जनवरी-फरवरी माघ मास में यह त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन विद्या - बुद्धिदायिनी माँ सरस्वती का पूजन किया जाता है। इस पर्व को शुभ मान कर छोटे बच्चों का अक्षरारम्भ व बड़े बच्चों का यज्ञोपवीत संस्कार भी सम्पन्न किया जाता है। बालिकाओं के नाक-कान छेदन संस्कार भी किये जाते हैं, इस दिन पीले वस्त्र पहनने की प्रथा पुराने समय से ही चली आ रही है परन्तु आजकल की पीढ़ी फैशन के माहौल में कम ही दिखाई देती है। पीले रूमाल या पीले वस्त्र खरीद कर लोग इस त्यौहार को मना लेते हैं। इस त्योहार से बैठकी होली की शुरुआत भी होती है। पूष की पहले इतवार से जहां कुमाऊं में निर्वाण से सम्बन्धित होली गीत गायें जाते है वहीं बसंत पंचमी से रंग के पद गाये जाते हैं। बसंत के आगमन में इस दिन विभिन्न मेले , त्यौहार होते हैं। Basant Panchami Uttarakhand 2023
जौ त्यार ( जौ संग्यान ) | सिर पंचमी (श्री पञ्चमी)
उत्तराखण्ड में बसंत पंचमी ऋतूत्सव की तरह मनाया जाता है जिसे जौ संग्यान या सिर पंचमी भी कहते हैं। इस समय शीत ऋतु में बोयी गयी फसल जैसे जौं, धान आदि अंकुरित होने लगती है अतः रिवाज यह था कि किसान नयी फसल को अपने ईष्ट देवताओं को समर्पित कर उसके बाद प्रसाद रूप में आशिका अपने तथा अपने परिवार जनों के सिरों में रखता है | घर के दरवाजों , चैखटों में भी रखा जाता है। यही परम्परा आज भी इसी तरह मनायी जाती है। घर की महिलाएं, बेटियां जौ की कोमल पत्तियों को पूजा अर्चना के बाद घर के सदस्यों के सिरों पर रखती हैं।Basant Panchami in Uttarakhand
मेले व उत्सव
भागीरथी और अलकनंदा के संगम स्थल देवप्रयाग में बसंत पंचमी का तीन दिन का परम्परागत मेला लगता है। इसमें दूर दूर क्षेत्रों से पवित्र स्नान व पूजा अर्चना करने हेतु लोग एकत्रित होते हैं। प्रसिद्ध कण्वाश्रम में भी बसंत पंचमी का तीन दिन का मेला लगता है। इसके अतिरिक्त रामनगर में भी बसंत पंचमी के दिन एक बड़ा मेला आयोजित हुआ करता है।
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