आड़ू | |
वैज्ञानिक नाम: | प्रूनस पर्सिका |
जगत: | पादप |
कुल: | रोज़ेशी |
वंश: | प्रूनुस |
प्रारम्भ में भारत में आडू का प्रवेश उत्तर-पश्चिम की ओर से हुआ, जहाॅं की जलवायु काफी ठंडी होने के कारण आडू के अनुकूल थी। आडू की अच्छी किस्में, 19वीं शताब्दी में हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल की पहाड़ियों में लगाई। आडू की घटिया किस्में भारत के गर्म उत्तरी मैदानों में भी उगाई जाती रही हैं, परन्तु इनके फल बहुत ही घटिया प्रकार के होते हैं। इस समय लगभग 2000 हेक्टेयर भूमि में आडू की बागवानी होती है। उत्तरांचल में इसकी बागवानी का क्षेत्रफल सबसे अधिक नैनीताल और अल्मोड़ा जिले में है। आडू का वृक्ष 8 मीटर तक ऊॅंचा होता है। इसके पत्ते 15 से.मी. तक लम्बे होते हैं। बाग लगाने के 2-3 वर्ष उपरान्त वृक्ष में फल लगना आरम्भ हो जाता है और 5-6 वर्ष की आयु में वृक्ष पर भरपूर फल आने लगते हैं। आडू का बाग 15-20 वर्ष तक ही अच्छी तरह फल देता है। अनुकूल जलवायु और उपजाऊ भूमि में लगे हुए आडू के वृक्ष 60-80 किलो औसत फल प्रतिवर्ष देते हैं।
आडू के फलों को तोड़ने के बाद बहुत दिनों तक नहीं रखा जा सकता है क्योंकि ये बहुत जल्द खराब हो जाते हैं। फलों को तोड़ने के बाद लकड़ी की पेटियों में भरकर ट्रकों में रखकर नजदीकी बाजारों में पहुॅंचा दिया जाता है।
इसके फलों में 100 ग्राम गूदे में 6 प्रतिशत खनिज, 1.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है। यह लोहे का अच्छा स्रोत है और विटामिन बी माध्यम मात्रा में पाया जाता है। यह स्वास्थ्य तथा आर्थिक आय की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है।
मृदा एवं जलवायु
आडू की बागवानी के लिए उपजाऊ भूमि जो 2.5 से 3.0 मीटर तक गहरी हो और उसमें पानी न लगता हो, ऐसी भूमि पर वृक्षों की जडे़ं दूर-दूर तक फैल जाती हैं, जिससे इनकी आयु भी लम्बी होती है और फल भी पर्याप्त लगते हैं। सेब, नाशपाती और चेरी की तरह आडू के पौधों को फूलने और फलने के लिए सर्दियों में काफी समय ठंडक की आवश्यकता होती है। लगभग सभी किस्मों के वृक्षों के लिए 7.0 डिग्री सेन्टी ग्रेड या उससे नीचे का तापमान कुछ निश्चित घंटों के लिए होना चाहिए।
आडू की विभिन्न प्रजातियाॅं
आडू की प्रमुख किस्मों के अन्तर्गत 1000 मीटर से अधिक ऊॅंचाई वाले क्षेत्रों के लिए अलैक्जैण्डर, कोफोर्ड अर्बी, अर्लो अलबर्टा, पेरीग्रीन, गोल्डन बुश आदि हैं। आडू की देशी उपजातियाँ: आगरा, पेशावरी तथा हरदोई
संदर्भ
1- डाॅ. जी.एस. पाण्डेय (सचिव, हाॅट्रीकल्चर, सचिवालय, देहरादून)हमसे वाट्सएप के माध्यम से जुड़े, लिंक पे क्लिक करें: वाट्सएप उत्तराखंड मेरी जन्मभूमि
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