तत्कालीन संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर विलियम म्यर के अल्मोड़ा आगमन पर उनको डिबेटिग क्लब में आमंत्रित किया गया था। विलियम म्यूर संस्था की गतिविधियों से प्रभावित हुए। बुद्धि बल्लभ पंत ने उनको अपना समाचार पत्र प्रकाशित करने की इच्छा से अवगत कराया। सर म्यूर ने उनको प्रोत्साहित किया। उन्होंने पंत को सलाह दी की पर्वतीय प्रदेश में जाग्रति लाने और अपनी समस्याओं को सरकार तक पहुँचाने के लिए हिन्दी में एक समाचार पत्र का प्रकाशन करें ताकि उनकी आवाज और भावनायें दूर-दूर तक पहुँच सके।
पंत ने इस सुझाव को कार्यान्वित करने हेतु केवल अल्मोड़ा ही नहीं वरन् सम्पूर्ण पर्वतीय प्रदेश में सर्वप्रथम छापा खाना स्थापित किया। कल्पना कीजिये आज से 145 वर्ष पूर्व जब यह क्षेत्र उपेक्षित था। यातायात, स चार के साधन नहीं थे, तकनीकी सुविधायें नहीं थी, एक प्रिंटिंग प्रेस स्थापित करना कितना चुनौती पूर्ण कार्य रहा होगा। कहना न होगा इसका अधिकांश व्यय पंंत जी ने स्वयं वहन किया था।
प्रेस की स्थापना के बाद इससे 1871 में अल्मोड़ा अखबार (जिसकी परम्परा में शक्ति साप्ताहिक आज भी प्रकाशित हो रहा है) नामक हिन्दी समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। अल्मोड़ा अखबार भारत वर्ष का द्वितीय, उत्तर प्रदेश का प्रथम साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र था और उत्तराखंड का प्रथम कुमाऊँनी अखवार है। बुद्धि बल्लभ पंत इसके संस्थापक सम्पादक थे। इस प्रकार श्री पंत को इस क्षेत्र के प्रथम सम्पादक होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने कुछ समय तक स्वयं सम्पादन किया बाद में राजकीय सेवा में व्यस्तता के कारण सम्पादन कार्य श्री सदानन्द सनवाल को सौंप दिया। अपने जीवन काल तक पंत जी अखबार का मार्गदर्शन और सहायता करते रहे। शुरुवात में अल्मोरा अखबार पाठकों की संख्या मात्र 10 थी जो थोड़ी समय उपरांत 150 पाठकों तक पहुंची। 'समय विनोद' (जयदत्त जोशी द्वारा सम्पादित, जो नैनीताल से छपने वाला उत्तराखंड का पहला हिंदी-उर्दू पाक्षिक पत्र था) के बंद हो जाने के कारण लोगों ने ‘अल्मोड़ा अखबार’ को हाथों-हाथ लिया। सन् 1871 से सन् 1888 तक ‘अल्मोड़ा अखबार’ लिथो प्रेस में छपता था उसके बाद ट्रेडल प्रेस में छपने लगा और फिर यह साप्ताहिक भी हो गया. यह अखबार लगभग 48 वर्षों तक प्रकाशित होता रहा।
पंत जी के बाद सदानन्द सनवाल, मंशी इम्तियाज अली, जीवानन्द जोशी, विष्णु दत्त जोशी सम्पादक रहे परन्तु पत्र का पेनापन खत्म हो गया। यह एक प्रकार से सरकार समर्थक हो गया था। ग्राहक संख्या घट कर 60 हो गयी थी। 1913 में कुमाऊ केसरी बदरीदत्त पाण्डे ने सम्पादन का भार सम्भाला। अखबार के तेवर बदल गये। पत्र राष्ट्रीयता तथा स्वतंत्रता संग्राम के समाचारों से ओत-प्रोत हो गया। ग्राहक संख्या दो हजार से ऊपर हो गयी थी। अल्मोड़ा अखबार में उन्होंने स्थानीय कुप्रथाओं कुली बेगार, नायक प्रथा आदि ज्वलत समस्याओं को भी उठाया। अंग्रेज सरकार की आलोचना के साथ-साथ उन्होंने अंग्रेज अफसरों के भले-बुरे कार्यों का भी विश्लेषण करना प्रारम्भ किया। अतः अग्रेज अधिकारी अल्मोड़ा अखबार और पाण्डे जी से रुष्ट रहने लगे।
