जागड़ा उत्सव गढ़वाल मण्डल के देहरादून जिले के जौनसार - बावर क्षेत्र के टोंस नदी के तट पर हनोल में स्थित लोकदेवता महासू देवता से सम्बन्धित हैं। हनोल के मंदिर के साथ महासू देवता के थैना, लखवाड़, बिसोई, लखस्यार, समालाटा आदि मंदिरों में भी यह उत्सव अयोजित होता है। यह धार्मिक उत्सव भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया व चतुर्थी के दिन आयोजित किया जाता है।
जागड़ा का अर्थ होता है रात्रि जागरण। इस दिन वहां श्रद्धालुजन व्रत रखकर रात भर महासू देवता की पूजा पाठ व स्तुति करते हैं। अगले दिन प्रातः काल पुजारी द्वारा प्रातः देव मूर्ति को यमुना में स्नान के लिए बाहर लाते हैं। पालकी में रखकर देव मूर्ति को शोभायात्रा के रूप में यमुना में स्नानार्थ ले जाया जाता है। देवता की मूर्ति को एक बार उठाने के बाद पुनः मंदिर में स्थापित करने तक जमीन पर नहीं रखा जाता है। मंदिर में पुनः स्थापित किये जाने पर देवता की पूजा अर्चना की जाती है। पूजा की समाप्ति के बाद श्रद्धालु अपने व्रत को तोड़ते हैं। उत्तराखण्ड के साथ - साथ हिमाचल प्रदेश व अन्य जगहों से भी श्रद्धालुजन इस उत्सव के लिए आते हैं। यह मेला राजकीय मेला घोषित हो चुका है। (Mahasu devta temple)
हनोेल का महासू देवता का मंदिर -
इस मंदिर की स्थापना 9वीं शताब्दी की मानी जाती है। यह मंदिर चकराता के पास टोंस नदी के पूर्वी तट पर हनोल गांव में स्थित है। महासू देवता चार देव भाई हैं जिनके नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बौठा महासू, व चालदा महासू हैं। महासू शब्द ‘ महाशिव ‘ का अपभ्रंश हैं। हनोल में चारों महासू देवता भाइयों का मुख्य मंदिर है। इस मंदिर में मुख्य रूप से बौठा (बूठिया) महासू की पूजा होती हैं । महासू देवताओं के अतिरिक्त यहां इनके चार वीर - कपला, कैलथा, कैलू और शेर कुड़िया की मूर्ति भी स्थापित है। यहां मंदिर के गर्भ गृह में भक्तों का जाना मना है केवल मंदिर के पुजारी ही गर्भ गृह में प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर में कई दशकों से एक ज्योति जलती रहती है। इस मंदिर का निर्माण हूण राजवंश के पंडित मिहिरकुल हूण ने करवाया था। हनोल गांव का नाम हूण भट ( भट का अर्थ योद्धा होता है ) ने करवाया था। हनोल को पहले चकरपुर कहा जाता था। एक बहुत ही दिलचस्प बात है कि यहां हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक भेंट किया जात है।(Mahasu devta hanol)
पौराणिक कथा के अनुसार इस क्षेत्र में किरमिक नामक राक्षस का बहुत आतंक था। राक्षस से छुटकारा दिलाने हेतु हुण भाट ने भगवान शिव और पार्वती की तपस्या की तथा उनसे इस राक्षस से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की तब शिव और पार्वती ने चार भाई महासू की उत्पत्ति की। महासू भाइयों ने राक्षस का वध करके राक्षस से क्षेत्रवासियों को मुक्ति दिलाई। तब से वहां के लोगों ने महासू देवता को अपना आराध्य माना।(Uttarakhand Himchal pradesh)
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