लोकगायकी विधा में बैर गायकी में दो गायक से लेकर दो दलों के बीच प्रश्नोत्तर शैली में गीत होते हैं। गीतों के माध्यम से ही एक-दूसरे का परिचय होता है और तर्को द्वारा एक-दूसरे को पराजित करने का रोचक खेल भी। गाते-गाते हाथों-हाथ वेद-पुराणों, महाभारत, रामायण से लेकर वर्तमान तक की व्यवस्था, खेत-खलिहान, अपने आस-पास यानी बहुत कुछ। बातें हैं तो सवाल करती हैं और दूसरे को उसका उत्तर देना होता है। उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध बैरियों में रीठागाड़ के स्व. मोहन सिंह हुए हैं। इनके भतीजे 84 वर्षीय पूर्व विधायक हीरासिंह बोरा भी इसके जानकार हैं। गणाई गंगोली क्षेत्र के एम.डी. अण्डोला भी बैर गायकी के मर्मज्ञ हैं। इस गायन विधा को मरता देख, रहे- बचे कलाकार चिन्तित हैं। लेकिन वह इतने लाचार हैं कि कुछ करने की स्थिति में नहीं है।
थल में रामगंगा के किनारे पीपल का वह पुराना वृक्षतले न जाने कितने वर्षों से भुगनौल गायक जुटते थे। इस बार (थल मेला 13 मार्च 2011) गिनती भर के लोग थे। पीपल को शीतल व एकदम सूनी लग रही थी। उस छांव में दर्द भरे स्वर' अ हा ऽ ऽ ऽ ऽ हा ऽ ऽ ऽ ऽ' कर निकले और स्व, कलाकारों को याद कर बैरिये (वैर गायक) अपनी पीड़ा कहने लगे। स्व. सोबन राम, राधे बल्लभ, दलीप सिंह सहित कई कलाकारों को याद करने के बाद कलाकारों ने इस बात पर दु:ख प्रकट किया कि सदियों से जो उनकी गायकी का अड्डा है, उसमें एक बड़ा चबूतरा तक नहीं बन सका है। सचमुच इतने बड़े थल मेले में बैरियों के स्थान पर एक छोटा सा टैण्ट लगा था और थी ठिठुरन । इन कलाकारों और उनकी कला को सम्मान देने के लिए इस स्थान को आकर्षक रूप दिया जाना चाहिए।
गणना करने पर पता चलता है कि 69 वर्षीय हिमानी राम, ग्राम काली विनायक, 62 वर्षीय एम.पी. टम्टा, ग्राम गोल, 50 वर्षीय गोपाल दा थल, 66 वर्षीय हेम राम, ग्राम लाटी डीडीहाट, 45 वर्षीय लीलाधर जोशी, महेन्द्र नगर नेपाल, 53 वर्षीय, हीरालाल, ग्राम सेनर, 65 वर्षीय प्रताप राम, काण्डे किरौली, 37 वर्षीय राजेन्द्र प्रसाद विश्वकर्मा, ग्राम गोल, 60 वर्षीय शेर राम, सेनर पुंगराऊ, 64 वर्षीय बुद्धिबल्लभ पाठक, भटीगांव थल, 36 वर्षीय राजेन्द्र राम, गोल, 35 वर्षीय हयात सिंह, कुमाल गांव, 70 वर्षीय रूप राम, तल्ला जोहार के अलावा मोती राम की भगनौल गायकी के बीच नये बैरियों में 23 वर्षीय पंकज सिंह मेहता, ग्राम अठखेत व 33 वर्षीय राजेन्द्र राम ग्राम काण्डेकिरौली ही मुख्य बैर गायक रह गये हैं।
इनमें भी अधिकांश का अभ्यास उन कठिन तर्कसंगत सवालों को सुलझाने का नहीं है, जिसके लिए बैरिये जाने जाते हैं। उल्लेखनीय है कि सदियों से इस पौराणिक, ऐतिहासिक, व्यापारिक मेले में बहुत दुर्गम इलाकों से तक बैरिये (बैर गायक) आकर जुटते थे और कई दिनों तक सवाल-जवाब गीतों के माध्यम से होते थे। गायन की इस विधा को देखने के लिए भारी भीड़ जुटती थी। वर्तमान में हो रहे दिखावे के आयोजनों ने बड़ी चादर फैला ली है। और मुख्य कलाकार व कला मरने को तैयार है। थल का जो स्थान बैर/भगनौल गायकों का अड्डा है वह सारी भूमि ग्राम बलतिर की है। समय के साथ सब कुछ बदला लेकिन बैरियों का यह स्थान सुन्दर न बन पाने का दु:ख है। ऐसे में अन्तिम सांसे गिन रही बैर गायिकी के गायकों ने वर्तमान हालातों पर अपने गीतों के माध्यम से तीखे निशाने साधे- 'सज्जनों हमर समय हाई-फाई में है ग्यो .... टी. बी. देखिबेर हमार सँणि नानतिन बिगड़ गई ..... पैंऽलि हमार गौं में ग्यू होंछी, अब सड़ी ग्यू हो ऽ ऽ। इंजैक्सन लगी टमाटर खाण लागि रयान.....। हमार परिवार बीमार हुण लागि रयान ....। (सज्जनों, हमारा समय हाई-फाई में चला गया है .... टी.बी. देखकर हमारी महिलाएं बच्चे बिगड़ रहे हैं .... पहले हमारे गांव में गेहूँ होता था, अब सड़ा गेहूँ। ....। इंजैक्शन लगे टमाटर खाने पड़ रहे हैं। हमारे परिवार बीमार होते जा रहे हैं .....।
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