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    इन्द्र सिंह 'गढ़वाली'

    इन्द्र सिंह 'गढ़वाली' (अनुमानित जीवनावधि 1906-1952): जन्मः टिहरी गढ़वाल के किसी गांव में। स्वाधीनता प्रेमी, अदम्य साहसी, उत्साही, युवा क्रान्तिकारी। इन्द्र सिंह 1928-30 के मध्य आजीविका के लिए एक समाचार पत्र विक्रेता के यहाँ अमृतसर में काम करते थे। वह 'नौजवान भारत सभा', जो बाद में 'हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ' के नाम से प्रसिद्ध हुई, के सक्रिय सदस्य थे। 1929 दिसम्बर में लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन हुआ। इन्द्र सिंह ने उसमें सक्रिय स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया। इसी वर्ष क्रान्तिकारी शम्भुनाथ 'आजाद' ने इन्हें क्रान्तिकारी दल का सदस्य बनाया। दिसम्बर, 1930 में एक दिन जब इन्द्र सिंह शम्भुनाथ 'आजाद' के साथ अस्त्र-शस्त्रों का बण्डल लेकर दिल्ली से बनारस जाने का प्रयास कर रहे थे, तो पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। दिल्ली में कश्मीरी गेट थाने में पांच दिनों तक भारी यंत्रणा के पश्चात इन्हें 7 वर्ष कठोर कारावास का दण्ड दिया गया।


    लाहौर हाईकोर्ट में अपील के बाद सजा घट कर 3 वर्ष हो गई। तीन वर्ष बाद मुल्तान कारागार से मुक्त होकर जब बाहर आए तो 'नौजवान भारत सभा' ने इन्हें एक्शन के लिए दक्षिण भारत भेज दिया। 1933 में इन्द्र सिंह मद्रास में सभा के प्रधान कार्यालय में रोशनलाल मेहरा 'शहीद' के साथ रहने लगे। उन्हें नौजवान सभा की पंजाब ग्वालियर दिल्ली और कलकत्ता की शाखाओं से सम्पर्क का कार्य सौंपा गया। मद्रास में अन्य कार्यों के अतिरिक्त मद्रास प्रेसीडेन्सी के गवर्नर को मारने की योजना बनाई गई। गवर्नर की यात्रा सम्बन्धी सूचनाओं को एकत्र करने के लिए इन्द्र सिंह प्रेम प्रकाश मुनि के नाम से साधु वेश में रहने लगे। किन्तु सूचना पाकर 4 मई 1933 की दोपहर को, सभा के मुख्यालय में जो मद्रास नगर के मध्य में स्थित तम्बू चट्टी स्ट्रीट गली में एक मकान में था, इन्द्र सिंह को सशस्त्र पुलिस और सी.आई.डी. दल ने घेर लिया। इन्द्र सिंह ने शीघ्र ही गुप्त कागजात जला डाले। अपनी छह राउंड की पिस्तौल को लेकर वह अपने तीन साथियों के साथ मकान की छत पर चले गए। इन चारों क्रान्तिकारियों ने पांच घंटे तक वीरतापूर्वक पुलिस और गोरा सैनिकों की टुकड़ी के साथ मोर्चा लिया। इन्द्र सिंह के साथी गोविन्दराम बहल को, जो अब शस्त्रहीन था, पुलिस कमिश्नर ने अपनी गोलियों से भून डाला।


    इन्द्र सिंह पकड़ लिये गए। उन्हें 20 वर्ष काला पानी का दंड मिला। शम्भुनाथ 'आजाद' को भी कालापानी की सजा मिली। इन्द्र सिंह और आजाद को 'कंडेम्ड सेल' (फाँसी की कोठरी) में रखा गया। जेल में इनके उग्र व्यवहार के कारण इन्हें वहाँ से हटाकर बेल्लारी सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया। वहाँ इन्हें सरदार बंता सिंह उर्फ हजारा सिंह के साथ फांसी की कोठरी में रखा गया। इन वीरों ने कारागार के एक वार्डन जोजेफ से मित्रता गांठ ली और जेल से भाग निकले। फिर पकड़ लिए गए और अंडमान की सेलुलर जेल भेज दिए गए। 1937 में बन्दियों ने सेलुलर जेल में ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया। फलस्वरूप राजनैतिक बन्दियों के साथ इन्हें लाहौर सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया। अनेक प्रयत्नों के पश्चात सर सिकन्दर हयात खाँ के मंत्रिमंडल के समय केन्द्रीय सरकार की आज्ञानुसार 'मद्रास सिटी बम केस' के अभियुक्त इन्द्र सिंह उर्फ प्रेम प्रकाश मुनि को और 'ऊटी बैंक केस' के अभियुक्त सरदार बंतासिंह और खुशीराम मेहता को 1939 में जेल से मुक्त कर दिया गया, किन्तु पंजाब सरकार ने इन तीनों को पंजाब से निष्कासित कर दिया। पंजाब से आकर इन्द्र सिंह ने मेरठ में 'कीर्ति किसान' नामक पत्रिका के कार्यालय में डेरा डाला। 'आजाद' भी वहीं पहुँच गया और देवली कैम्प में नजरबन्द रखा गया। 1945 में मुक्त हुए। मेरठ आकर 1952 तक भारतीय साम्यवादी दल (सीपीआई) के कार्यालय में काम करते रहे। फिर सहसा किसी अज्ञात स्थान को चले गए। जहां से इनका कुछ अता-पता आज तक नहीं चला। ऐसी थी उस वीर गढ़वाली की अदम्य राष्ट्रभक्ति।


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