विश्वम्भर दत्त चन्दोला (1879-1970): ग्राम थापली, पट्टी कपोलस्यूं, गढ़वाल। गढ़वाल में पत्रकारिता के पितामह। निर्भीक और स्वाभिमानी पत्रकार। बाल्यावस्था में अध्ययन में निरन्तर व्याघात सहते आगे बढ़े। मात्र सत्रह वर्ष की आयु में माता-पिता का साया उठ गया। जीविकोपार्जन की विकराल समस्या से जूझने के लिए 'सर्वे आफ इण्डिया' में नौकरी की। वहां रास नहीं आया तो नौकरी छोड़ दी और देहरादून में ही गोरखा पल्टन में क्लर्की की नौकरी कर ली। दिल में देशभक्ति की भावना और पत्रकारिता के रुझान ने इन्हें क्लर्की छोड़ने को बाध्य कर दिया। 1903 में देहरादून में कतिपय जागरूक, शिक्षित प्रवासी गढ़वालियों ने 'गढ़वाल हितैषणी सभा' या 'गढ़वाल यूनियन' की स्थापना की। 1905 में 'गढ़वाल यूनियन' के मुख पत्र के रूप में 'गढ़वाली' मासिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। रायबहादुर तारादत्त गैरोला, गिरिजा दत्त नैथाणी और विश्वम्भर दत्त चन्दोला की त्रिमूर्ति के सम्पादक मण्डल ने मई, 1905 में 'गढ़वाली' का पहला अंक प्रकाशित कर गढ़वाल में पत्रकारिता का शुभारम्भ किया। पत्र के प्रारम्भिक सम्पादक गिरिजा दत्त नैथाणी थे। बाद में विश्वम्भर दत्त चन्दोला जी ने अकेले 29 वर्षों तक पत्र चलाया। तीन दशकों की अवधि में 'गढ़वाली' ने काफी उतार-चढ़ाव देखे और झंझावात झेले। 1930 के ऐतिहासिक रवांई काण्ड (टिहरी रियासत) की तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रकाशित करने पर रियासत के तत्कालीन दीवान और इस काँड के उत्तरदायी चक्रधर जुयाल ने इन पर झूठा समाचार प्रकाशित करने का आरोप लगा दिया। घोर स्वाभिमानी विश्वम्भर दत्त चन्दोला जी ने सम्पादकीय उत्तरदायित्व की उच्चतर परम्परा का निर्वाह करते हुए न संवाददाता का नाम बताया, न ही समाचार प्रकाशित करने का क्षोभ प्रकट किया और न ही माफी मांगी। इनके खिलाफ मुकदमा चलाकर न्यायालय द्वारा इन्हें एक वर्ष कारावास की सजा सुना दी गई। 31 मार्च 1933 से 3 फरवरी 1934 तक इन्होंने जेल जीवन बिताया पूरा कारावासी जीवन इन्होंने देहरादून में ही बिताया। जेल प्रवास में इनकी पण्डित नेहरू से मित्रता हो गई थी। Vishambhar Dutt Chandola Grandfather of Garhwal Journalism
विश्वम्भर दत्त चन्दोला जी की जेल यात्रा के बाद 'गढ़वाली' पर विपत्ती के बादल घिर आये। अर्थाभाव में प्रकाशन डगमगा गया। कुछ समय तक इनके छोटे भाई त्र्यम्बक चन्दोला ने और बाद में इनकी तीन पुत्रियों शान्ति, कुसुम और बिमला ने पत्र चलाया। किन्तु आर्थिक कठिनाइयों के कारण अन्ततः प्रकाशन बन्द करना पड़ा।
1970 में इनके निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए बैरिस्टर मुकुन्दीलाल ने कहा था- "चन्दोला जी ने जीवन के इक्यानवे वर्षों में से इकहत्तर वर्ष पत्रकारिता में बिताए। समाचार संवाददाता का नाम न बताने और समाचार के लिए माफी न मांगने के कारण किसी सम्पादक को जेल की सजा हो जाने का ऐसा दूसरा दृष्टान्त सिवाय 'केसरी' के सम्पादक लोकमान्य तिलक के और कोई नहीं है।" वर्षों से चन्दोला जी की ज्येष्ठ सुपुत्री श्रीमती ललिता वैष्णव चन्दोला देहरादून में विश्वम्भर दत्त चन्दोला 'शोध संस्थान' चला रही हैं। संस्थान का उद्देश्य 'गढ़वाली' और चन्दोला जी की सात दशकों की पत्रकारिता के सम्बन्ध में अधिकाधिक जानकारी उपलब्ध कराना है।
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