KnowledgeBase


    उत्तराखंड की मांगल गर्ल - नंदा सती

    Uttarakhand Mangal Girl Nanda Sati
    उत्तराखंड की मांगल गर्ल - नंदा सती

    देवभूमि उत्तराखंड महज एक औपचारिक नाम ही नहीं बल्कि एक ऐसा दिव्य धाम है, जो कई सारी खूबियों को स्वयं में समेटे हुआ है। राज्य की इन अगाथ विशेषताओं को वर्णित करने के लिए कई बार हमारे शब्द ही बौने पड़ जाते हैं; विविधताओं में एकता का अनमोल चित्रण ही हमारी विरासत का प्रतीक रहा है। लोकगीत, लोक उत्सव, लोक कला, जैसे कई सांस्कृतिक व सामाजिक तत्वों के माध्यम से हमारे पुरखों ने जीवन यापन की जो शैली विकसित की है, वही आज हमारी समृद्धि संपन्न संस्कृति के रूप में विद्यमान है। जिसे आज धरोहर के रूप में हमें नित संजोए रखने की आवश्यकता है।


    लोकभाषा व लोकगीत अपनी लोकसंस्कृति से रूबरू होने का सबसे सरल व प्राथमिक जरिया है। जिनके माध्यम से हम अपनी जड़ के काफी करीब पहुंच सकते हैं। जी हां इसी कड़ी में आज बात पहाड़ की उस होनहार बेटी नंदा सती की जिन्होंने उत्तराखंडी लोकगीत मांगल को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक नया आयाम देकर आधुनिक युवा पीढ़ी के समक्ष स्वयं को एक उदाहरण के रूप में पेश किया है। चहुमुखी प्रतिभा की धनी मांगल की लता नंदा सती आज पिंडर घाटी में ही नहीं वरन प्रदेश स्तर पर एक ऐसा नाम बनकर उभर चुकी है, जो व्यक्तित्व शोभा के कई उपनामों को स्वयं में समाए हुए हैं।


    उत्तराखंड की "मांगल गर्ल" के नाम से विख्यात नंदा सती मूल रूप से सीमांत जनपद चमोली के पिंडर घाटी के विकासखंड नारायण बगड़ से संबंध रखती है। जो कि उनका पैतृक गांव भी है। भगवान नारायण की तपोस्थली नारायण बगड़ में पली-बढ़ी नंदा सती ने बाल्यकाल से ही परिवार के संस्कारों के गंगाजल को जीवन की सार्थकता की प्यास के रूप में सदैव ग्रहण किया है। नंदा ने साक्षात नंदा देवी की चोटी के समान अपने कृतित्व व व्यक्तित्व को स्वयं श्रेष्ठता से संजोया और संवारा है।


    महज 20 वर्ष की अल्प आयु में ही उन्होंने सांस्कृतिक सरोकारों के क्षेत्र में पौराणिक लोकगीत मांगल के माध्यम से एक दीर्घ मुकाम हासिल किया है। यू तो 12वीं विज्ञान वर्ग की छात्रा रही नंदा के लिए लोकगीतों की दिशा में शिरकत करना इतना आसां भी न था, किंतु यदि हौसले बुलंद हो तो उड़ान किसी भी क्षेत्र में कामयाबी की भरी जा सकती है। उनके मुख से गाए जाने वाले इन मंत्रमुग्ध मांगलो को सुनकर आज हर कोई उनका मुरीद बन चुका है। बचपन से ही नंदा शिक्षा, साहित्य, संगीत, वादन, क्रीडा जैसी तमाम गतिविधियों में अग्रगण्य रही है।


    बालिका इंटर कॉलेज नारायण बगड़ से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर नंदा ने केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर में संगीत विषय से स्नातक में प्रवेश लिया वर्तमान में वह इसके अंतिम वर्ष की छात्रा है।


    मांगल गीतों के संबंध में मांगल लता नंदा सती से जब परिचर्चा करता हूं, और कोशिश करता हूं उस उपज को जानने की जिस से प्रभावित होकर उनका रुख मांगल लोकगीत की ओर हुआ, तो वह बयां करती है, कि इस पुनीत कार्य का श्रेय न केवल किसी एक व्यक्ति को दिया जाए बल्कि हर वह व्यक्ति जिसने उन्हें सुना सराहा व साझा किया है व उन्हें चरम तक पहुँचाने में अपनी उद्गम भूमिका निभाई है। वे सभी इसके वास्तविक हकदार है। तमाम संस्कृति संवाहको, संस्थाओं व्यक्तित्वों व ग्रामीण बुजुर्गों का इस दिशा में उन्हें बड़ा सहयोग रहा है, जिसकी कर्जदार वह सदा - सदा के लिए बनी रहेगी। आज की नई युवा पीढ़ी के बीच अपनी सांस्कृतिक जड़ों की पकड़ को निरंतर शिथिल देख कर मांगल गर्ल ने अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की है। इस संदर्भ में उन्होंने स्वयं का यह संकल्प लिया है कि संस्कृति की शाखों को आज के आधुनिक समाज तक विस्तृत करने के लिए वह पूरी तरह से जुटी हुई है व प्रतिबद्ध है।


