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    रूद्रचंद - चंद वंश

    rudra chand

    बालो कल्याणचंद के पश्चात् रूद्रचंद गद्दी पर बैठा। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर इसका समय 1565 से 1597 ई. के मध्य ठहरता है। वह दिल्ली के मुगल बादशाह अकबर का समकालीन था। रूद्रचंद प्रारम्भ में (1565-87) तो एक स्वतंत्र राजा बना रहा, किंतु 1587 के बाद उसने अकबर की आधीनता स्वीकर कर कुमाऊँ को एक करद-राज्य बना दिया। उसके समय में हुसैनखां ने तराई पर कब्जा कर लिया था। फलतः रूदद्रचंद को तराई पर हमला करना पड़ा। तराई पर अधिकार कर उसने आधुनिक रूद्रपुर नगर की स्थापना की। इस खुशी में उसने अकबर को तिब्बती याक (झुप्पू) कस्तूरी, हिरनों की खालें आदि भेंट की थी। मुगल बादशाह ने उसे ‘चैरासी माल परगना’ का फरमान दे दिया, और उसे तब से ‘जमींदार’ कहना प्रारम्भ किया। अल्मोड़े का ‘मल्ला महल’ उसी का बनवाया हुआ है।


    रुद्रचंद 1588 में मुग़ल दरबार गया था। इस समय मुग़ल बादशाह अकबर था। रुद्रचंद के मुग़ल दरबार में आने का जिक्र जहांगीर ने अपने संस्मरणों में किया है. जहांगीर ने अपने संस्मरण में लिखा है कि


    लक्ष्मीचंद (रुद्रचंद का छोटा बेटा) के पिता ने उसके पास एक अर्जी भेजी थी कि राजा टोडरमल को आज्ञा दी जाए कि वे उसे मुगल दरबार में सम्राट के सम्मुख पेश कर दें और उसी अर्जी मंजूर की गयी।


    रुद्रचंद के लाहौर दरबार में पहुंचने का वर्णन फ़ारसी इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूंनी ने कुछ इस तरह किया है:


    कुमाऊं का पहाड़ी राजा रुद्रचंद लाहौर में मुग़ल शहंशाह को खिराज पेश करने आया। वह शिवालिक के पहाड़ों की ओर से सन 1588 ई. में लाहौर पहुंचा। न उसने और न उसके पुरखों (खुदा का कहर उन पर गिरे) ने कभी शाहंशाह के रूबरू खड़े होकर उनसे बात करने की आशा की होगी। वह अनेक दुर्लभ वस्तुएं सम्राट को उपहार में दने के लिये लाया था। इनमें एक तिब्बती गाय (याक) थी। एक कस्तूरा (मृग) था। यह गर्मी के कारण बाद को सड़क पर मर गया। मैंने इसे अपनी आँखों से देखा। इसकी शकल सियार जैसी थी। इसके मुख से दो छोटे-छोटे दांत बाहर निकले थे। सर में सींगों के स्थान पर गुम्मट थे। इस जानवर के पिछले अवयव कपड़े से ढके हुये थे। इसलिए में इसका अच्छी तरह निरीक्षण नहीं कर पाया। लोग कहते हैं कि उन पहाड़ों में ऐसे लोग हैं जिनके पंख होते हैं और जो उड़ भी सकते हैं और वे कहते हैं कि वहां एक ऐसा आम का पेड़ होता है जिसमें वर्ष भर फल आते रहते हैं। ईश्वर ही जानता है कि यह सच है कि नहीं।


    रूद्रचंद ने नये सिरे से सामाजिक-व्यवस्था भी स्थापित की। इसके लिए उसने ‘धर्म-निर्णय’ नाम की पुस्तक लिखवाई। इसमें ब्राह्मणों के गोत्र व उनके पारस्परिक सम्बन्धों का अंकन किया गया। गढ़वाल के ‘सरोला ब्राह्मणों (रसोईयों) की भांति कुमाऊँ में भी ऊँचे (चैथानी) ब्राह्मणों की मंडली बनाई जो परस्पर विवाह कर सकते थे। उसके नीचे पचबिड़िये (तिथानी) व उनके भी नीचे हलिये या पितलिये ब्राह्मणों के वर्ग बनाये। उसी के समय में गुरू, पुरोहित, वैद्य, पौराणिक, सईस (बखरिया), राजकोली, पहरी, बाजदार, बजनिया, टम्टा (ताम्रपत्रों के निर्माता व उत्कीर्णक), आदि पद निर्धारित किये गय। सईस, साहू व रंतगली के लिए गांव-गांव में दस्तूर निर्धारित किये गये। ओले पड़ने पर थाली बजाकर सभी को सतर्क करने वाले ओली ब्राह्मणों का वर्ग बनाया। उनके लिये भी गांवों में अनाज के रूप में दस्तूर निर्धारित किया। अनाज का छटा भाग गांवों से वसूलकर राजधानी पहुंचाने के लिए ‘कैनी-खसों’ का कार्य निर्धारण किया। घरों में सेवा कार्य के लिए ‘छयोड़े’ तथा ‘छयोड़ियां’ रखवाईं। शेष समस्त सामान्य जनता का नाम ‘पौड़ी पन्द्रह विस्वा’ रखा। नाई, कुम्हार, दर्जी, लोहार आदि शिल्पियों के लिए भी अनाज के रूप में दस्तूर की व्यवस्था की।


    रूद्र चंद के पास एक अच्छी खासी सुसंगठित सेना भी थी, जो प्रायः राजा की रक्षार्थ राजधानी में रहती थी। युद्धकाल में उसके रजवार या ‘ठक्कुर’ (ठाकुर) अपने आदमियों को लेकर उसके साथ युद्ध में जाते थे। त्रिमल चन्द्र के समय काल गडयूड़ी उसका ठाकुर था, जिसे विजयोपरान्त जमीन ‘रौत’ (पुरस्कार) में मिली थी। सीरा (डीडीहाट) से रूद्र चंद के भूमि-सम्बन्धी दस्तावेज प्राप्त हुए हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि उसने सीरा को मल्लों से पूर्णतया विजित कर उसमें अपना आधिपत्य कायम किया और पूरे सीरा मंडल (परगने) की भूमि का विधिवत् बंदोबस्त किया। रूद्रचंद की भूमि-सनदों में प्रत्येक गांव व उसके अन्तर्गत आने वाली भूमि का उल्लेख मिलता है। सीरा की विजय के फलस्वरूप अस्कोट, दारमा व जोहार भी उसके अधिकार में आ गये। ब्यांस-चैदांस की घाटियां पूर्ववत् जुमला-राज्य के आधीन बनी रही।


    सीरा (डीडीहाट) से रूद्र चंद के भूमि-सम्बन्धी दस्तावेज प्राप्त हुए हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि उसने सीरा को मल्लों से पूर्णतया विजित कर उसमें अपना आधिपत्य कायम किया और पूरे सीरा मंडल (परगने) की भूमि का विधिवत् बंदोबस्त किया। रूद्रचंद की भूमि-सनदों में प्रत्येक गांव व उसके अन्तर्गत आने वाली भूमि का उल्लेख मिलता है। सीरा की विजय के फलस्वरूप अस्कोट, दारमा व जोहार भी उसके अधिकार में आ गये। ब्यांस-चैदांस की घाटियां पूर्ववत् जुमला-राज्य के आधीन बनी रही।


    संदर्भ

    1- यमुनादत्त वैष्णव ‘अशोक’ की किताब कुमाऊं का इतिहास के आधार पर

    2- डॉ अजय सिंह रावत के लेख अनुसार


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