उत्तराखंड के सौरमासिक ऋतुत्सवों में सर्वप्रथम आती है फूल सग्यान, फूल संगराद, पुष्पसंक्रान्ति व मीन संक्रान्ति जो कि उत्तराखंड के दोनों मंडलों में मनायी जाती है। कुमाऊं-गढ़वाल में इसे फूलदेई तथा जौनसार-बावर में 'गोगा' कहा जाता है। यहां की कालगणना सौरचक्र पर आधारित होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नये वर्ष का प्रारम्भ इसी से होता था। चैत्रमास का प्रथम दिन और मीन संक्रान्ति भी इसी दिन होती है। अपनी कालगणना पद्धति के अनुसार नव वर्षारम्भ को एक उत्सव के रूप में मनाने की परम्परा प्राय: विश्व के सभी सभ्य समाजों में पायी जाती है। Phool Dei Festival of Uttarakhand
इस दिन गृहणियां प्रात:काल उठकर सारे घर की सफाई करके घर की देहली (प्रवेश द्वार के निम्नस्थ भाग) को गेरुवे से अथवा गोबर-मिट्टी से लीप कर उसे ऐपणों (मांगलिक आरेखों) से अलंकृत करती हैं तथा घर की कुमारी कन्यकाएं उस पर घर की सुखशान्ति की मंगल कामनाओं के साथ ऋतुसुलभ पुष्पों को अर्पित करती हैं। कहा जाता है कि पहले इसके लिए प्रकृति प्रदत्त ऋतुकालीन वनोद्भव पुष्पों यथा बुरांस (रक्त), प्योली (पीत), सिलफोड़ या कुंज (श्वेत) के पुष्पों का ही प्रयोग किया जाता था, किन्तु अब इस परम्परा का पालन कठिन हो जाने से उद्यानोद्भव पुष्पों का ही प्रयोग प्रचलित हो गया है। Phool Sankranti Festival of Uttarakhand
गृहद्वार पर पुष्पार्पण के उपरान्त कन्याओं का मुंह मीठा कराया जाता है तथा दक्षिणा के रूप में सामर्थ्यानुसार पैसे भी दिये जाते हैं। अपने घर में पुष्पार्पण कर लेने के उपरान्त आस-पड़ौस के बालक-बालिकाएं टोकरियों या थालियों में पुष्प लेकर अपने पास-पड़ौस के तथा बन्धु-बान्धवों के गृहद्वारों पर पुष्पार्पण करते हुए जिस मंगल कामनापरक गीत को गाते हैं, स्थानीय विभेदों के साथ, उसका रूप कुछ इस प्रकार होता है-
फूल देई (धेई) छम्मा देई (धेई), ये धेई (देई) अथवा तुमरि धेई नमस्कार (इस सन्दर्भ में उल्लेख्य है कि गृहस्थ विशेष के साथ निकट बन्धुत्ववाची शब्द 'काका, दादा, ताऊ' आदि का प्रयोग किया जाता है। यथा ‘ककाकिधेई आदि)। इसकी अगली पंक्ति होती है- फूलदेई छम्मा देई, दैणाद्वार भर भकार (भखार), यो देई सौ नमस्कार, पूर्जे द्वार बारम्बार आदि। जिसका भावार्थ होता है फूलों से अलंकृत इस द्वार पर सुख, शान्ति और समृद्धि की बौछार हो, हम इस देहली/तुम्हारी देहली अथवा चाचा, ताऊ आदि के इस द्वार को नमस्कार करते हैं। गढ़वाल में इसका समानान्तर गीत गाया जाता है- फूलदेई, फूलदेई फूल संगराद। सुफल करो नौऊ बरस तुमकूं भगवान्। यह द्वार सबके लिए सबै प्रकार फलीभूत हो। इस घर के भण्डार - भरे रहें, आओ देहरी पूजन करें।
इस संदर्भ में नये वर्ष के स्वागत तथा गृहणियों व गृहस्वामियों के लिए मंगल कामना करने वाले कुछ अन्य गीत हैं-
• (कुमाऊं) : फूलदेई फूलदेई, फूलो सग्यान,
सफल करा नौं बरसे तुमों के भगवान्।
रंगीला चंगीला फूल ऐगी, डाला-बूटा हरिया हैगी,
भिड़कानई फूले फूल, आज फूलोंकि संग्यान,
पौण ऐंछ ठंड़ी-ठंड़ी, फूल हंसी मंदी-मंदी,
आज त्यारौ नौ बरसे आज फूलों की सग्यान।
• फूल देई छम्मा देई दैणोद्वार भर भकार। यो देई सौ नमस्कार पूजे द्वार बारम्बार।
• फूलदेई-फूलदेई मुबारक तुमूकै फूलदेई।
सैफ सुखौल तुमर भकार भरी जई।
बुरांस जस् खिली जाया पयौली जस्टिस हंसिया।
उमंग तन-मन हवैली होई जस्टिस रसिया।
मेरी टूपरी भरी जाओ तुमरि डाली भरी जालि।
चाँदी का चमच बनिया सुनै की थाली।
हंसने खेलने रै जाया तुम उम्रै भाई।
फूलदेई-फूलदेई मुबारक तुमूकै फूलदेई।
इस पर गृहणियां उनकी थालियों में गुड़, चावल और पैसे डालती हैं। इस प्रकार प्रत्येक गृहस्थ के लिए मंगल कामनापूर्वक पूरी बस्ती के गृहद्वारों पर बच्चों के अलग-अलग दलों द्वारा यह पुष्पार्पण का कार्य सम्पन्न किया जाता है। बालक-बालिकाओं के विभिन्न दलों के द्वारा पुष्पार्पण के प्रतिदान स्वरूप प्राप्त सामग्री को एकत्र करके चावलों को भिगा दिया जाता है तथा सायंकाल को उन्हें पीसकर उसमें प्रतिदान में प्राप्त गुड को मिलाकर, नकद प्राप्त पैसों से घी/तेल खरीद कर पुए (शै) पकाये जाते हैं तथा सभी कुमार-कुमारिकाएं हर्षोल्लासपूर्वक इनका आस्वादन करते थे। इस सम्बन्ध में एक मान्यता प्रचलित है कि यदि कोई युवा स्त्री-पुरुष इसको खा ले तो उसकी लड़कियां ही लड़कियां होती हैं। अत: कोई युवा, प्रौढ, बच्चों के बनाये गये इस छोई या शाई को नहीं खाते। अब नई सभ्यता का साया इस उत्सव पर भी पड़ने लगा है और यह पारिवारिक जनों तक ही सीमित होता जा रहा है। Phool Dei Festival of Uttarakhand
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