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    गंगोत्री धाम

    gangotri dham

    गंगोत्री उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में स्थित हिन्दुओं के पवित्र धामों में से एक है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण गंगा मां का यह पवित्र स्थान समुद्र तल से 3,048 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। हिमालयी क्षेत्र होने के कारण यह धाम साल में 6 माह के लिये खुलता है। बैसाख की अक्षय तृतीया के दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं व दिवाली के शुभदिन पर कपाट बन्द होते हैं। शीत ऋतु के लिये गंगोत्री से 20 किमी. नीचे मुखबा गांव के मुखयमनाथ मंदिर में पूजा के लिये लायी जाती है। गंगोत्री नदी के बगल से भगीरथी नदी बहती है। गंगोत्री धाम से 19 किमी. की दूरी पर गोमुख ग्लेशियर से भागीरथी नदी का उदगम होता है। भागीरथी नदी आगे जाकर देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर, जहां से दोनों नदियां एक हो जाती है,जहां से यह नदी गंगा कहलाती है। इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा कराया गया था। अभी वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा कराया गया। यहां सेमवाल परिवार के पुजारीयों द्वारा आरती की जाती है। कहा जाता है कि पुरातन काल में सेमवाल पुजारियों द्वारा नदी की धारा की पूजा की जाती थी। बाद में पुजारियों के निवेदन पर गुरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने यहां मंदिर का निर्माण कराया।


    पौराणिक कथा


    गंगा को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना गया है। कहा जाता है कि प्रभावशाली व असाधारण दैवीय गुणों से संपन्न गंगा को देवताओं ने सृष्टि के कल्याण के लिये चुना और उन्हें स्वर्ग लोक में निवास कराया।


    कहा जाता है कि अयोध्या में राजा सगर नाम का राजा हुआ करता था जिसकी दो रानियां थी। राजा को पहली रानी से एक पुत्र व दूसरी रानी से 60,000 पुत्रों की प्राप्ति ब्रहमा से वर के रूप में प्राप्त हुए थे। पहली रानी के पुत्र को यौवनकाल में ही उसके खराब व्यवहार के कारण राज्य से बाहर निकाल दिया गया था। एक बार राजा सगर ने राक्षसों से युद्ध कर उनका वध करने के बाद अश्वमेघ यज्ञ करने की सोची। परन्तु इन्द्र ने राजा सगर की बढ़ती ख्याति व शक्तियों से ईष्र्या खाकर यज्ञ के लिये आये घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। घोड़े के चोरी होने के शक में राजा सगर ने घोड़े की तलाश में अपनी दूसरी रानी के 60,000 पुत्रों को भेजा। पुत्रों ने ढ़ूंढ तलाश के दौरान देखा कि घोड़ा मुनि के आश्रम में है तो उन्होनो आश्रम में धावा बोल दिया। तप में विघ्न से कपिल मुनि की आंखें खुल गयी और उन्होनें क्रोध में सभी को अपनी शक्ति से भस्म कर दिया। इस बात का पता जब राजा सगर को पता चला तो वे बहुत चिंतित हो गये तब उनके पहली रानी से प्राप्त पुत्र के पुत्र अंशुमन ने यह बात पता चली तो वह मुनि कपिल के पास जाकर राजा सगर के पुत्रों की गलती की क्षमा मांगी व उन सभी की आत्माओं को मोक्ष प्रदान करने को कहा। तब मुनि कपिल ने बताया कि अब गंगा का जल ही इन्हे मुक्ति दिला सकता है। अंशुमन के अथा प्रयास में विफल होने के बाद उसके पुत्र व उसके बाद उसके पौत्र भगीरथ ने यह कार्य अपने उपर लिया। भगीरथ के तप से ब्रहमा खुश हुए भगीरथ ने अपने पुरखों के उद्धार के लिये गंगा का जल मांगा । ब्रहमा जी ने बताया कि गंगा अगर स्वर्ग से अवतरित होती है तो उसका वेग धरती नहीं उठा पायेगी। यदि कोई गंगा का वेग संभाल सकता है तो वो है भगवान शिव। इसलिये तुम्हें शिव से गुहार लगानी पड़ेगी। भागीरथ ने कठोर तप कर शिव को प्रसन्न किया । शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया और भगीरथ ने अपने पुरखों को मोक्ष दिलाया। जहां गंगा शिव की जटाओं से आगे को गिरी वही स्थान गोमुख कहलाया।


    एक मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पाण्डवों द्वारा अपने परिजनों की आत्मा की शांति के लिये यहां यज्ञ किया था।


    हिमालयी क्षेत्र होने के कारण यहां अधिकतर ठण्ड रहती है। नवम्बर के बाद यहां हिमाच्छादित रहता है। गंगोत्री आने के लिये हरिद्वार से वाहन उपलब्ध रहते है। यहां जाने का समय अप्रैल/मई से नवम्बर तक होता है। बीच में बरसातों में मौसम की स्थिति देख के ही यात्रा करवाई जाती है। मांसाहार व शराब का सेवन इन क्षेत्रों में वर्जित है।


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