चन्द्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी साथी भवानी सिंह रावत - पौड़ी गढ़वाल जिले के पंचुर गांव में 8 अक्टूबर 1910 के दिन भवानी सिंह रावत का जन्म हुआ। पिता फौज के कप्तान थे। इसलिए विभिन्न फौजी छावनियों में बचपन बीता, उन्होंने स्वयं अंग्रेजों का व्यवहार भारतीयों के प्रति देखा, अवश्य ही मन आहत रहा होगा। पिता नाथ सिंह सेवा निवृत्ति के बाद दुगड्डा के पास नाथपुर गाँव में रहने लगे। भवानीसिंह की पढ़ाई चन्दौसी और हिन्दू कॉलेज दिल्ली में हुई। 1927 में वे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। उससे पहले वे पंजाब केसरी लाला लाजपतराय से भी मिल चुके थे। वे हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ के सक्रिय सदस्य बन गए। गुप्त गतिविधियों में भाग लेने लगे। लार्ड इरविन की ट्रेन पर बम फेंकने वालों में भवानी सिंह रावत भी शामिल थे। 6 जुलाई 1930 गाड़ोदिया स्टोर में डकैती पड़ी। वे उसमें शामिल थे। दल के लिए पैसे की जरूरत थी। तब वे हिन्दू कॉलेज के विद्यार्थी थे।
एक बार दल के प्रशिक्षण के लिए सुरक्षित स्थान की जरूरत महसूस हुई। दिल्ली में निगरानी बड़ गयी थी। चन्द्रशेखर आजाज व नए क्रांतिकारियों को दुगड्डा ले गए। वहाँ घने जंगल में प्रशिक्षण दिया। भवानी सिंह, आजाद, भगत सिंह, यशपाल के घनिष्ठ साथियों में थे। क्रांतिकारी दल के एक सदस्य कैलाशपति पर हवालात में दबिश डाली गयी तो उसने कई भेद उगल दिए। 19 फरवरी 1931 को चन्द्रशेखर आजाद इलाहाबाद में शहीद हुए और 23 मार्च 1931 को भगतसिंह राजगुरू सुखदेव को फांसी दी गयी। क्रांतिकारियों में निराशा का माहौल था। भवानी सिंह को मुम्बई भेजा गया। वहाँ वे एक मुसलमान की तरह दाड़ी बड़ाकर रह रहे थे। एक उर्दू पत्रिका का, साथी इस्माइल के साथ संपादन किया। पुलिस टोह लेती रही। 25 दिसम्बर 1932 को गिरफ्तार किए गए। कोई प्रमाण न मिलने के कारण स्पेशल मजिस्ट्रेट ने रिहा कर दिया। उनके पिता की पेंशन बंद कर दी गयी। वे अपने गांव चले गये। आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए। 1967 से लगातार चन्द्रशेखर आजाद के स्मारक का दुगड्डा में निर्माण कार्य में लगे रहे। जिसे 1973 में अंजाम दिया। समाजवाद, समानता, शोषणहीन समाज के सपने संजोए-संजोए 6 मई 1986 को अनन्त में समा गए।
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