हीरा सिंह राणा | |
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जन्म | सितम्बर 16, 1942 |
जन्म स्थान | सेंट स्टीफंस हॉस्पिटल , दिल्ली |
पैतृक गांव | ग्राम- डंढोली, मानिला,अल्मोड़ा |
पिता | स्व. मोहन सिंह |
माता | स्व. नारंगी देवी |
पत्नी | श्रीमती विमला राणा |
व्यवसाय | लोक गायक |
भाषा | कुमाऊँनी |
मृत्यु | जून 13, 2020 |
हीरा सिंह राणा उत्तराखंड के लोकप्रिय गायक, कवि, संगीतकार के रूप में जाने जाते है। पहाड़ के दर्द, पहाड़ की प्रकृति का वर्णन, पहाड़ में फैले भेदभाव, राजनीति, पलायन आदि विषयों पर उन्होंने गीत और कविताएं कहीं है। उन्होंने समाज और अपने आसपास के माहौल से प्रेरित होकर ही गीतों की रचना की है। अपने गीत रंगीली बिंदी घाघरी काई को लिखने के पीछे प्रकृति से प्रेरित होकर वो गीत की रचना करने की जो वो कहानी बताते है उससे उनकी प्रतिभा का पता चलता है। शायद इसी कारण वे कैसेट युग से आज यूट्यूब और ऑनलाइन गीत सुनने के दौर में भी उनके गीत पहाड़ियों की पसंद बने हुए है। हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को मानिला गांव (अल्मोड़ा) में हुआ था। वे 5 भाइयों में सबसे बड़े थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मानिला से ही प्राप्त की, उसके उपरांत 1959 में वे नौकरी के लिए दिल्ली चले गए थे। हीरा सिंह राणा अपने चाहने वालो के बीच हिरदा कुमाऊँनी के नाम से विख्यात है। Heera Singh Rana Folk Singer of Kumaon
लगभग 15 साल की उम्र से राणा जी ने गीत गाने की शुरुआत की। एक बार उन्हें गोविंद बल्लभ पंत जी की पहली पुण्यतिथि पर दिल्ली में ही एक कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मौका मिला, जहां उन्होंने "आ लिली बाकरी" गीत को गाकर वहां मौजूद पहाड़ी लोगों का दिल जीत लिया। पंत जी की पत्नी ने वो गीत सुनकर उन्हें चाय पर अपने घर आमंत्रित किया और उन्हें प्रोत्साहित भी किया। 2019 में दिल्ली सरकार द्वारा कुमाउनी, गढ़वाली, जौनसारी भाषा अकादमी का पहला उपाध्यक्ष बनाया गया है।
जून 13 , 2020 को 78 वर्ष की उम्र में सुबह लगभग 2:30 बजे दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।
कुछ प्रसिद्ध गीत-
1. आ लिली बाकरी लीली
2. रंगीली बिंदी घाघरी काई
3. के भलो मान्यो छ हो
4. आजकल है रे जवाना।
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