कुशला नन्द गैरोला- डा. (1906-1976): गांव थाती, पट्टी बड्यारगढ़, टिहरी गढ़वाल। प्रख्यात क्रान्तिकारी, लोकप्रिय जन प्रतिनिधि, कुशल चिकित्सक और अनूठा देश प्रेमी।
1927 में आगरा कालेज से विज्ञान विषयों से इन्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसी वर्ष वीयना (आस्ट्रिया) चले गए। 1936 में वहाँ एम.डी. की डिग्री प्राप्त की। कुछ समय वहीं अध्यापन किया। यूरोप प्रवास में इनकी राष्ट्र प्रेम की भावना विकसित हुई और ये वहाँ की सामाजिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगे। वहाँ की हिन्दुस्तान एसोसिएशन के प्रमुख कार्यकर्ता बन गए। इस संस्था के माध्यम से इन्हें कई प्रमुख भारतीय नेताओं से सम्पर्क का अवसर मिला। पंडित नेहरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, डा. विधान चन्द्र राय और श्रीमती कमला नेहरू आदि प्रमुख भारतीयों से इनका निकट संबंध हो गया। जर्मन अधिकारी भी इनका खूब सम्मान करने लगे थे। डा. गैरोला में अपूर्व नेतृत्व क्षमता थी। एक बार इन्होंने प्रवासी भारतीयों की सभा में तिरंगा फहरा दिया था। कहते हैं, इनकी विलक्षण प्रतिभा को देखकर जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने इन्हें बर्लिन में भेंट करने का निमंत्रण दिया था।
1937 में डा. गैरोला स्वदेश लौटे। कुछ समय तक बनारस वि.वि. मेडिकल कालेज में लेक्चरर रहे, किन्तु नौकरी छोड़कर ऐतिहासिक 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में कूद पड़े। सन 1944 में गिरफ्तार कर लिये गये। अत्यधिक खतरनाक घोषित कर इनकी गिरफ्तारी के लिए दस हजार रुपयों का इनाम घोषित किया गया। लाल किले की एकान्त कोठरी में बंद करके इन्हें अमानवीय यातनाएं दी गई। 1945 के अन्त में पेरोल पर रिहा हुए। 1946 के आम चुनाव में गढ़वाल से भारी बहुमत से उ.प्र.वि. सभा के लिए निर्वाचित हुए। 1962 में उ.प्र. विधान परिषद के लिए मनोनीत किए गए। टिहरी रियासत में गठित अंतरिम मंत्रिमंडल में डा. गैरोला प्रमुख मंत्री थे। 1970 में इन पर पक्षाघात का आक्रमण हुआ और 1976 में लखनऊ में इनका निधन हो गया। इनकी एकमात्र सन्तान, इनकी सुपुत्री उषा डिमरी अपने परिवार के साथ लखनऊ में रहती हैं। गढ़वाल के इस महान सपूत, क्रान्तिकारी और प्रतिभा सम्पन्न विभूति का नाम उ.प्र. सरकार के सूचना विभाग द्वारा प्रकाशित गढ़वाल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची में अंकित न करना प्रदेश सरकार की बड़ी कृतघ्नता और निर्लज्जता है
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