    जनमानस के बीच लोकगीतों के इस अखंड मंगलदीप को प्रज्वलित करने में नंदा सती का किरदार अद्वितीय तो रहा ही है किंतु उनकी सखी किरन नेगी की साझेदारी भी इस संदर्भ में पीछे नहीं है जिस प्रकार नंदा ने दीया बनकर मांगल गीतों के संरक्षण व संवर्धन का बीड़ा उठाया उसी प्रकार किरन नेगी ने भी एक बाती की भांति उनका भरपूर साथ दिया है दोनों की आपसी जुगलबंदी के सुर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर खूब सजाए रहे हैं।


    Uttarakhand Mangal Girl Nanda Sati with Kiran Negi
    उत्तराखंड की मांगल गर्ल - नंदा सती के साथ किरण नेगी

    प्रतिभा की मूरत नंदा सती व किरण नेगी मांगल गीतों में पारंगता हासिल कर आज की युवा पीढ़ी को खास तौर पर उनकी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का अभिनव अटल प्रयास कर रही है।इस कार्य के लिए उनकी जितनी सराहना की जाए उतनी ही कम है।

    यह है उत्तराखंड के पौराणिक मांगल गीत!


    पहाड़ों के लोक जनजीवन में सदैव से ही तीज त्योहारों की बहुलता रही है, प्रकृति की हर एक नई ऋतु पहाड़ के उत्सवप्रिय समाज में लोकपर्व, लोकनृत्य व लोक जात का एक नया रुक लेकर आती है। उन्हीं से एक हमारा मांगल लोकगीत भी है, जो हमारे यहां हर शुभ कार्यों जैसे औधान, गर्भाधान, पुत्र जन्म, नामकरण, व्रतबंध, विवाह आदि संस्कारों के अवसर पर गाए जाते हैं। संस्कार गीत, फाग, शकुन आखर, जैसे कई अलग-अलग नामों से हमारा यह लोकगीत विख्यात है, कार्य की कुशल संपन्नता के लिए इन गीतों के अंतर्गत देवी देवताओं का आवाहन प्रमुख रूप से किया जाता है।


    हर शुभ संस्कारों में एक मंगल ध्वनि के रूप में यह गाए जाते हैं। मांगल गीतों को फाग व शकुन आखर जैसे विशेष नामों से कुमाऊं क्षेत्र में ही जाना जाता है। राज्य स्तर पर इन्हें मांगल के नाम से ही ख्याति प्राप्त है।


    मांगल गीत मुख्य रूप से स्त्रियों के द्वारा ही गाए जाते हैं तमाम शुभ अवसरों पर महिलाएं अपनी पारंपरिक लोकवेशभूषा व लोक आभूषणों के साथ एक समूह में इन गीतों को एक सुर में गाती है।


    यदि हम मांगल गीतों के इतिहास की बात करें तो प्रत्यक्ष रूप से यह कहना अनुचित होगा कि मांगल गीतों का आगमन अन्य प्रदेशों से हुआ है, किंतु इनके संबंध में कुछ पुस्तकों में यह उल्लेख हमें अवश्य मिलता है कि इन गीतों पर ब्रज व अवधी भाषा का अधिक प्रभाव देखने को मिलता है। इस इकलौते प्रमाण को साक्षी मानकर क्या यह कहना उचित नहीं होगा कि शकुन आखर या मंगल गीत अवध या ब्रज से आकर ही हमारे लोकसाहित्य मे जुड़े हुए हैं। यह अभी भी हमारे लिए शोध का विषय बना हुआ है।


    Ashok joshi

    लेखक

    नाम - अशोक जोशी
    पता - नारायण बगड़ चमोली


    हमसे वाट्सएप के माध्यम से जुड़े, लिंक पे क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    हमारे YouTube Channel को Subscribe करें: Youtube Channel उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि

    Leave A Comment ?