दुनिया में ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं जिन्हें सही समय पर उनके द्वारा किए गए कार्यों का सम्मान मिलता है। कुछ उन्हीं लोगों में से एक हैं फोटोग्राफर अनूप साह। हाल ही में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार अनूप साह और उनके परिवार के लिए बेहद खास है क्योंकि इससे पहले इस पुरस्कार से जुड़ी खबरों में उनके पिताजी स्वर्गीय श्री चंद्र लाल साह ठुलघरिया "बुजू" के नाम की चर्चाएं होती रही पर हर बार ही उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
अनूप साह का नाम जब भी आता है तो सबसे पहले उनके द्धारा क्लिक की हुई खूबसूरत तस्वीरें आंखों के सामने आने लगती है जो खूद में ही एक नए दुनिया को र्दशाती है। 4 अगस्त 1949 को नैनीताल में जन्मे अनुप शाह को बचपन से प्रकृति से लगाव रहा और यह लगाव उनकी पिताजी के द्धारा उनसे मिला. जिन्होनें अपना पूरा जीवन नैनीताल के विकास मेें लगा दिया। एक फोटोग्राफर होने के साथ-साथ अनूप शाह एक पर्वतारोही और लेखक भी हैं। एक फोटोग्राफर के तौर पर उन्होने प्रकृति को बेहद करीब से जाना और प्रकृति के उस रूप को अपने कैमरे में कैद किया जिसे आप और हम शायद की देख सकते। अगर बात की जाए उनके फोटोग्राफी के सफर की तो यह एक कभी न खत्म होने वाली एक लम्बी लिस्ट है। उनके काम पर एक नजर घुमायी जाए तो आपको बता दें कि इण्डिया इन्टरनेशनल फोटोग्राफिक काउंसिल से वर्ष 1994 में ‘इन्टरनेशनल आनर' AIIPC और 1997 में 'AIPC प्लैटिनम ग्रेडिंग सम्मान' प्राप्त किया। वर्ष 1990 में और 1992 से 1999 तक (लगातार 8 वर्ष) आई.आई.पी.सी. द्वारा 10 प्रथम फोटोग्राफर्स में चुना गया। 1995 में ‘स्लाइड्स और प्रिन्ट सेक्सन' में फेडरेशन आफ इण्डियन फोटोग्राफी द्वारा 10 प्रथम छायाकारों में निर्वाचित रहे। 7 राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त फोटोग्राफी सैलोन में साह जी के 900 से अधिक छायाचित्र और स्लाइड्स प्रदर्शित किए जा चुके हैं। अब तक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय फोटोग्राफी सैलोन्स में 73 पुरस्कार और 68 'सर्टिफिकेट आफ मेरिट' प्राप्त कर चुके हैं और 8 बार सर्वोत्तम प्रतिभागी रहे। अनूप साह केवल फोटोग्राफर ही नहीं, कुशल लेखक भी हैं। राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं। 1993 में इनके द्वारा लिखी पुस्तक 'कुमाऊँ-हिमालय टेम्पटेशन्स' (पिक्टोरियल बुक) और 1999 में 'नैनीताल- दि लैण्ड आफ वुड ट्रम्पेट एण्ड सांग्स’ (पिक्टोरियल बुक) प्रकाशित हुई। इण्डिया इन्टरनेशनल सेन्टर, नई दिल्ली द्वारा 23 से 29 सितम्बर 1998 तक नई दिल्ली में 'वुड कारबिंग ट्रेडिशन आफ कुमाऊँ' पर आधारित इनकी एक एकल प्रदर्शनी आयोजित की गई। ऐसी छह और प्रदर्शनियां नैनीताल, बरेली, उधमसिंह नगर जिलों में लगाई गई। दूरदर्शन द्वारा वर्ष 1993 और 1994 में इनके फोटोग्राफ्स - 'हिमालयन लैण्ड स्केप स्लाइड्स एण्ड पिथौरागढ़' टेलीकास्ट किए गए। इसके अलावा देश के नामी मीडिया चेन्नल्स जैसे दूरदर्शन, स्टार टी.वी, जी टी.वी. और डी.डी. मैट्रो चैनल पर भी इनके इंटरव्यू लिए जा चूके हैं।
प्रकृति को बेहद करीब से देखने की उनकी लालसा ने उन्हें एक पेशेवर माउंटेनियर भी बना दिया। अनूप शाह माउन्टेनियरिंग, ट्रैकिंग, राक क्लाइम्बिंग और स्कीइंग में भी समान्तर रूप से भी भाग लेते रहे हैं। नेहरू इंस्टीट्यूट आफ माउन्टेनियरिंग, उत्तरकाशी से कोर्स कर उन्होनें ट्रैकिंग की शुरूआत की। जिसके बाद उन्होने कई ट्रैकिंग का नेतृत्व किया। जिनमें टे्रल पास अभियान (53 वर्षों बाद कोई दल यहां पहुंचा), 1996 इण्डियन इंस्टीट्यूट आफ स्कीइंग एण्ड माउन्टेनियरिंग, गुलमर्ग (कश्मीर) में बेसिक और इन्टरमीडिएट स्कीइंग कोर्स में 'एक्सीलेंट' ग्रेड मिला है।
इस तरह यह कहते हुए हमें किसी भी तरह की शंका नही होगी कि उन्होने अपना पूरा जीवन इन पहाड़ों को समर्पित कर दिया, फिर चाहे वह माध्यम फोटोग्राफी हो या फिर पर्वतारोहण हो या फिर लेखन। अनूप साह के द्धारा किए गए कामों को सम्मान मिलना हम सभी के लिए गर्व की बात है। सम्मान को लेकर उनके पिता चंद्र लाल साह का यह मानना था," अगर मेरे कार्य का समाज निर्माण में योगदान माना जाता है तो यही उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान है। प्रतिभा और सम्मान की ऊंचाई पर विराजमान शाह जी को अभिमान छु नहीं सका। एकदम मिलनसार श्री अनूप साह विशुद्ध रूप में एक उत्तराखण्डी हैं। "पर हम सभी यही उम्मीद करते हैं कि अनूप साह निरंतर इसी तरह से अपना काम करते रहें और पहाड़ों की तरह नई-नई ऊँचाइयों को छूते रहें।
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