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    सैम देवता

    sam devta story

    कत्यूरी सम्राट पिथौराशाही, उसके पुत्र दुलाशाही और पौत्र मालूशाही के शासनकाल में कुमाऊँ में सैम देवता की मान्यता के साथ एक नया वातावरण बना जो आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के जनजीवन में अभिन्न है। लोक गाथाओं में सैंम को गुरु गोरखनाथ का शिष्य, कालितारा का पुत्र, राजा निकन्दर का दौहित्र, गोरिल का मामा और हरीचंद “हरू” का भाई बताया जाता है। एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार सैम के जन्म और धार्मिक जागृति का समय 1389 से 1424 तक का था। कत्यूरी साम्राज्य का पतन इसी अवधि में हुआ। कत्यूर, बैराट और छिपुलाकोट में सैंम के राजनैतिक संघर्ष की कहानियां चन्द राज्य में हर गांव में फैल गईं। सैंम का संघर्ष ही कुमाऊँ में चन्द राजवंश के अभ्युदय का कारण बना।


    सैम की जन्मभूमि डोटी, नेपाल थी, जहां वह स्फटिक स्तम्भ से उत्पन्न हुआ था। वहां इसका नाम भुटालिंग देव है। डोटी में वह एक निर्धन माना डोटियाल के यहां ग्वाला बनकर रहा। निर्धन माना का सैम के आगमन से ही भाग्योदय हुआ। वहां से वह अपनी घोड़ी पर चढ़कर काली नदी पार कर चौसाल चोरगलिया, द्योलीबगर, हल्द्वानी, काठगोदाम, रानीबाग, चौन्देवी, उकाब, मुंडुवाबगढ़, भीमताल होते हुए ओनासेरी आया। छखाता के महारों ने उसे अपशब्द कहे। रुष्ट होकर उसने वहां धान न उगने का शाप दे दिया। बौरारौ (सोमेश्वर के पास) के मंदिर में इसकी प्रतिदिन पूजा होती है।

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