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    नथ

    Uttarakhand nath nathuli Pahadi nath

    "कान में कनफूला ख्वारै की बिन्दुली,
    के भली छाजें छ नाकै की नथुली।"


    सिंगार के बिना महिला अधूरी मानी जाती है, गहनों के बिना सिंगार अधूरा माना जाता है और महिलाओं की नथ के बिना गहने भी अधूरे माने जाते हैं। सारे गहने एक तरफ होने पर भी नाक की नथुली को ज्यादा मान्यता दी जाती है। नथ को सुहाग का प्रतीक, सम्मान का प्रतीक, समृद्धि का प्रतीक, और खूबसूरती का प्रतीक माना जाता है। तभी स्त्री कहती है -


    नथ मेरी पचलड़ मथें
    के माँगू गंगनाथज्यू थें......


    महिला अपने पैरों की उँगलियों से लेकर सिर के बालों तक अलग-अलग तरह के गहने पहनती हैं। नाक में पहनने के लिए नथ, नथुली, नथनियां, बुल्ला, बुलाक, और फूलियाँ बनाई जाती हैं। नथ को पूरे भारत में सभी जगह पहना जाता है पर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल और गढ़वाल मंडल में पहने जाने वाली नथ सबसे अलग और सबसे लोकप्रिय है। और जगहों में नथ बहुत छोटी बाली जैसी होती है और सुहाग के चिह्न के रूप में पहनने की अनिवार्यता नहीं है जबकि उत्तराखंड में नथ बहुत बड़ी होती और इसे सुहाग से चिह्न के रूप में पहनना बहुत जरुरी माना जाता है।


    नथ का स्वरुप


    कहा जाता है कि सुनारों को एक नथ बनाने में भी काफी अधिक समय और मेहनत लगती है। एक कुशल कारीगर होने के बावजूद भी सुनार को एक नथ बनाने में 4 से 5 महीने लग जाते हैं। नाक के बाये तरफ पहने जाने वाली ये नथ के बाये तरफ एक चंदक बना रहता है जिसके आठ फुल्लियों में कुंदन भरा जाता है। उसके बाद लाल, हरे और सफेद मोती लगाये जाते है और उनके बीच में जालीदार काम करते हुए सुनार दाने गछाता है। कुंदन भरा हुआ चंदक हजारों सालों तक खराब नहीं होता है। चंदक में कुंदन का महत्व ज्यादा होता है परन्तु इसमें समय और महनत बहुत लगती है इसलिए वर्तमान में इसकी जगह पे कांच के टुकड़े भरे जाते है। नथ का संतुलन बनाने के लिए नथ के बाई तरफ एक डोरी लगाई जाती है। ये डोरी सोने की या लाल धागे की बनाई जाती है जिसके छौर में एक हुक लगा होता है जिसे कान के ऊपर बालों में फसाया जाता है। बहुत लोग नथ के निचे एक लटकन भी लगाते है। लटकन में चंदक और छोटे-छोटे घुंगरू भी लगे होते है। नथ में बाई तरफ अधिक कारीगरी करी जाती है। गढ़वाली नथ में लटकन नहीं होते है लेकिन उनकी कारीगरी बहुत सुन्दर होती है। कला कारीगरी में सबसे सुन्दर नथ टिहरी गढ़वाल में बनती है।


    पहाड़ी नथ और सभी जगह की नथ से बड़ी होती है। इसके आकर और वजन में बहुत प्रकार होते है। ज्यादातर औरतें ढाई-तीन तोले की नथ पहनती है। इससे कम एक - डेढ़ तोले की नथ होती है और ज्यादा बड़ी नथ छ से सात तोले की होती है। समृद्ध लोगों के घरों में दस से बारह तोले की नथ भी होती है। खानदानी नथ सास से अपनी बहु को मिलती है। वर्तमान में फैशन और महंगाई के कारण नथ का आकर में छोटी नथ पहनने का रिवाज हो गया है। ये नथ पोना या आधे तोले की होती है और पुरानी नथ के सामने बालि जैसी दिखती है। बड़ी नथ में लटकन ही एक-डेढ़ तोले का होता था।


    उत्तराखंड में नथ का महत्व


    kumauni women wearing nath

    सभी धातुओं में सोने को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और सोने के जेवर में नथ को मुख्य माना जाता है। उत्तराखंड में नथ को महिलाओं की सोभा, उनके पतियों की संपन्नता और उनके कुल-खानदान इज्जत का प्रतीक होती है। सिंदूर और गले में चरेऊ (काले दाने वाला मंगलसूत्र) के साथ नथ महिलाओं के सौभाग्य की निशानी होती है। काफी महिलाओं को शादी के समय दहेज के रूप में उनके मायके से भी नथ दी जाती है। उत्तराखंड में विवाह कर्मकांड घाघरा-पिछोड़ा और नथ के बिना नहीं होता है। अगर कोई नई नथ नहीं बना पाता हैं तब वे लोग अपने परिवार या रिश्तेदारों से मांग कर पहनते हैं फिर भी नथ के बिना शादी नहीं करते हैं। यहाँ गरीब परिवारों में एक नथ से बहुत लोगों की शादी हो जाती है।


    विवाह, ब्रत, नामकरण, छठी, पासणि, त्योहारों और पूजा के समय महिला नथ जरुर पहनती है। मंदिर और मायके और ससुराल जाने पर भी नथ पहनी जाती है


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