रणू रौत (सोलहवीं शताब्दी): गढ़वाल नरेश प्रीतम शाह के राज्यकाल में रणू रौत (रावत) अनोखा वीर पुरुष हुआ था। रणू रौत कुलावली कोट का रहने वाला था। हिवा रौत और भिवा रौत का पुत्र रणू रोत था। एक समय गढ़वाल राज्य के दक्षिणी भाग 'माल' (आज का देहरादून क्षेत्र) में मुस्लिम आक्रान्ता आ पहुँचे। उनकी नीयत इस भाग को कब्जाने की थी। आक्रान्ता ने गढ़वाल नरेश प्रीतम शाह को सन्देश भिजवाया कि वह उनकी अधीनता स्वीकार कर ले, अन्यथा वे माल में कत्लेआम मचाकर उसपर अधिकार कर लेंगे। खबर सुनकर राजा का चिन्तित होना स्वाभाविक था। राजा प्रीतमशाह ने सभा बुलाई और सभासदों से कहा- “है कोई ऐसा वीर योद्धा हमारे राज्य में जो माल में जाकर आक्रमणकारी का मुकाबला कर सके?" एक सभासद छीलू भिमल्या ने राजा को कुलावली कोट के रणू रौत की वीरता के बारे में बताया। राजा ने रणू को बुलाकर दुश्मन का मुकाबला करने के लिए माल भेजा। युद्ध क्षेत्र में अकेले रणू रौत ने अपनी तलवार से दुश्मनों को गाजर-मूली की तरह काटकर सफाया कर डाला। माल को दुश्मन से मुक्त कराकर ही वह राज्य में लौटा। रणू रौत की वीरता, बहादुरी, साहस, राजभक्ति के जागर और डौंर-थाली पर बजाया जाने वाला घड्याला सुनकर आज भी सुनने वालों का रक्त प्रवाह तीव्र हो जाता है।
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