इस द्यूतोत्सव का आयोजन यमद्वितीया (भैयादूज) को अल्मोड़ा जनपद की रानीखेत तहसील के अन्तर्गत खैरना-कर्णप्रयाग मार्ग पर मछखाली एवं द्वाराहाट के मध्य में स्थित बग्वालीपोखर नामक स्थान पर हुआ करता था। एतदर्थ जुआरियों के अनेक दल कई दिन पूर्व में ही वहां अपना डेरा डालने लगते थे। इसमें सम्मिलित होने वाले लोकगीतों के गायकों एवं लोकनर्तकों के दलों के अतिरिक्त मछखाली के हुड़किये भी लोगों का मनोरंजन करने व इनाम पाने के लिए अपने वाद्ययंत्रों, हुड़कों तथा अपनी नर्तकी महिलाओं (हुड़क्यानियों) के साथ वहां पहुंच जाते थे। आसपास के क्षेत्रों के दुकानदार एवं व्यवसायी वर्ग के लोग भी इसमें सम्मिलित होते थे। आठ-दस दिन तक प्रात:काल से लेकर अर्धरात्रि तक यहां पर खूब चहल-पहल रहती थी। रात्रि को जुए के मुख्य स्थल के अतिरिक्त पैटोमैक्स गैस के प्रकाश में आसपास के खेतों व गधेरों में भी जआरियों के अड्डे लगते थे, जिसमें वे भूमि, पशु और स्त्रियों के जेवरों को भी दांव पर लगा देते थे। किंवदंती है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों का पीछा करते हुए कौरव यहां तक पहुंचे थे। थक जाने पर कौरवों ने यहां पर द्युत क्रीड़ा के जरिए कई दिनों तक अपनी थकान मिटाई और डेरा जमाए रहे। लेकिन उन्हों पांडवों का कोई पता नहीं चल पाया। इसी आधार पर कालांतर में यहां जुआ खेलने की परंपरा चली। लेकिन आधुनिक युग में जन जागरुकता के साथ ही जुआ खेलने की परंपरा खत्म हो गई है। लोक कलाकारों की दिलकश प्रस्तुति ने देवभूमि की सांस्कृतिक विरासत को मंच पर जीवंत किया।
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