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नरेन्द्र सिंह नेगी | |
जन्म: | अगस्त 12, 1949 |
जन्म स्थान: | पौड़ी |
पिता: | श्री उमराव सिंह नेगी जी |
माता: | श्रीमती समुद्रा देवी जी |
पत्नी: | श्रीमती उषा नेगी |
बच्चे: | कविलास, ऋतू |
शिक्षा: | स्नातक ( संगीत प्रभाकर,संगीत स्नातक) |
उपनाम: | गढ़गौरव, गढ़रत्न |
व्यवसाय: | गायक, गीतकार, लेखक |
आवाज के धनी श्री नरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने गीतों में पहाड़ी समाज के यथार्थ, व्यथा व चिन्तन को प्रस्फटित कर गढ़वाली गीत लेखन को एक नई दिशा, नई सोच और नई ऊंचाई ही नहीं, एक नई गहराई भी दी है। अपनी मातृभूमि और अपनी माटी के प्रति गौरव का भान कराने वाले इनके गीतों में पहाड़ की धुरी बनी यहां की नारी की चिन्ता है, तो शनैः-शनैः तिरस्कृत की जा रही बुजुर्ग पीढ़ी के दर्द को भी इन्होंने अनूठा स्वर देकर यहां की सच्चाई को उजागर किया है। पहाड़ में आर्थिक विषमताओं से उपजी पलायन की व्यथा को नेगी जी ने अपनी गीतों के माध्यम से खूब दर्शाया है। स्खलित हो रही यहाँ की समृद्ध परम्पराओं के प्रति इनके गीतों में गहरी टीस है। अपने गीतों में इन्होंने यहाँ के लोकजीवन के तमाम अनछुए पहलुओं को पिरोया है। बोली का लालित्य और शब्दों की प्रचुरता से इनके गीत सर्वग्राह्य बन गए हैं।
प्रारंभिक जीवन
नरेंद्र सिंह नेगी का जन्म 12 अगस्त 1949 में पौड़ी जिले में हुआ। उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई के बाद अपना करियर भी पौड़ी से ही शुरू किया। पौड़ी में बिखौत यानी बैसाखी के दिन बाजुबंद और झुमैलो जैसे लोकगीत गाए जाते हैं, वहीं से उन्हें गाने की प्रेरणा मिली और उन्हें देखकर ही वह बड़े हुए। नरेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि मेरी पांच बहनें और दो भाई थे। मेरे पिता फौजी थे इसलिए सभी भाई-बहनों की जरूरतें पूरी नहीं होती थी। तंग हालत में मैंने कमाना शुरू किया और उसी हालात में मेरे दिल से गीत निकलते थे।
करियर
पढ़ाई खत्म करने के बाद नेगी जी ने अपने बड़े भाई से तबला सीखा और 1974 में उन्होने पहला गीत लिखा और कंपोज करा। आकाशवाणी लखनऊ से इनका गाया पहला लोकगीत 1976 में प्रसारित हुआ था। संगीत में नेगी अपना करियर गढ़वाली गीतमाला से शुरु किया और यह गीतमाला 10 अलग-अलग भागों में रिलीज हुई। नेगी जी की पहली एलबम का नाम था बुरांस। नेगी जी सगीत के साथ-साथ गढ़वाल फिल्मों का निर्देशन भी कर चुके हैं। गढ़वाली की पांच फिल्मों - धर जवैं, कौथिग, बेटी-ब्वारी, बंटवारु और चक्रचाल के गीत लिखे, गाए और इनमें संगीतकार की भूमिका भी निभाई। 1982 में इन्होंने अपने गीतों का पहला ऑडियो कैसेट "ढेबरा हर्चि गेनि" रिलीज किया था। नेगी जी कवितायें भी लिखते है, ‘खुचकण्डि’ और ‘गाण्यिं की गंगा स्याणूं का समोदर’ इनके अब तक प्रकाशित काव्य संग्रह हैं। नेगी जी अभी तक 1000 से ऊपर गाने गा चुके है।
जीवन
नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों में अक्सर समाज के लिए संदेश छिपा रहता है जिसके बारे में वह कहते हैं कि वह जो भी संदेश लोगों को देते हैं, पहले वह खुद पर अमल करते हैं। अब जैसे उनका एक गाना पशुबली पर था ये गाना रिकॉर्ड करने से पहले नेगी जी ने अण्डा-मांस खाना छोड़ दिया तब इस गाने को रिकॉर्ड किया। इनकी धर्मपत्नी श्रीमती उषा नेगी भी अच्छी लेखिका है। ‘बावन व्यंजन छत्तीस प्रकार’ इनकी पहली कृति फरवरी 2000 में प्रकाशित हुई। नेगी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर रचित पुस्तक ‘अक्षत’ का विमोचन पौड़ी में इनके सम्मान में आयोजित एक समारोह में किया गया। नेगी जी के प्रशंसको का अंदाजा हम इस से लगा सकते है, 29 जून, 2017 नेगी जी को हृदयघात पड़ने से देहरादून के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। नेगी जी की बीमार होने की खबर फैलने के बाद नेगी जी को सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा सर्च किये गए और गूगल पे वो सर्च सूचि में टॉप पे छाए रहे यही नहीं उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पीछे छोड़ दिया क्योकि उन्हें मोदी से ज्यादा सर्च किया गया था। सभी नेगी जी के स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिए बेताब थे, आखिर उनके प्रशंसको की दुआ रंग लायी और 10 दिन उपचार के बाद आठ जुलाई को उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।
सम्मान
लोक गायक क्षेत्र में मील का पत्थर श्री नरेन्द्र सिंह नेगी को सर्वत्र सम्मान और प्रशंसा प्राप्त हुई है, गढ़वाल सथा, चण्डीगढ़ द्वारा ‘गढ़गौरव’ सम्मान, गढ़वाल भातृमण्डल, बम्बई द्वारा ‘गढ़रत्न’ सम्मान, प्रदेश द्वारा ‘आकाशवाणी’ सम्मान, नगरपालिका परिषद श्रीनगर (गढ़वाल) द्वारा सर्वश्रेष्ठ लोकगायक’ सम्मान से विभूषित किए गए। इनके अतिरिक्त आकाशवाणी लखनऊ, 8वीं और 18वीं गढ़वाली रायफल्स, गढ़वाल सभा, देहरादून, नगरपालिका परिषद, पौड़ी, उत्तराखण्ड शोध संस्थान, लखनऊ इकाई सहित दर्जनों संस्थाएं गढ़वाली गीत-संगीत के इस फनकार को सम्मानित कर चुकी है।
नेगी की प्रमुख एल्बम
● एल्बम सूचि
● छुयाल
● दगिड्या
● घस्यारी
● हल्दी हाथ
● होसिया उमर
● धारी देवी
● कैथे खोज्यानी होली
● माया को मुण्डारो
● नौछमी नारेणा
● नयु नयु ब्यो छो
● रुमुक
● सल्यान सयाली
● समदोला का द्वी दिन
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