लोकदेवता मोस्टमाणू के सम्मान में आयोजित यह एक दिवसीय उत्सव भाद्रपद मास में नागपंचमी के दिन कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ जनपद में उसके मुख्यालय से 6 कि.मी. पर स्थित 6,000 फीट ऊंचे ध्वज पर्वत पर मोस्टमाणू नामक देवता के प्रांगण में आयोजित किया जाता है। इसे वर्षा का देवता माना जाता है। लोगों की मान्यता है कि इसके मंदिर में किसी भी मौसम में ध्वज-पूजन पूर्वक इसका जागर लगाने से वर्षा अवश्य हो जाती है। मेला काफी बड़ा होता है जिसमें आसपास के अनेक गांवों की भागीदारी रहती है। उत्सव के दिन हवन-पूजा आदि के साथ इसका जागर भी लगाया जाता है जिसमें मोस्टा का आवाहन, गाथागान किया जाता है तथा डंगरिया/धामी में उसका अवतरण होता है जो फरियादियों की फरियाद सुनता है और उनके कष्टों के निवारण के उपाय भी बतलाता है।
किन्तु चम्पावत की अस्सी एवं सुई-बिसुङ् पट्टियों में यह उत्सव गणेशचतुर्थी को उसके पूजा स्थलों में मनाया जाता है। यहां पर दिन में उसकी पूजा-अर्चना के उपरान्त सायंकाल को उसका रथ (डोला), जिसे 'जमान' कहा जाता है, निकाला जाता है। मेले में आसपास के क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। इसके उपरान्त सायंकाल को लोग अपने-अपने घरों को लौट जाते हैं।
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