जागृत जनता (1939) - सन् 1939 में पीताम्बर पाण्डे ने हल्द्वानी से जागृत जनता का प्रकाशन किया। पीताम्बर पाण्डे राष्ट्रीय संग्राम में नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जो 1930 के आन्दोलन के दौरान तैयार हुई थी। यह पीढ़ी जनता की आन्दोलन में अधिक से अधिक प्रत्यक्ष भागीदारी के पक्ष में थी।
जून, 1938 में जब अल्मोड़ा में प्रान्तीय सरकार के संसदीय सचिव अजीत प्रसाद जैन को मानपत्र दिया जा रहा था, तो पीताम्बर पाण्डे आदि ने रूद्रदत्त भट्ट आदि कांग्रेसी नेताओं के विरूद्ध कुछ कहना चाहा था। बद्रीदत्त द्वारा स्वीकृति न दिये जाने के कारण युवाओं ने नारेबाजी और जुलूस के साथ प्रतिरोध किया था। पीताम्बर पाण्डे शक्ति से जुड़े थे, अतः उनपर शक्ति के संरक्षकों की ओर से क्षमा मांगने का दबाव डाला गया। पीताम्बर पाण्डे ने शक्ति से त्यागपत्र दे दिया और उपने उग्र विचारों के प्रचार हेतु जागृत जनता का प्रकाशन किया।
सन् 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो चुका था और ब्रिटिश सरकार ने सुरक्षा की दृष्टि से बहुत से आपातकालीन कानून भारत में लागू कर दिये थे। प्रेस पर भी कई प्रतिबन्ध लगा दिये गये थे। ऐसे समय में एक नये पत्र का प्रकाशन करना और वो भी ऐसे पत्र का जो सरकार विरोधी प्रचार करे, अत्यंत कठिन था। जागृत जनता ने कठोर प्रेस कानूनों के बावजूद भारत को युद्ध में जबरदस्ती शामिल करने के ब्रिटिश सरकार के प्रयासांं का तीव्र विरोध किया। युद्ध में सरकार को सहयोग न देने के लिए कांग्रेस द्वारा किए जा रहे व्यक्तिगत सत्याग्रह का प्रचार किया।
नवम्बर, 1940 में गोविन्द बल्लभ पन्त के गिरफ्तार होने का समाचार प्रकाशित करते हुए जागृत जनता ने युद्ध विरोधी नारे प्रकाशित किये। फलतः दिसम्बर, 1940 को उसके सम्पादक पीताम्बर पाण्डे को सजा और 300 रूपया जुर्माना हुआ। फरवरी, 1941 में पीताम्बर पाण्डे के रिहा हो गये परन्तु दिसम्बर, 1941 में एक बार पुनः पीताम्बर पाण्डे को जागृत जनता में प्रकाशित समाचारों के कारण एक माह के लिए जेल जाना पड़ा। इसके बावजूद जागृत जनता निरन्तर स्वतन्त्रता आन्दोलन का प्रचार और ब्रिटिश सरकार की आलोचना प्रकाशित करता रहा। सम्प्रदायवादियों तथा प्रतिक्रियावादियों को ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रोत्साहन देने की नीति का जागृत जनता निरन्तर विरोध करता रहा। अगस्त, सन् 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रारम्भ होने पर ब्रिटिश सरकार के दमन का सामना देश के सभी प्रमुख राष्ट्रवादी पत्रों को करना पड़ा। पांच वर्ष बन्द रहने के पश्चात मई, 1947 में जागृत जनता का पुनः प्रकाशन हुआ।
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