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    हरगोविन्द पन्त

    hargovind pant

    हर गोविन्द पन्त

    जन्ममई 19, 1885
    जन्म स्थानग्राम- चितई, अल्मोड़ा
    शिक्षाएल.एल.बी
    व्यवसायवकील, स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता
    राजनीतिक गुरुबाल गंगाधर तिलक
    उपनामउत्तराखंड का जननायक
    मृत्यु1957

    हर गोविन्द पन्त (1885-1957): ग्राम चितई, अल्मोड़ा। स्वाधीनता संग्राम सेनानी, जनसेवी और राजनेता। 1909 में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण कर कुमाऊँ के सार्वजनिक जीवन में भाग लेना प्रारम्भ किया। कुमाऊँ परिषद की बुनियाद डालने वालों में से पन्त जी एक थे। 1920 में काशीपुर में पन्त जी की अध्यक्षता में 'कुमाऊँ परिषद' का वार्षिक अधिवेशन हुआ। अधिवेशन में कुली-उतार, बेगार व बर्दायश प्रथा को अमानवीय और गैरकानूनी करार दिया गया। जनवरी, 1921 में बागेश्वर में उत्तरायणी मेले के अवसर पर पं. हरगोविन्द पन्त, बद्रीदत्त पाण्डे और चिरंजी लाल जी के नेतृत्व में 40 हजार के जनसमूह ने इन कुप्रथाओं को समूल नष्ट करने का संकल्प किया। सभी रजिस्टर सरयू नदी में बहा दिए गए। इस प्रथा के उन्मूलन का अर्थ था- ब्रिटिश सरकार को चुनौती। पन्त जी प्रखर बुद्धि के नामी वकील थे। जनसाधारण में स्वतंत्रता की भावना जागृत करने के लिए वे मात्र एक पंखी लेकर वर्षों गाँव-गाँव घूमे। उनका जीवन एक तपस्वी जैसा बन गया था। कुछ समय वकालत छोड़कर आप समाज सेवा की ओर मुखातिब हुए। सीतलाखेत में एक सिद्धाश्रम चलाया। देशभक्त भगीरथ पाण्डे के साथ मिलकर ताड़ीखेत में प्रेम विद्यालय की स्थापना की। 1925 से 1928 तक पन्त जी जिला परिषद अल्मोड़ा के अध्यक्ष रहे। अपने कार्यकाल में इन्होंने ग्राम सुधार को विशेष प्रोत्साहन दिया। नए प्राइमरी और मिडिल स्कूल खोलकर वहां देशभक्ति पूर्ण गीतों का प्रचार किया।


    कूर्मान्चल में कुलीन ब्राह्मणों द्वारा हल न चलाने की प्रथा वर्षों से चली आ रही थी। इस कुप्रथा के विरुद्ध पन्त जी ने चुनौती स्वीकार की और 1928 में बागेश्वर में अपने हाथ से हल चलाया। कुमाऊँ की सामाजिक क्रान्ति के इतिहास में यह एक नए युग का सूत्रपात था। कुमाऊँ की देखादेखी गढ़वाल में भी कुली बेगार, कुली बर्दायश का अन्त हुआ। 1930 में पन्त जी के सभापतित्व में दुगड्डा (गढ़वाल) में एक राजनैतिक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में राजनैतिक आन्दोलन की रूपरेखा तैयार की गई। 1930 के बाद इन्होंने वकालत छोड़ दी। कांग्रेस के पन्त जी सक्रिय सदस्य थे। कुछ वर्ष अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। अल्मोड़ा कांग्रेस की उन्हें रीढ़ कहा जाता था। स्वाधीनता संघर्ष के सभी आन्दोलनों में पन्त जी ने खुलकर भाग लिया। फलस्वरूप 1930, 1932, 1940 के आन्दोलनों मे क्रमशः डेढ़ वर्ष और 1 वर्ष कठोर कारावास की सजा दी गई । 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में इन्हें अल्मोड़ा जिले में सबसे पहले नजरबन्द किया गया। स्वतंत्रता संग्राम की अवधि में पन्त जी ने लगभग छह वर्ष तक जेल की कठोर यातनाएं सहीं।


    1923 में अल्मोड़ा जिले से 'स्वराज्य पार्टी' के टिकट पर व्यवस्थापिका सभा, 1937 में उ.प्र. असेम्बली और 1946 में यहीं से प्रान्तीय असेम्बली के लिए चुने गए। 26 जनवरी, 1950 तक 'विधान निर्मात्री परिषद' के सदस्य रहे। 1950 में इन्हें विधान सभा का उपाध्यक्ष चुना गया। 1957 में भारी बहुमत से लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। इसी वर्ष भारी बहुमत से लोक सभा के उपाध्यक्ष चुने गये। 1950-56 की अवधि में बद्रीनाथ मंदिर कमेटी के अध्यक्ष रहे। पन्त जी में बच्चों जैसी सरलता, बेफिक्री, तपस्वियों की सी गम्भीरता, सहिष्णुता व सदा प्रसन्न रहने के गुण विद्यमान थे। वे सादगी की मूर्ति थे और अभिमान से बहुत दूर । 1957 में संदिग्ध परिस्थितियों में इनकी मृत्यु हो गई।


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