09 नवम्बर, 2000 ई. को भारत के नवोदित राज्य के रूप में उदित हुए इस राज्य का अल्मोड़ा नगर जनपद अल्मोड़ा का मुख्यालय है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह नगर अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस महत्वपूर्ण तथ्य को दृष्टिगत करते हुए चन्द शासकों ने जबकि उनके अन्तर्गत कुमाऊं का विशाल क्षेत्र आ चुका था, अल्मोड़ा को अपनी राजधानी बनाया। नवीनतम खोजों के आधार पर चन्द शासक भीष्मचन्द ने 1512-13 ई. में अल्मोड़ा नगर की आधारशिला रखी, जो उसके उत्तराधिकारियों के काल में विकसित होती गयी। चन्द शासकों से पूर्व उत्तराखण्ड का यह क्षेत्र कुणिन्द, कत्यूरी एवं पौरव राजवंश के अन्तर्गत रहा। चन्द शासकों के पश्चात लगभग 25 वर्षातक यह क्षेत्र गोरखा शासन के अन्तर्गत था। अंग्रेजों द्वारा 1815 ई. में गोरखों को पराजित करने के पश्चात यह क्षेत्र भी भारत के अन्य क्षेत्रों की भांति अंग्रेजी शासन के अन्तर्गत आ गया। 1947 ई. में यह नगर भी स्वतंत्र होकर भारतीय शासन में समाहित हो गया।
इस क्षेत्र में बिखरी पड़ी उपरोक्त राजवंशों से सम्बन्धित एवं अन्य अपार सांस्कृतिक सम्पदा के संग्रह, अनुरक्षण, अभिलेखीकरण, प्रदर्शन एवं उन पर शोध करने के उद्देश्य से 1979 ई. ऐतिहासिक व सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में संग्रहालय की स्थापना की गयी। सितम्बर, 1989 ई. में इस संग्रहालय को भारत रत्न पंण्डित गोविन्द बल्लभ पंत नाम दिया गया तथा अब यह "पं. गोविन्द बल्लभ पंत, राजकीय संग्रहालय" के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह माल रोड, अल्मोड़ा के निकट सैन्ट्रललॉज नामक भवन में स्थित है। इस संग्रहालय में उत्तराखण्ड तथा उससे लगे हुए विभिन्न क्षेत्रों की तीन हजार से अधिक महत्वपूर्ण कलाकृतियों का संग्रह है। जिन्हें आरक्षित संग्रह के अतिरिक्त संग्रहालय की पांच वीथिकाओं में सुरूचिपूर्ण व वैज्ञानिक विधि से प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय में कुमाऊं की अब तक ज्ञात सर्वाधिक प्राचीन की विशालकाय यक्ष प्रतिमा है, जिसे संग्रहालय प्रांगण में प्रदर्शित किया गया है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड में यक्ष व कुबेर उपासना की परम्परा रही है। इसी प्रांगण में रानीखेत (अल्मोड़ा) के निकट से प्राप्त शुकनाश की प्रतिमा प्रदर्शित है। संग्रहालय का प्रवेश द्वार स्थानीय काष्ठ कला के आकर्षक अलंकृत चौखट से सुसज्जित किया गया है। संग्रहालय के भीतर प्रवेश करते ही कॉरीडोर में उत्तराखण्ड के कुमाऊं एवं गढ़वाल मण्डलों के विशिष्ट देवालयों के स्थापत्य को रंगीन छायाचित्रों के माध्यम से तिथि एवं क्रमवार प्रदर्शित किया गया है। इनमें कुमाऊं मण्डल के जागेश्वर, कटारमल, बैजनाथ मन्दिर तथा गढ़वाल मण्डल के लाखमण्डल, जमदाग्नि मन्दिर, पलेठी का यह नगर भी स्वतन्त्र होकर भारतीय शासन में समाहित हो गया। सूर्य मन्दिर आदि मुख्य हैं। इन देवालयों द्वारा दर्शकों को उत्तराखण्ड की वास्तुकला की विभिन्न शैलियों का परिचय एक ही स्थान पर मिल जाता है।
दर्शनीय
⚬ कुमाऊं मण्डल के विभिन्न धार्मिक व मांगालक अवसरों पर
निर्मित की जाने वाली अल्पनाओं (ऐपण)को आकर्षक ढंग से प्रदर्शित किया गया है।
⚬ हस्तशिल्प के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों में दैनिक प्रयोग में आने वाले बांस या रिंगाल से निर्मित मोस्टा (वर्तमान चटाई) सामग्री एवं छोटे बच्चों को ले जाने वाली डोका नगारा, हुड़का, रणसिंह, तूरी व नागफीणी का कलात्मक प्रदर्शन किया गया है।
