कालो भण्डारी (अनुमानित जीवनावधिः 16वीं शताब्दी): लखनपुर, गढ़वाल। अपने समय के भड़ और इतिहास प्रसिद्ध सेनापति तथा मलेथा की गूल के शिल्पी माधो सिंह के भण्डारी के पिता।
कालो भण्डारी के सम्बन्ध में कहा जाता है कि गढ़वाल नरेश मानशाह के समय में मुगल बादशाह अकबर, सिरमौर के राजा मौलिचन्द्र और कुमाऊँ के राजा ज्ञानचन्द ने मिलकर गढ़वाल नरेश से आग्रह किया कि "तुम्हारे राज्य में तपोवन' है, जहाँ आज धान बोने से कल तैयार हो जाते हैं, उसको गढ़वाल, कुमाऊँ, सिरमौर व दिल्ली में बराबर-बराबर बाँट दिया जाय" (तपोवन आज भी मुनी की रेती, ऋषिकेश से एक मील उत्तर की ओर गंगा के किनारे स्थित है और अच्छी किस्म के धानों की उपज के लिए प्रसिद्ध है)। सम्भवतः इतने छोटे भू-खण्ड के लिए चार राज्यों के बीच बंटवारे की मांग नहीं की जा सकती है। उनका आशय सम्पूर्ण देहरादून घाटी के बंटवारे से रहा होगा। इस मसले को लेकर मतभेद पैदा हो गया। अन्त में दिल्ली से 'मुगल', 'पठान', कुमाऊँ से 'काल' और 'कत्युरा' नाम के चार भड़ श्रीनगर भेजे गए कि जिसके भड़ जीतेंगे, वही 'तपोवन' का स्वामी होगा। इस मुसीबत के मौके पर गढ़ राज–दरबार को कालो भण्डारी की याद आई। भण्डारी को राज दरबार में बुलाया गया। इस अवसर पर भण्डारी ने ऐसी वीरता और बुद्धिमत्ता दिखाई कि दो भड़ों को तो श्रीनगर में पटक कर मार डाला और शेष दो डर के मारे निकट ही अलकनन्दा में कूद कर डूब मरे। इस विजय पर सारे राज्य में हर्ष मनाया गया। 'सोण बाण कालो भण्डारी' को सम्मान पूर्वक एक बड़ा इलाका जागीर के रूप में प्रदान किया गया। ऐसे थे उस युग के वीर–पराक्रमी और राजभक्त पुरुष।
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