KnowledgeBase


    तरुण कुमाऊँ (1922-1923)

    tarunkumaon

    ‌उत्तराखण्ड के प्रथम बैरिस्टर तथा स्थानीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख संग्रामी मुकुन्दी लाल ने जुलाई, 1922 में लैंसडाउन से तरुण कुमाऊँ का प्रकाशन किया। तरूण कुमाऊँ ने अपने सीमित प्रकाशन काल में राष्ट्रीय और स्थानीय दोनों ही स्तर पर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हुए स्थानीय जनता में उत्साह और विश्वास का संचार किया। तरुण कुमाऊँ ने अपने लेखों और सम्पादकियों द्वारा जनचेतना को जागृत करते हुए घोषणा की कि बिना स्वराज्य के कोई जाति सरसब्ज, गौरववान, प्रभावशाली, शक्तिशाली और आदरणीय नहीं हो सकती। परतन्त्र राष्ट्रों का कोई सम्मान नहीं करता और आज हमारी यह शोचनीय दशा भारतवर्ष में स्वराज्य न होने के कारण ही है।


    ‌कुली बेगार आन्दोलन के संबंध में तरूण कुमाऊँ का रूख आक्रामक था। आन्दोलन के अंतिम दिनों में ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए दमन और दमन के विरोध में आन्दोलनकारियों द्वारा किये गये जबरदस्त प्रतिरोध के संबंध में तरुण कुमाऊँ ने लगातार समाचार प्रकाशित किए। स्थानीय आन्दोलन के साथ-साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में भी तरुण कुमाऊँ ने आक्रामक सक्रियता दिखायी। स्वराज्यवादी दल का तरुण कुमाऊँ कुमाऊँ ने प्रारम्भ से ही समर्थन किया। तरुण कुमाऊँ का मानना था कि चुनावों से जनता में राजनैतिक चेतना का प्रसार होगा। 1923 में तरुण कुमाऊँ ने सम्पादक मुकुन्दी लाल के समर्थन में एक प्रचारक पत्र का रूप धारण कर लिया था। चुनाव प्रचार के दौरान ही मुकुन्दीलाल अपनी व्यस्त्तता के कारण तरुण कुमाऊँ के प्रकाशन की ओर ध्यान न दे सके और अगस्त-सितम्बर, 1923 में चुनावों से पहले ही तरुण कुमाऊँ बन्द कर दिया गया। तरुण कुमाऊँ ऐसे समय बन्द किया गया, जब गढ़वाल ओर मुकुन्दी लाल दोनों को ही उसकी आवश्यकता थी। इस प्रकार तरुण कुमाऊँ लगभग एक डेढ़ वर्ष तक प्रकाशित हुआ। अपने सीमित प्रकाशन काल में भी स्थानीय तथा राष्ट्रीय आन्दोलन में अपनी सक्रियता के कारण तरुण कुमाऊँ स्पष्ट छाप अंकित कर सका।


    हमसे वाट्सएप के माध्यम से जुड़े, लिंक पे क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    Leave A Comment ?