिकारी थे, उस समय अवयस्क थे। राजा प्रताप शाह की मृत्यु पर रानी गुलेरिया के हुक्म से पूरे राज्य में एक वर्ष तक शोक मनाया गया। इस अवधि में राजा के छोटे भाई कुँवर विक्रमशाह ने कमिश्नर कुमाऊँ मि.रौस के आदेश पर रीजेन्ट का कार्य किया। इसके बाद शासन के सारे अख्तियारात, कुँवर कीर्तिशाह के बालिग होने तक, रानी गुलेरिया के हाथ में आ गए। कुँवर कीर्तिशाह के बालिग होने तक रानी गुलेरिया ने कौंसिल आफ रीजेन्सी की सहायता से राज्य का शासन चलाया। रीजन्सी के मेम्बरान कुंवर विक्रमशाह, दीवान श्रीचन्द और केवलराम रतूड़ी थे। सभी महत्वपूर्ण विवाद का निर्णय रानी परदे के पीछे रहकर स्वयं करती थी। रानी ने अपने शासन काल में बिसाह, खेण और पाला जैसी तीन कुरीतियों से प्रजा को मुक्ति दिलाई। संयुक्त प्रान्त के तत्कालीन ले. गवर्नर मि.एलफ्रेंड ने रानी की योग्यता की प्रशंसा करते हुए लिखा था- "सारी प्रजा इन्हें माता समझती है। इनका शासन पक्षपात रहित है। रानी साहिबा राजनीति कुशल, विचारशील और वाक्पटु हैं।"


    17 मार्च, 1892 को कुँवर कीर्तिशाह का राजतिलक सम्पन्न हुआ। कीर्तिशाह को राज्याधिकार सौंपने के बाद भी रानी गुलेरिया ने दो बार अस्थाई तौर पर शासन भार सम्भाला। दुबारा की कौंसिल आफ रीजेन्सी में शिवदत्त डंगवाल, केवल राम रतूड़ी और विश्वेश्वर सकलानी मेम्बरान थे। रानी गुलेरिया ने अपने आभूषण बेचकर टिहरी में राजप्रासाद के नीचे गंगा तट पर बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगाजी और श्री रंगनाथ जी के मंदिरों का निर्माण करवाया और सदाव्रत खुलवाए। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशालाएं बनवाई। इनकी देखरेख के लिए एक व्यवस्था समिति बनवाई। महारानी गुलेरिया की शासन व्यवस्था सर्वत्र शान्तिपूर्ण रही। 71 वर्ष की आयु में 23 अगस्त, 1926 को इनका निधन हुआ।


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