सुरकंडा देवी मंदिर | |
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जिला | टिहरी गढ़वाल |
ऊँचाई | 2757m (9042ft) |
स्थिति | धनोल्टी से 6.7km |
निकटतम रेलवे स्टेशन | देहरादून रेलवे स्टेशन (67km) |
निकटतम हवाई अड्डा | जॉली ग्रांट देहरादून (100km) |
उत्तराखण्ड की खूबसूरत जगहों में से एक टिहरी गढ़वाल है यहाँ की खूबसूरती देखते ही बनती है। इसकी खूबसूरती को दोगुना करता है सुरकंडा देवी मंदिर जो कि टिहरी गढ़वाल जिले के जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर स्थित है। यह भारत के प्राचीन हिन्दु मंदिरें में से एक है जो कि 51 शक्ति पीठ में से है। सुरकंडा देवी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। इसके अलावा इसमें देवी काली की प्रतिमा भी स्थित है। यह मंदिर 2,757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जिस वजह से यहाँ जाने पर एक अलग ही नजारा देखने को मिलाता है। इस मंदिर पर जाने पर आपको दूर—दूर तक सिर्फ घने पहाड़ नजर आएगें और इसके उत्तर में हिमालय का शानदार नजारा देखने को मिलता है। मंदिर तक पहुॅंचने के लिए आपको कद्दूखाल से 3 किलोमीटर तक की पैदल रास्ता तय करना पड़ेगा। इसके अलावा यह मंदिर धनाल्टी से 6.7 किलोमीटर और चम्बा से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
किंवदंती
सुरकंडा देवी मंदिर ज्यादातर समय कोहरे से ही ढका रहता है। इस मंदिर से देहरादून और ऋ़षिकेश शहरों की खूबसूरती को देखा जा सकता है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कनखल में यज्ञ का आयोजन किया गया था पर इस यज्ञ में हिमालय के राजा दक्ष ने अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। यह बात भगवान शिव की पत्नी और दक्ष की बेटी सती को बिल्कुल भी पंसद नही आया। वह इस अपमान को सहन नहीं कर पायी और जिसके बाद दक्ष के यज्ञ में सती ने अपनी आहूती दे दी। इसे देख भगवान शिव क्रोध में आ गए और जिसके बाद उन्होनें सती को अपने त्रिशुल में लटकाकर पूरी पृथ्वी में घूमे। फिर जहाँ-जहाँ सती के शरीर के अंग गिरे वे जगह शक्तिपीठ कहलायी और जहाँ देवी का सिर गिरा वह जगह माता सुरकंडा देवी के नाम से जाने जाना लगा। इसके अलावा भी कहा जाता है कि राक्षसों द्धारा स्वर्ग में कब्जा कर लिए जाने के कारण देवताओं ने माता सुरकंडा देवी में जाकर प्रार्थना की जिसके बाद देवताओं ने राक्षसों पर जीत हासिल की।
प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां
सुरकंडा देवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां दी जाती है जिनमें औषधीय गुणों की मात्रा भरपूर होती है। इन पतियों के बारे में कहा जाता कि इन्हें घर में रखने से सुख समृधि आती है। जिस वजह से इसकी लकड़ियों का इस्तेमाल किसी दूसरे व्यावसायिक कार्य के लिए नहीं किया जाता है।
इस मंदिर में हर साल मई-जून के समय गंगा दशहरा का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा भी नवरात्रि का त्योहार भी बड़ी खासतौर पर मनाया जाता है।
कैसे पहुॅंचे
ऋषिकेश से चम्बा 60 किमी की दूरी तय करने के बाद आपको 20 किलोमीटर की दूरी और तय करनी होगी। जिसके बाद मंदिर तक पहुॅंचने के लिए आपको 2 किमी तक पैदल यात्रा तय करनी होगी। मसूरी से भी आप इस जगह पर आसानी से जा सकते हो।
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