⚬ कुमाऊं के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातियों द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले चांदी के आभूषणों को सुरुचिपूर्ण तरीके से प्रदर्शित किया गया है। इसमें सुत, हार, पौंजी, झांवर, पायल, कुरचा, केशचिमटी तथा झुमके प्रमुख हैं।
⚬ कुमाऊं के पारम्परिक काष्ठ बर्तनों यथा- नाली, पाली, डोबिया, हड़पी आदि को प्रदर्शित किया गया है। इनमें नाली का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जिसका प्रयोग पारम्परिक भूमि माप के बर्तन के रूप में भी किया जाता रहा है।
⚬ भगवान विष्णु के विविध अवतारों को प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाओं के रूप में प्रदर्शित किया गया है। इसके अतिरिक्त स्थानक विष्णु, शेषशायी विष्णु, नृसिंह, हरिहर आदि की प्रतिमाओं को प्रदर्शित किया गया है।
⚬ नैनीपातल, पिथौरागढ़ से प्राप्त ताम्र संचय संस्कृति से सम्बन्धित लगभग तीसरी शताब्दी ई.पू. से
द्वितीय शताब्दी ई. पूर्व तक की ताम्र आकृतिया और कत्यूर घाटी से प्राप्त द्वितीय शती ई. पूर्व से दूसरी शती ई. तक के अल्मोड़ा प्रकार के सिक्कों को भी प्रदर्शित किया गया है। इसके अतिरिक्त यौद्येय, गुप्त, कुषाण तथा मूसलमान शासकों के सिक्के भी वीथिका में दर्शकों के दर्शनार्थ रखे गये हैं। ब्रिटिश कालीन सिक्के तथा भारत सरकार द्वारा विभिन्न अवसरों पर जारी किये गये अपरिचालित सौ, पचास,बीस तथा दस
रूपये के सिक्के भी दर्शकों को आकर्षित करते हैं।
⚬ सातवीं शती ई0 के ब्राह्मी लिपि में आबद्ध तालेश्वर ताम्रपत्रों की अनुकृतियां प्रदर्शित हैं, वहीं स्थानीय चन्द शासकों के ताम्रपत्र भी वीथिका में स्थान प्राप्त किये हुए हैं। इन चन्द शासकों के ताम्रपत्रों में समय-समय पर भूमिदान किये जाने का उल्लेख है। लल्लू लाल लिखित पाण्डुलिपि भी इस वीथिका में प्रदर्शित की गई है।
⚬ ब्रह्माणी,माहेश्वरी एवं कौमारी देवियों की प्रस्तर प्रतिमाएँ, रोतरा (गढ़वाल) तथा दौलाघट से प्राप्त महिषमर्दिनी की प्रतिमाएं, अल्मोड़ा से प्राप्त स्थानक तपस्विनी पार्वती, कत्यूरघाटी से प्राप्त मकरारूढ़ गंगा की स्थानीय प्रस्तर की प्रतिमाएं इस प्रदर्शित हैं ही साथ ही पृथक शैली प्राप्त उमा महेश की भव्य प्रतिमा भी प्रदर्शित की गई है। नवदुर्गा व सप्तमातृका युक्त लगभग चार सौ वर्ष प्राचीन चांदी के हार का प्रदर्शन में उपस्थित है।
⚬ पं० गोविन्द बल्लभ पंत जी की आवक्ष प्रतिमा का प्रदर्शन तो है ही, उनकी पैतृक एवं मातृक वंशावलियां, उनके जीवन की घटनाओं से सम्बन्धित विभिन्न छायाचित्र, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, खान अब्दुल गफ्फार खान आदि के साथ पं. गोविन्द बल्लभ पंत के छायाचित्र के साथ उनके पारिवारिक चित्रों को भी स्थान दिया गया है। संग्रहालय परिसर में एक पुस्तकालय की भी स्थापना की गई है। जिसमें लगभग 3000 पुस्तकों का संग्रह है। जिसमें मुख्य रूप से भारतीय इतिहास, पुरातत्व, स्थानीय एवं उत्तराखण्ड के इतिहास से सम्बन्धित पुस्तकें हैं। इस पुस्तकालय से शोधार्थी व अध्ययनशील व्यक्ति लाभ उठाते रहे हैं। संग्रहालय परिसर में ही भारतीय पुरातत्व विभाग के पूर्व महानिदेशक स्व.श्रीजगतपति जोशी जी की स्मृति में एक कक्ष पुस्तकालय के रूप में स्थापित किया गया है। जिसमें उनकी पत्नी द्वारा संग्रहालय को प्रदत्त पुस्तकों को रखा गया है।
समय
संग्रहालय प्रातः 10:30 से सायं 4:30 बजे तक द्वितीय शनिवार के बाद का रविवार व राष्ट्रीय अवकाशों पर बंद रखा जाता हैं।
पता
पं. गोविन्द बल्लभ पंत, राजकीय संग्रहालय मॉल रोड, रोडवेज स्टेशन के सामने , अल्मोड़ा
दूरी
यह नई दिल्ली से 350 कि.मी., पंतनगर हवाई अड्डे से 117 कि.मी., काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 82 कि.मी.
प्रवेश शुल्क
निः शुल्क
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