काठगोदाम रेलवे स्टेशन | |
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स्थापना | 1844 |
स्तिथि | काठगोदाम, नैनीताल |
संचालन | पूर्वोत्तर रेलवे |
प्लेटफार्म | 3 |
पथ | 6 (सिंगल लाइन डीज़ल) |
मंडल | इज्जतनगर |
स्टेशन कोड | KGM |
काठगोदाम रेलवे स्टेशन कोड KGM है और भारतीय रेलवे के पूर्वोत्तर रेलवे जोन के अंदर आता है। यह स्टेशन इज्जतनगर रेलवे डिवीजन के मुख्यालय से 101 कि.मी. दूर है। इस स्टेशन में तीन प्लेटफार्म हैं।
स्थिति
यह रेलवे स्टेशन काठगोदाम शहर में स्थित है। काठगोदाम को कुमाऊँ का द्वार भी कहा जाता है, जो की शिवालिक पहाड़ियों के तलहटी में बसा है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन कुमाऊँ के आंतरिक हिमालयी क्षेत्र की सड़कों से जुड़ा हुआ है। यहाँ से यात्री नैनीताल, भीमताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों को जाते है। काठगोदाम से पंतनगर हवाई अड्डा की दूरी 32 कि.मी. है। यहाँ से रोडवेज और केमू बस स्टेश की दूरी 6 कि.मी. है। रोडवेज और केमू की बसें कुमाऊँ के सभी क्षेत्रों के लिए चलती है। टैक्सी स्टैंड यहाँ से 4 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
इतिहास
काठगोदाम को पहले चौहान पाटा कहा जाता था। 19वीं सदी में काठगोदाम लकड़ियां के व्यापार का मुख्य केंद्र था पहाड़ो से लकड़ियां को गौला नदी के माध्यम से यहां पहुँचाया जाता था। उन लकड़ियों का भंडारण यहां के गोदामों में हुआ करता था। इसी कारण इस क्षेत्र को काठगोदाम नाम कहा जाने लगा। इमारत बनाने के लिए अंग्रेज यहां से पूरे भारत मे लकड़ी भेजते थे। इसी को देखते हुए यहां रेल पथ बनाया गया और 24 अप्रैल 1884 को काठगोदाम में सबसे पहले भाप चलित रेल पहुंची। यह एक निजी रेल पथ था जो की रोहिलखंड एंड कुमाऊँ रेलवे कम्पनी द्वारा बनाया गया था। यह रेल पथ काठगोदाम को बरेली से जोड़ता था। 1 जनवरी 1943 में रोहिलखंड एंड कुमाऊँ रेलवे कम्पनी को भारत सरकार को हस्तांतरित किया गया और अवध और तिरहुत रेलवे में विलय कर दिया गया। 14 अप्रैल 1952 को, अवध और तिरहुत रेलवे को असम रेलवे और बंबई, बड़ौदा और मध्य भारत रेलवे के कानपुर-अचनेरा खंड के साथ मिलाया गया, ताकि उत्तर भारतीय रेलवे, वर्तमान भारतीय रेलवे के 16 क्षेत्रों में से एक बन सके।
1994 तक हल्द्वानी - काठगोदाम बड़ी रेलवे लाइन से नही जुड़ा था। बड़ी रेलवे पहुँचाने के लिए यहां कई बार सर्वे किया गया। 6 अक्तूबर 1968 को तत्कालीन राज्य वित्त मंत्री के.सी. पन्त के साथ यहाँ पहुंचे तत्कालीन रेल मंत्री सी. एम. पुनाचा ने भी बड़ी रेल लाइन के प्रस्ताव को स्वीकारा। लंबे इन्तजार के बाद मई 1994 में काठगोदाम से रामपुर बड़ी रेल सेवा चालू हो सकी। 126 साल से कुमाऊँ क्षेत्र के लोगों को लाने ले जाने वाली भाप चलित नैनीताल एक्सप्रेस 31 दिसंबर 2011 को अपने आखिरी सफ़र पर रवाना हुई।
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