पद्म व पयां | |
संस्कृत नाम | पद्मकाठ |
हिन्दी नाम | पद्म |
अन्य नाम | पयां, पंजा |
लैटिन नाम | Prunus cerasoides D. Don. |
कुल | तरुण्यादिवर्ग (Rosaceae) |
पुष्पकाल | अगस्त-सितम्बर |
मार्च-अप्रैल | जुलाई-अगस्त |
प्रयोज्य अंग | काष्ठ एवं फल |
यह 20 से 34 फुट के करीब लम्बा वृक्ष है। इसका काण्ड लोहिताभ एवं ग्रन्थियुक्त होता है। छाल, कृष्ण रक्तवर्ण की एवं पतले कागज के समान होती है। पत्र लम्बे, दन्तुरधार, चिकने तथा कुछ रोमश होते हैं। पुष्प श्वेत तथा कुछ रक्तवर्ण के होते हैं। फल पकने पर रक्तवर्ण के दिखाई देते हैं।
स्थानिक प्रयोग
⚬ यहाँ के निवासी पशुओं के अस्थि भग्न हुए अंग पर इसके छाल का लेप करते हैं।
⚬ चर्म आदि विकारों पर इसके शीतल कषाय के जल से स्नान करने से लाभ होता है।
⚬ स्थानिक वैद्यों का कहना है कि इसके बीजों का प्रयोग पथरी में लाभदायक होता है।
⚬ गाँव की दाईयां इसके स्वरस का पिचु गर्भस्राव में प्रयोग करती हैं।
⚬ स्थानिक लोगों का यह मांगलिक वृक्ष है। स्थानिक पूजन कार्यों में यह महत्वपूर्ण सांस्कृतिक वृक्ष है।
⚬ पद्मकाष्ठ क्वाथ से निर्मित तेल का अस्थिभग्न एवं संधि विच्युति पर अभ्यंग करने से लाभ होता है।
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