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    बलदेव सिंह आर्य

    baldev singh arya uttarakhand

    बलदेव सिंह आर्य (1912-1992): उमथ गांव, पट्टी सीला, गढ़वाल। स्थाई निवास रतनपुर, कोटद्वार गढ़वाल। स्वाधीनता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय जन-प्रतिनिधि, राजनेता, समाजसेवी, हरिजनोत्थान को समर्पित व्यक्ति, गाँधीवादी विचारक। सर्वाधिक लंबी अवधि तक विधायक और मंत्री पद को सुशोभित करने वाले उत्तराखण्ड के पहले और एक मात्र विधायक।


    सन 1930 में विद्यार्थी जीवन में ही गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेकर हरिजनोत्थान तथा छुआछूत उन्मूलन जैसे कार्यों में लग गए। 1930 में एक राजद्रोहात्मक भाषण देने पर डेढ़ वर्ष कैद की सजा मिली। 1932 में यमकेश्वर में पकड़े गए, 6 माह का कठोर कारावास और जुर्माना हुआ। 1941 में नजरबन्द रखे गए। गढ़वाल में सामाजिक क्रान्ति की अगुवाई करने में आर्य जी का बड़ा योगदान है। 1941 में बिंजोली और मैदानी (गढ़वाल) हरिजनों की डोला-पालकी की बारातों पर सवर्णों द्वारा मारपीट कर दिए जाने का समाचार पाकर गांधी जी ने आपको अन्य साथियों सहित समस्या के समाधान हेतु गढ़वाल भेजा। इस उत्तरदायित्व के निर्वहन के कारण आप 1942 के राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग नहीं ले सके। आर्य जी के प्रयासों के फलस्वरूप हरिजनों की बारातें डोला-पालकी में जाने लगीं। आर्य जी ने अपने प्रयासों से हरिजन छात्रों के लिए कई स्कूल खुलवाए। इनकी पहल पर सेठ डालमिया ने गढ़वाल में 17 स्कूल खुलवाए, जिनका व्यय-भार स्वयं वहन किया।


    1950 में आर्य जी प्रोविजनल पार्लियामेंट के सदस्य मनोनीत हुए। प्रथम आम चुनाव में गढ़वाल से उ.प्र. विधान सभा के लिए चुने गए। बाद के वर्षों में 1957, 62, 74, 80, 85 के चुनावों में विधान सभा और 1968 से 1974 तक विधान परिषद के सदस्य रहे। विधान परिषद में सदन के नेता रहे। 1952 में पं. गोविन्द बल्लभ पन्त के मुख्य मंत्रित्व काल से लेकर सभी कांग्रेस सरकारों में आप मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। उ.प्र. सरकार द्वारा नियुक्त कोल्टा जांच समिति के अध्यक्ष, 1967 में यू.पी.सी.सी. के महामंत्री, वर्षों तक एआईसीसी के सदस्य, वनों की समस्या के निराकरण के लिए गठित तथ्य निरूपण समिति, अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ के उपाध्यक्ष आदि कई राज्य स्तरीय समितियों से जुड़े रहे। आर्य जी का संपूर्ण राजनैतिक जीवन और कार्यशैली अत्यन्त गरिमामय और अविवादित रही। हरिजनों के ही नहीं, सभी के सर्वमान्य और सर्वप्रिय नेता रहे आर्य जी। 22 दिसम्बर 1992 को पांच तत्व में विलीन हुए।

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