14 जुलाई 1913 के अंक में प्रकाशित कुली बेगार प्रथा और जंगलात निति के विरोध में लेख को देखने से स्पष्ट होता है कि यह पत्र कुमाऊं में विकसित होती राजनैतिक चेतना का कैसा प्रतिबिम्ब बन रहा था।"कुली के प्रश्न ने हमको वास्तव में बेजार कर दिया है। यह प्रश्न जंगलात के कष्ट से भी गुरूतर है क्योंकि जगंलात का प्रश्न आर्थिक है पर यहां मानहानि है। आज जबकि अमेरिका के हबशी और दक्षिण अफ्रीका के असभ्य तक उन्नति की चेष्टा कर रहे है, कूर्मांचल जैसे सभ्य, विद्या सम्पन्न देश के सदस्यों को कुली कहा जाना कैसा अपमान जनक है, सो कह नहीं सकते। वह वास्तव में जातीय आत्मघात है, यदि एक चींटी को भी आप हाथ में बंद कर दें तो वह भागने का प्रयत्न करती है, पर हमको एक सभ्य सरकार कुली बना रही है और हम चुप्पी साधे बैठे रहे। शोक। महाशोक।"
तत्कालीन डिप्टी कमीश्नर लोमस तत्कालीन जंगलात नीति का कट्टर समर्थक, और बडे़ ही गर्म मिजाज का था। पाण्डे जी के जंगलात विरोधी लेखों के चलते उसने उन्हें बुलवाया और धमकी दी कि वह अखबार को बंद कर देगा। बद्रीदत पाण्डे के शब्दों में- "लोमस कभी पैर पटकता, दाँत पीसता और कभी मेज पर हाथ पटकता, वह फिरंगी मेरे से बेढंग बिगड़ चुका था और भालू की तरह गुस्से में था।"
अल्मोड़ा अखबार ने 1918 के होली अंक के संपादकीय में नौकरशाही पर व्यंग्य करते हुए 'जी हजूर होली' और डिप्टी कमीश्नर लोमस पर 'लोमस की भालूशाही' शीर्षक से लेख प्रकाशित किया। इस लेख के तुरन्त बाद एक घटना घटी लोमस एक सुन्दरी के साथ स्याही देवी के जंगल में मुर्गी का शिकार खेलने गया। इस दौरान एक कुली के शराब देर से लाने पर उसने कुली को छर्रे से मारकर घायल कर दिया। अप्रैल माह में शिकार खेलना भी कानूनन अपराध था। इस खबर को पाण्डे जी ने अत्यधिक आलोचना के साथ अखबार में छाप दिया। लोमस की देशभर में थू-थू होने लगी। लोमस तो अखबार बंद करवाने का मन पहले ही बना चुका था। अल्मोड़ा अखबार से 1000 रुपये की जमानत मांगी गई व व्यवस्थापक संदानंद सनवाल को बुलाकर त्यागपत्र लिखवा लिया गया। इस बाबत गढ़वाल से प्रकाशित समाचार पत्र-गढ़वाली ने समाचार छापते हुए सुर्खी लगाई थी-'एक गोली के तीन शिकार-मुर्गी, कुली और अल्मोड़ा अखबार।'
48 वर्षों तक निरंतर प्रकाशित होकर अल्मोड़ा अखबार अप्रैल 1918 में बंद हो गया। तब तत्कालीन जिलाधिकारी पाण्डे जी ने बिना हतोत्साहित हुए अक्टूबर में एक नया अखबार शक्ति नये मुद्रणालय देश भक्त प्रेस से प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। पाण्डे जी के ही शब्दों में, "बधु बल्लभ दा (स्व. बुद्धि बल्लभ पंत) के चलाये अल्मोड़ा अखबार का समर्थन करना ही इस पत्रिका का धर्म था।" (उस काल में 'राष्ट्रीय विचारधारा वाले व्यक्तियों को बन्धु का सम्बोधन दिया जाता था।') शक्ति अल्मोड़ा अखबार की परम्परा में आज भी प्रकाशित हो रही है। इस प्रकार बुद्धि बल्लभ पंत को शक्ति का पितामह कहा जा सकता है। 1913 से 1918 तक अल्मोड़ा अखबार और 1918 से 1947 तक का शक्ति का इतिहास इस क्षेत्र के स्वतंत्रता संग्राम का पर्याय है।
हमसे वाट्सएप के माध्यम से जुड़े, लिंक पे क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि
हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि