लाल जड़ी | |
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स्थानीय नाम | लाल जड़ी, बाल छड़ी |
संस्कृत नाम | लोघ्र, शावरक लोघ |
हिंदी नाम | लोध | वनस्पतिक नाम | Himalayan Arnebia |
कुल | Boraginaceae |
पुष्पकाल | जून-जुलाई |
फलकाल | जुलाई-अगस्त |
प्रयोज्य अंग | मूल |
आयुर्वेदिक गुण | जीवाणुरोधी, फंफूंद नाशक, सूजन घटाने और घाव भरने में प्रयोग |
लाल जड़ी जम्मू, नेपाल व हिमालयी क्षेत्रों में मिलने वाली झाड़ है। जो विशेषकर 3300 मीटर से 4200 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है। वनस्पति शास्त्र के आधार पर यह श्लेष्मातकादि कुल का क्षुप है। जो कि एक से ढाई फुट तक लम्बा होता है। पत्र चार से पांच इंच तक लम्बे भालाकार होते है। नीचे के पत्र लम्बे तथा अग्रभाग के छोटे होते हैं। स्पर्श करने पर ये कुछ खुरदरे होते हैं। पुष्प कुछ बैंगनी रंग के होते हैं। पुष्पों के खिलने पर इस मूलिका की आकृति बिल्ली की पूंछ के समान प्रतीत होती है। मूल 6 से 7 इंच तक लम्बा एवं डेढ़ इंच मोटा होता है। मूल को हाथों से मलने पर यह लाल रंग छोड़ता है। देखने में इसका मूल रक्तवर्ण होता है। इसी जड़ी को लाल जड़ी कहते हैं। नेपाल में लाल जड़ी को महारंगी, उल्टे भूतकेश कहा जाता है।
उत्पत्ति स्थान
लाल जड़ी हिमालय घाटी के 3300 से 4200 मी. की ऊँचाई वाले स्थानों में खुले घास के नमदार स्थानों में पाई जाती है।
प्रयोग
लाल जड़ी में जीवाणुरोधी, फंफूंद नाशक, सूजन घटाने और घाव भरने वाले गुणों के कारन उत्तराखंड के ग्रामवासी लाल जड़ी के मूल को अत्युत्तम औषधी मानते हैं। यहाँ के ग्रामवासी कटे हुए स्थानों या टूटी हुई हड्डी और गठिया वाले भाग पर इसके मूल की लुगदी का प्लास्टर विशेष उपयोगी मानते हैं। रंगने के काम में मूल रस का उपयोग करते हैं। लाल जड़ी का प्रयोग खाने में प्राकर्तिक लाल रंग के लिए भी किया जनता है। पहाड़ी क्षेत्रों में इस जड़ी को सरसों के तेल में भीगा के रख देते है, कहा जाता है कि इस तेल को बालों में लगाने से बाल मजबूत और घने होते है। Laal Jadi Herbs Uses
लुगदी बनाने की विधि
लाल जड़ी व हेमर की छाल दोनों को समान भाग में लेकर कर पानी के साथ लुगदी बना लेने और लुगदी को संक्रमित अंग पर लेप करने से घाव शीघ्र ठीक हो जाता है। तथा टूटी हुई हड्डी वाले भाग पर इस लुगदी का प्लास्टर विशेष उपयोगी होता है।
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