बौराणी मेला पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग क्षेत्र के बौराणी गांव में सैम देवता के मंदिर प्रांगण में मनाया जाता है। यह मेला दिपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा की रात में मनाया जाता है। जिसमें पुलाई और चापड़ गांव के बोरा ढोल-दमाऊ के साथ लगभग 22 हाथ लम्बी चीड़ के छिलुके से बनायी मशाल कंधे पर लाते है। इस मसाल को मंदिर के चारों ओर सात बार परिक्रमा करके मंदिर के सामने स्थापित किया जाता है। मेले में आया प्रत्येक व्यक्ति इसके दर्शन करता है। इसके पश्चात नौर्त लगते है। हुड़के की थाप पर झोड़ा चांचरी लगायी जाती है। सैम देवता के मंदिर के प्रांगण में अखंड धूनी के सामने देव डांगर द्वारा नौर्त सुबह तक चलते हैं। मेले में दुकाने भी सजती है। जिसमें पूजा सामग्री, खाने-पीने की सामग्रियां आदि सामान रखा जाता है। मंच भी सजाया जाता है जहां विविध प्रकार के कार्यक्रम भी होते हैं। कार्तिक माह की ठण्ड में भी लोग भारी मात्रा में मेले में शिरकत करते हैं। Burari Mela Pithoragarh
बौराणी मेला पहले घरेलू हाथचक्कीयों, घराटों (पनचक्कियों) के पाट, पत्थर के बने बर्तन और सिल-बट्टे के व्यवसाय के लिए बहुत प्रसिद्ध था। वर्त्तमान मे पत्थर की बनी इन वस्तुओं का न के बराबर प्रयोग होता है। साथ ही इस मेले में कुथलिया बोरों के द्वारा बनाये जाने वाले भांग के रेशों के कुथलों को भी बेंचा जाता था। ये कुथले कुमाऊँ ही नहीं नेपाल में भी बहुत पसंद किये जाते थे। कुमाऊँ और नेपाल के लोग यहाँ से बहुत बड़ी संख्या में इन्हें यहाँ खरीद के ले जाया करते थे। Burari Mela Gangolihat
पुराने समय से यहां इस मेले में जुआ खेलने की कुप्रथा थी। यह कुप्रथा इतनी फैली कि बौराणी मेला, जुए के मेले के रूप में विख्यात हो गया। कहा जाता है कि सिर्फ आस पास गांव से ही नहीं अपितु मैदानी इलाकों से भी जुआरी जुआ खेलने यहाँ आते थे। ये भी कहा जाता है कि जुआ खेलने वालों की तादाद इतनी होती थी कि मंदिर परिसर से कुछ किलोमीटर दूर लम्बकेश्वर महादेवर की पहाड़ी तक बहुत सारे फड़ लग जाया करते थे। जागरूक स्थानीय ग्रामीण और कुशल प्रशासनिक अधिकारियों के सहयोग से सदियों से चली आ रही ये कुप्रथा आखिर बंद कराई जा सकी। 2014 के बाद यहां मेले में जुआ खेलने में रोक लगा दी गयी।
बौराणी मेला पहले घरेलू हाथचक्कीयों, घराटों (पनचक्कियों) के पाट, पत्थर के बने बर्तन और सिल-बट्टे के व्यवसाय के लिए बहुत प्रसिद्ध था। वर्त्तमान मे पत्थर की बनी इन वस्तुओं का न के बराबर प्रयोग होता है। साथ ही इस मेले में कुथलिया बोरों के द्वारा बनाये जाने वाले भांग के रेशों के कुथलों को भी बेंचा जाता था। ये कुथले कुमाऊँ ही नहीं नेपाल में भी बहुत पसंद किये जाते थे। कुमाऊँ और नेपाल के लोग यहाँ से बहुत बड़ी संख्या में इन्हें यहाँ से ले जाया करते थे।
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