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    पन्थ्या काला

    panthya-kala

    पन्थ्या काला (जीवनकालः सत्रहवीं शताब्दी का मध्य): गाँव सुमाड़ी, पट्टी कटुलस्यू गढ़वाल इतिहास प्रसिद्ध आत्म बलिदानी। गढ़वाल में पन्थ्या दादा के सम्बन्ध में एक अनुश्रुति इस प्रकार प्रसिद्ध है:- गढ़वाल का राजा श्याम शाह अपनी निरंकुशता और सनकीपन के लिए इतिहास प्रासध बार राजा ने सुमाड़ी गाँव में राज्य की राजधानी स्थापित करने का हुक्म जारी कर दिया। 347 कर दिया कि गाँववासी गाँव खाली कर दें। उन पर ऊपर से कर (टैक्स) और लगा दिया। पथ्या काला के कहने पर गाँव वालों ने राजा को कर देना बन्द कर दिया। यही नहीं, राजधानी वहा बनाना पुरजोर विरोध किया। इस पर राजा आग बबूला हो गया। राजाज्ञा जारी हो गई कि सुमाड़ा गाव प्रात व्यक्ति को प्रतिदिन मृत्युदण्ड दे दिया जाय। गढ़वाल के इतिहास में यह दण्ड 'रोजा' नाम स प्रासद्ध हआ। मृत्युदण्ड की राजाज्ञा से भी सुमाड़ी गाँव के लोग भयभीत और विचलित नहीं हुए। गाव वाला न प्रतिदिन एक व्यक्ति की बलि देनी प्रारम्भ कर दी। पंथ्या काला ने जब देखा कि गाँव खाली होने की स्थिति में आ गया है, तो विरोध स्वरूप उसने गाँव के ऊपर एक धार (टीला) में पहुंचकर बलि चढ़ने से पहले आत्म-दाह कर लिया। कहा जाता है कि पंथ्या काला के साथ उस दिन चार महिलाओं समेत इक्कीस और व्यक्तियों ने भी मिलकर आत्म-दाह कर लिया।


    इस लोमहर्षक कॉड के बाद बादल मंडराए, बिजली कड़की और मूसलाधार वर्षा हुई। भूकम्प का झटका आया और राजा सिंहासन से गिर गया। एक ज्योतिषी का सलाह पर इस लोमहर्षक कॉड का प्रायश्चित करने राजा स्वयं सुमाड़ी गाँव गया। पंथ्या काला की दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अपित की। दिवंगत आत्माओं की स्मृति में वहां एक भवन का निर्माण करवाया और कुलदेवी की मर्ति स्थापित की। आज भी लोक गीतों, जागरों, पंवाड़ों में पथ्या दादा के आत्म बलिदान को गौरवपर्ण शब्दो में गाया जाता है। धन्य है पंथ्या दादा और अमर है उसका बलिदान।


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