उत्तराखंड जब उत्तरप्रदेश में विलय था। तब पहाड़ में सभी डिग्री कॉलेज और महाविद्यालय आगरा विश्वविद्यालय से संचालित हुआ करते थे। तब कॉलेज से संबंधित किसी भी काम हेतु छात्र छात्राओं को आगरा जाना पड़ता था। पहाड़ के सुदूर क्षेत्र वाले छात्र छात्राओं को तो और अधिक परेशानी उठानी पड़ती थी। ऐसे में यहां अधिकतर महाविद्यालयों के छात्रों ने संगठित होकर एक आंदोलन की शुरुआत की और प्रशासन से कुमाऊं और गढ़वाल के लिए अलग अलग विश्वविद्यालय की मांग करने लगे। धीरे धीरे ये आंदोलन अपना स्वरूप लेने लगा। देखते-देखते आंदोलन में कुछ समय बाद स्कूली इंटर कॉलेज के छात्र भी जुड़ने लगे। Kumaon - Garhwal University Movement
आंदोलन को क्षेत्रों के सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धजीवियों का भी समर्थन भी मिला। आंदोलन को तीव्र होते देख प्रशासन ने छात्रों पर लाठीचार्ज व उन्हें जेल में भी डालने लगे। सबसे बड़ी अति यह की गई कि छात्रों के जुलूस में गोलियाँ भी चलाई गई।
बात 15 दिसंबर 1972 की है जब पिथौरागढ़ के राजकीय महाविद्यालय के छात्र छात्राओं , इंटर कॉलेज के छात्रों व सामाजिक कार्यकर्ता प्रदर्शन कर रहे थे तब पुलिस द्वारा इन सभी पर गोलियाँ बरसा दी गयी। जिसमे एक स्कूली छात्र सज्जन सिंह और एक नेपाली मजदूर शोबन सिंह की मौत हो गई।
इससे गुस्साए आंदोलनकारियों ने अपना आंदोलन और उग्र कर दिया। अंत मे 1 मार्च 1973 को कुमाऊं और गढ़वाल को अपना अपना विश्वविद्यालय मिला। छात्र आंदोलनो में यह अपने दशक का सशक्त आंदोलन रहा।
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