नागेन्द्र सकलानी (1920-1948): पुजारगाँव, सकलाना, टिहरी गढ़वाल। तत्कालीन टिहरी रियासत में राजशाही के जुल्म के विरुद्ध आन्दोलन के दौरान शहीद क्रान्तिकारी, देशप्रेमी, वामपंथी विचारक, प्रखर वक्ता, टिहरी का लाड़ला। उन दिनों रियासत टिहरी में जनता पर सामन्तशाही का दमन चक्र जोरों पर था। दमन चक्र का एक उदाहरण यहाँ प्रस्तुत है। एक दिन एक व्यक्ति टिहरी बाजार में एक फिल्मी गाना गुनगुना रहा था- "दुनिया में गरीबों को आराम नहीं मिलता, रोते हैं तो हंसने का पैगाम नहीं मिलता।" बस, इतने पर ही वह हवालात में बन्द कर दिया गया। पं. दौलत राम के बड़े भाई ने कथा वाचन करते एक समय तुलसी दास जी की यह चौपाई दोहराई- जासुराज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवस नरक अधिकारी, राजा के अफसरों ने उसे जेल में डाल दिया। इस दमन के विरुद्ध युवा नागेन्द्र के दिल में आग लगी थी। एक दिन नागेन्द्र सकलानी बृजेन्द्र गुप्त के साथ कठोर लक्ष्य को प्राप्त करने टिहरी की ओर चल दिए। उन्होंने जनता को सामन्तशाही शासन के विरुद्ध आन्दोलन के लिए तैयार किया। दादा दौलतराम के साथ उन्होंने जगह-जगह जन सभाएं कर जनता को जनान्दोलन के लिए तैयार किया। कड़ाकोट और डांगचौरा क्षेत्र में नागेन्द्र सकलानी को गिरफ्तार कर टिहरी जेल में डाल दिया गया। वहाँ नागेन्द्र ने भूख हड़ताल कर दी। भोजन के लिए उन पर बल प्रयोग किया गया। उन्होंने मुंह नहीं खोला तो दांत तोड़ दिए गए। इन प्रताड़नाओं का समाचार उन्होंने विद्यासागर नौटियाल के मार्फत रमेश सिन्हा को भिजवाया, जिसे बम्बई में 'जनयुग' अखबार में प्रकाशित किया गया।
3 दिसम्बर, 1946 को वे रिहा कर दिये गए। इसके बाद उन्होंने आन्दोलन का नेतृत्व करने वाली अपनी जन्मभूमि सकलाना में कदम रख आर आन्दोलन कर बगावत का वातावरण बनाया। क्यारा, कीर्तिनगर, ऋषिकेश आदि स्थानों पर सत्याग्रही कैम्पों का गठन किया। 11 जनवरी, 1948 का वह रक्तरंजित दिन। आन्दोलनकारियों ने कीर्तिनगर कचहरी पर आग लगा दी। सभी राज कर्मचारियों को बन्दी बना लिया। जवाब में पुलिस ने गोलियां चलाई। भगदड़ में कुछ अहलकार भाग निकले। इनमें नागेन्द्र ने एक का पीछा किया, किन्तु उसकी गोली से वे वहीं शहीद हो गए। उसी दिन, इन्हीं के साथ मोलू भरदारी भी शहीद हुए। नागेन्द्र सकलानी की शहादत ने टिहरी से राजशाही का अन्त करने में अहम भूमिका निभाई।
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