" देणा होये पंचनाम देवा हे, दैणा होया भूमि का भूमियाला हे "
भुमियाल देवता भूमि के देवता होते हैं। पहाड़ क्षेत्र में खेती बाड़ी प्रत्येक गांवों में होती है। इन्हें भूमि या फसलों को जंगली जानवरों और प्राकृतिक आपदाओं से बचाने व रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। अर्थात भूमि या क्षेत्र की रक्षा करने वाले भूमियाल या क्षेत्रपाल देव हुये। ये बहुत दयालु देवता होते हैं, यह किसी को सताते नहीं है। भूमिया देवता के जागर भी लगाये जाते है। कहीं कहीं इन्हें भूमसेन भी कहा जाता है, खासकर पहाड़ों से नीचे वाले इलाकों में। फसल उगाने से पहले भूमिया देव की पूजा की जाती हैं । फसल उगने के बाद पहला हिस्सा इन्हें चढ़ाया जाता है। साथ में पूजा पाठ भी किया जाता है व फल, फूल, रोंट, भेंट आदि भी चढ़ाई जाती है। नंदा राजजात यात्रा के समय भी डोली या छंतोली के साथ कई क्षेत्रों के भूमियाल देवताओं के निशान भी शामिल किये जाते है। रम्माण में भी स्थानीय देवताओं के साथ भूमियाल देवता की पूजा भी बड़ी धूमधाम से की जाती है।
उत्तराखण्ड में कई देवताओं को भूमियाल देवता या क्षेत्रपाल के रूप में पूजा जाता है। पौड़ी गढ़वाल में कंडोलिया देवता , मासी (चैखुटिया) मेें भूमियाबाबा, जागेश्वर में झांकरसैम प्रमुख मंदिर है।
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