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    हंसा हिंडवाण

    हंसा हिंडवाण (जीवन काल : सत्रहवीं सदी): गढ़वाल के वीर भड़ों में हिंडवाण जाति के वीर 15वीं-16वीं शताब्दी में गढ़वाल राज्य के रक्षक के रूप में इतिहास प्रसिद्ध हुए हैं। इस जाति का सम्बन्ध अफगानिस्तान के हिन्दोऊ क्षेत्र से आई वीर जाति से जोड़ा जाता है। किसी समय यह जाति वहां से चलकर सिरमौर (हि.प्र.) में आकर बस गई थी। टिहरी गढ़वाल में भी हिंंदवाण ब्राह्मण हैं। एक पट्टी का नाम भी यहां हिंदाव पट्टी है। यहां बहने वाली नदी का नाम भी हिंदाव है। जिला उत्तरकाशी का हडयाड़ी गाँव कभी हिंदवाण सरदारों का गढ़ रहा है। आज वहां पंवार वंशी ठाकुर रहते हैं। हिंदाव के वीर भड़ वीरता के कारण 'रावत' आदि पदों से भी विभूषित हुए। हिंडवाण गढ़ के वीर भड़ हंसा हिंडवाण और हरि हिंडवाण वीर भड़ों की गाथाओं में आते हैं। गढ़वाल का राजा मानशाह (1600-1611) का शासनकाल हंसा हिंडवाण से प्रभावित रहा। उस समय हिंडवाण कोट, टिहरी में हंसा हिंडवाण और हार हिंडवाण दो भाई रहते थे। ये दोनों भाई अपने समय के वीर भड़ थे।


    सन् 1602 के आसपास सिरमौर राज्य के राजा मौलिचन्द पर गौड़ राजा के आक्रमण का भय बन गया। सिरमौर के राजा ने श्रीनगर के राजा मानशाह से मदद की गुहार की। पत्र में सिरमौर के राजा ने लिखा, कि यदि तुम किसी प्रकार इस म्लेच्छ राक्षस से मेरा राज्य बचा दोगे तो मैं तुम्हें आधा राज्य दे दूंगा; साथ ही उस वीर भड़ से अपनी कन्या का विवाह कर दूंगा। राजा मानशाह ने इस सन्देश को अपनी प्रतिष्ठा समझा और शीघ्र ही राजा सिरमौर की मदद का निर्णय लिया। राजा मानशाह को इस कठिन घड़ी में हिंडवाण भाइयों की याद आई। राजा का सन्देश लेकर दूत हिंडवाणी कोट पहुचा। सन्देश पाकर हंसा को जोश आ गया। वह जाने की तैयारी कर ही रहा था कि उसका छोटा भाई हरि हिडवाण वहां आ पहुंचा और साथ जाने की जिद करने लगा। भाई के समझाने पर भी वह नहीं माना और भगवती माता की पूजा कर युद्ध के लिए चल दिया। राजधानी पहुंचकर उसने राजा से भेंट की। जैदेऊ लगाया और युद्ध के आवश्यक साधनों व रसद साथ लेकर वह सिरमौर की ओर कूच कर गया। वहां पहुंचकर सिरमौर के राजा ने आक्रमणकारी का पड़ाव बता दिया। हरि हिंडवाण का गौड़ के मल्लों के साथ जमकर युद्ध हुआ। अन्ततः जीत उसी की हुई। जीत का समाचार सिरमौर के राजा के पास पहुंचा तो वह प्रसन्न हो गया, किन्तु असमंजस में भी पड़ गया; क्योंकि शर्त के मुताबिक आधा राज्य और लड़की देनी पड़ रही थी। राजा के दिल में पाप समा गया। षडयंत्र से उसने हरि के हाथ-पाँव बंधवाकर उसे तालाब में फिकवा दिया। इधर हंसा हिंडवाण को स्वप्न हुआ कि जीत के बावजूद हरि को मरवा दिया गया हैं। वह श्रीनगर दरबार पहुंचा और राजा मानशाह से पर्याप्त सैनिक शक्ति लेकर सिरमौर पहंचा। गुप्तचरों से हंसा को सच्चाई का पता चल गया था। हंसा ने सबसे पहले तालाब से हरि को निकलवाया और उपचार के बाद उसमें प्राण संचरण करवाए। अब तो सिरमौर का राजा भयभीत हो गया। दोनों भाइयों ने सिरमौर में मारकाट मचा दी। हारकर राजा ने अपनी लड़की सुरकंशी का विवाह हरि हिंडवाण से कर दिया। श्रीनगर पहुंचने पर दोनों भाइयों का भारी स्वागत हुआ। दोनों वीर भड़ों को गढ़वाली सेना में उच्च पद दे दिया गया (लोकगाथाओं पर आधारित)।


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