लोक संस्कृति संग्रहालय | |
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संस्थापक | पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल |
सचिव | डॉ. सुरेश मठपाल |
स्थापित | 1983 |
पंजीकृत | सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 |
स्थिति | भीमताल |
लोक संस्कृति संग्रहालय (या लोक संग्रह) एक व्यक्तिगत संग्रहालय है जिसकी स्थापना डॉ० यशोधर मठपाल ने 1983 में की। यह संभवतः एकमात्र संग्रहालय है जहाँ इसका संस्थापक ही अभी तक अकेले निदेशक, शोधक, प्रदर्शक, आर्थिक संसाधन प्रबंधक, चित्रकार, मूर्तिकार और सफाईकर्मी भी है। सोसाइटी पंजीयन कानून 1860 के अन्तर्गत पंजीकृत इस संग्रहालय की संवैधानिक समिति विद्यमान होते हुए भी इसकी ऐकान्तिक अवस्थिति, अनियमित आर्थिक स्थिति और संस्थापक की गाँधीवादी श्रमजीवी प्रवृत्ति के कारण इसके ऊपर वर्णित सारे कार्य डॉ० मठपाल स्वयं ही करते आ रहे हैं। फिर भी यह कहना असत्य होगा कि यह संग्रहालय बिना किसी की सहायता से अस्तित्व में आ गया। इसकी कलात्मक प्रदर्श सामग्री में लोकचित्र लेखाओं का अप्रतिम सहयोग रहा है। एकत्रित वस्तुओं को कितने ही लोगों ने सुलभ कराया है। विक्रय सामग्री के क्रेता, मदद प्रदाता, ढेर सारे शुभचिन्तकों, विधिमान्य, लेखाकारों, विशेषज्ञों तथा परिवारीजनों ने इसके नित्य प्रवर्धमान स्वरूप को साकार करने में अपना अमूल्य सहयोग दिया है।
संग्रहालय कुमाऊँ शिवालिक पहाड़ियों की गोद में, नैनीताल जनपद के भीमताल विकासखण्ड की सुरम्य घाटी में 1400 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है, जो लगभग तीन किलोमीटर उत्तर से भीमताल की झील व बस्ती को निहारता है। संग्रहालय का गीताधाम नामक परिसर देहली से 334 कि०मी०, फूल हवाई पट्टी से 59 कि०मी०, कोठगोदाम रेलवे स्टेशन से 24 कि०मी० और जनपद मुख्यालय नैनीताल से मात्र 18 कि०मी० की दूरी पर है। पाँच एकड़ का परिसर पूर्वाभिमुखी पहाड़ी ढाल पर है जहाँ अब नाना प्रकार के पेड़ पौधे, लता, गुल्म व औषधि, वनस्पतियाँ विद्यमान हैं। जिनके सहारे दर्जनों प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी, बंदर, खरगोश, सेही, नेवले, साँप, कुन्स्याव, गीदड़, गाय भैंस, बकरियाँ रहते हैं और यदाकदा तेंदुए, बाघ जैसे वन्यप्राणी भी प्रकट हो जाते हैं।
लोक संस्कृति के सरंक्षण, वाचिक और लिखित पंरपराओं के प्रलेखन, ओझल होते कला शिल्प के प्रशिक्षण तथा स्थानीय कलाधर्मियों को प्रोत्साहन देने हेतु यह संग्रहालय स्थापित किया गया हैं। संस्कृति के ऊषः काल से सद्य अतीत तक की सारी सांस्कृतिक थाती को अक्षुण्ण रखने हेतु भी यह संग्रहालय प्रस्थापित किया गया। सूदूर अतीत जिसे भूगर्भशास्त्रीय शब्दावली में 'मायोसीन' और प्लायोसीन कल्प कहा जाता है जबकि हमारा हिमालय भी उद्भूत नहीं हुआ था, तब से आज तक मानवी संस्कृति का समग्र-सतत लेखा-जोखा रखने हेतु यह संग्रहालय परिकल्पित किया गया ताकि हमारी धरा के इस एकान्त कोने का क्या कुछ अवदान मानवमात्र को मिला, इसकी जानकारी हो सके।
दर्शनीय
⚬ 15 करोड़ वर्ष प्राचीन हिमालयी समुंद्री जीवाश्य व वानस्पतिक जीवाश्म
⚬ पाषाण उपकरण, रंग एवं गुफाचित्र
⚬ वीरस्तम्भ, प्राचीन ईंटें, मिट्टी के बर्तन व पांडुलिपियाँ
⚬ लोक संस्कृति सम्बंधित कष्ट शिल्प के नमूने, वाद्ययंत्र, वस्त्र, बर्तन, दैनिक उपयोग की वस्तुऐं
⚬ जनजातीय व तिब्बती संस्कृति की त्रिआयामी झाँकियाँ
⚬ विशाल कलादीर्घाओं के मनोहारी मूल चित्र
प्राप्त करें
चित्रों के प्रिंट, कार्ड, मूल जलरंगीय चित्र, अति लघु चित्र, ऐंपण तथा दर्जन प्रकाशित पुस्तकें
समय
संग्रहालय अप्रैल से सितम्बर प्रातः 10 से सायं 5 तक, तथा अक्टूबर से मार्च प्रातः 11 से सायं 4 बजे तक खुला रहता है। इसको सोमवार व महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवकाशों पर बंद रखा जाता हैं संग्रहालय में धूम्रपान व नशे की अवस्था में प्रवेश पूर्णतः वर्जित हैं।
पता
लोक संस्कृति संग्रहालय, नैनीताल-भीमताल मार्ग पर YMCA/पेट्रोल पंप के पास, खुटानी (भीमताल), उत्तराखंड
दूरी
भीमताल शहर के उत्तर में तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह नई दिल्ली से 334 किमी, पंतनगर हवाई अड्डे से 49 किमी, काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 24 किमी और नैनीताल, जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर है।
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